24 न्यूज अपडेट. उदयपुर। विकास का यह मॉडल बड़ा ही अजीब है। शहर के अफसर-नेता हर मौके पर बोतलबंद पानी पीते हैं और शहर के नलों में पीला मटमैला पानी आता है। शहर से कुछ ही दूरी पर प्रदूषित पानी पीने से मौतें हो जाती हैं। इसी शहर में नगर निकाय बार-बार डिवाइडर तोड कर नए बनाता है, करोड़ों फूंक दिए जाते हैं। वीआईपी विजिट पर मनचाहे अंदाज में खर्चे हो जाते हैं, रातोंरात हेलिपेड बन जाते हैं लेकिन जब बात सरकारी स्कूल की आती है तब सबको सांप सूंघ जाता है। हमारा भविष्य अंधकार में है। हमारी सबसे निचले तबके और ग्रामीण परिवेश वाली पूरी की पूरी पीढ़ी ऐसे सरकारी स्कूलों में पढ रही है जहां पता नहीं कब भ्रष्टाचार से बनी हुई स्कूल के कमरे की छत नीचे आ जाए या उसका प्लास्तर गिर जाए, कहा नहीं जा सकता। बार-बार सरकारी सर्कुलर निकलते हैं कि बारिश में ध्यान रखें, बच्चों को कच्ची छतों के नीचे नहीं बैठाएं। तो सवाल ये है कि आखिर कहां बैठाएं। जिले के कोटड़ा ब्लॉक में तो एक कमरे तीन-तीन कक्षाएं चल रही थीं, आज वहां पर छत का प्लास्टर गिर गया। घटना के समय उस कमरे में तीन कक्षाओं के विद्यार्थी पढ रहे थे। प्लास्टर गिरने से एक शारीरिक शिक्षक और एक छात्रा को चोट आई। बारहवीं तक के इस स्कूल में तीन कमरे ही बैठने लायक हैं। मामला कोटड़ा के खाम गांव में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय का है। एक क्लास में के छत का प्लास्टर एकाएक धडाम से आ गिरा। उस कक्ष में कक्षा 8वीं ,9 और 11वीं की कक्षा संचालित थीं। कमरे नहीं होने से तीनों कक्षाओं के विद्यार्थी एक ही कमरे में बैठे थे। प्लास्तर गिरते ही बच्चे पेनिक में आ गए। बाहर निकलकर भागे। कक्षा में मौजूद शारीरिक शिक्षक रामलाल गरासिया के सिर और पैर में चोट लगी तो कक्षा 9 की छात्रा दुर्गा कुमारी के पीठ पर प्लास्तर गिरा। दोनों को प्राथमिक उपचार के लिए देवला अस्पताल ले गए। लोगों का कहना है कि कल की तेज बारिश के कारण आज स्कूल में छात्र-छात्राओं की उपस्थिति संख्या कम थी। आज उस एक कक्षा कक्ष में तीन कक्षाएं थीं जिनमें 30 विद्यार्थी पढ रहे थे। आम तौर पर इन कक्षाओं के कुल 60 विद्यार्थी एक साथ बैठते हैं। कमरे कुल 6 ही हैं जिनमें से तीन कमरे बैठने लायक हैं, वैसे सबकी हालत जर्जर है। इन कमरों में स्टूडेंट और टीचर अपनी जान-जोखिम में डालकर पाठन पठन रहे हैं।
ग्रामीणों ने कहा कि यह तो अच्छा रहा कि कोई जनहानि नहीं हुई, यदि कुछ अनहोनी हो जाती तो एक दूसरे पर ब्लेम करने का गेम शुरू हो जाता। शिक्षा विभाग की इस दयनीय हालत के लिए ना सिर्फ अधिकारी बल्कि राजनेता भी जिम्मेदार हैं। लोग कहते हैं कि यदि ग्राम पंचायत से लेकर जिला परिषद के प्रतिनिधि और अधिकारी यह ठान लें कि हर काम में होने वाले उपरी इनकम का 20 प्रतिशत भी यदि वे सरकारी स्कूलों के रख रखाव पर खर्च कर दे ंतो यह नौबत ही नहीं आए। एक क्लास में यदि तीन कक्षाओं के बच्चे पढ़ रहे हैं तो यह पूरे सिस्टम का फैल्योर है। जिले के मुखिया कलेक्टर पर बड़ा प्रश्न चिन्ह है। सारे विकास के कामों को छोड़ कर सबसे पहले सारा का सारा धन स्कूलों के सुधार में लगा देना चाहिए। हमारे सांसद और विधायक भी अपने स्वविवेक निधि कोटे का धन पूरी तरह से इन स्कूलों पर खर्च कर सकते हैं। फर्ज करें कि किसी हॉल में आला अफसर बैठे हों और अचानक प्लास्तर गिर जाए तो प्रशासन कितनी मुस्तैदी से चुन-चुन कर कार्रवाई करने पर आमादा हो जाएगा। कुछ वैसा ही लाइन ऑफ एक्शन इस मामले में भी होना चाहिए। वरना प्लास्तर गिरते रहेंगे, शिक्षक-शिक्षार्थी चोटिल होते रहेंगे, किसी को कोई फर्क नहीं पडने वाला है।


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By desk 24newsupdate

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