

24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर के वैज्ञानिकों ने किसानों के लिए ज्वार की नई किस्त प्रताप ज्वार 2510 विकसित की है। इस किस्म का विकास अखिल भारतीय ज्वार अनुसंधान परियोजना, उदयपुर में कार्यरत वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है। डॉ अरविन्द वर्मा, निदेशक अनुसंधान, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने बताया कि राजस्थान के दक्षिणी-पूर्वी क्षेत्र में ज्वार एक प्रमुख मिलेट फसल है जो कि वर्षा आधारित क्षेत्रों में अनाज और पशु चारे के लिए उगाई जाती है। पशु चारे के लिए ज्वार का प्रदेश में प्रमुख योगदान है। उन्होंने बताया कि राजस्थान में ज्वार की खेती लगभग 6.4 लाख हैक्टेयर में की जा रही है एवं मुख्य रूप से अजमेर, नागौर, पाली, टोक, उदयपुर, चित्तौडगढ़, राजसमन्द एवं भीलवाड़ा जिलों में होती है। अनुसंधान निदेशक ने बताया कि अखिल भारतीय ज्वार अनुसंधान परियोजना सन् 1970 में प्रारंभ हुई थी तथा इस परियोजना के अन्तर्गत अभी तक कुल 11 किस्में क्रमशः एस पी वी 96, एस पी वी 245, राजचरी-1, राजचरी-2, सी एस वी 10, एस पी एच 837, सीएसवी 17, प्रताप ज्वार 1430, सी एस वी 23, प्रताप चरी 1080 एवं प्रताप राज ज्वार-1 अनुमोदित हो चुकी है। ज्वार की नई किस्म प्रताप ज्वार 2510 को पत्र संख्या 40271 के अन्तर्गत दिनांक 9 अक्टूबर 2024 को जारी भारत सरकार के राजपत्र में राजस्थान राज्य के लिए अधिसूचित किया गया।
परियोजना प्रभारी डॉ हेमलता शर्मा ने बताया कि यह मध्यम अवधि (105-110 दिन) में पकने वाली किस्म है जिससे 40-45 क्विंटल प्रति हैक्टेयर दाने की एवं 130-135 क्विंटल प्रति हैक्टेयर सूखे चारे की उपज प्राप्त होती है, तथा यह किस्म एन्थ्रेकनोज, जोनेट, मोल्ड रोगों एवं तना मक्खी तथा तना छेदक कीटों के लिए सामान्य प्रतिरोधी है।
डॉ. अजीत कुमार कर्नाटक, कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने बताया कि राजस्थान में ज्वार मुख्य रूप से चारे के लिए उगाई जाती है किन्तु विगत वर्ष 2023 अन्तर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष के रूप में मनाया गया जिससे ज्वार के दानों में पोषक गुणों के बारे में आमजन में जागृति आयी है। ज्वार एक ग्लुटेन मुक्त अनाज होता है अतः इसका उपयोग दलिया, ब्रेड और केक आदि बनाने में किया जाता है। ज्वार के दाने का उपयोग खाद्य तेल, स्टार्च, डेक्सट्रोज आदि के लिए भी किया जाता है, उन्होंने बताया कि वैज्ञानिक तरीके से ज्वार की खेती करने से राजस्थान के किसान इससे अधिक उत्पादन एवं आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
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