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किरण तंवर की ज्वाइनिंग किसने रोकी, कौन डाल रहा परिवाद उठाने का दबाव?? क्योंकि बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी…..

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24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय की दो महिला कर्मचारियों का मामला इन दिनों सुर्खियों में है। दोनों एसएफएबी कर्मचारी हैं व कॉमन बात ये है कि दोनों ने वीसी के खिलाफ बंगले पर मौखिक आदेश के दौरान काम करने और वहां पर अभद्रता का आरोप लगाते हुए प्रतापनगर थाने में परिवाद दिया है। सात दिन बाद भी खामोशी है। पूछताछ का पत्ता तक नहीं हिला है, कोई फोन थाने से नहीं आया है। इधर, विश्वविद्यालय में घमासान मचा हुआ है। मोर्चाबंदी हो रही है कि किसी भी तरह से घर की बात घर में ही रह जाए। क्योंकि बात अगर कानूनी इदारों में निकली तो दूर तलक चली जाएगी। जवाबदेही तय हो जाएगी, कई सारी बातें सामने आ जाएंगी जिन पर अभी पर्दा पड़ा हुआ है और जो मैनेज करने लायक दिखाई दे रही हैं।
विश्वविद्यालय में लंबे समय से सेवाएं दे रहीं किरण तंवर का मामला एसएफएबी कर्मचारियों की हड़ताल के दौरान सामने आया। तब पहली बार पता आरोप लगा कि कुछ कर्मचारियों को बिना किसी लिखित आदेश के बंगले पर सेवाएं देने भेज दिया गया। बताया गया कि ये कर्मचारी कोई एक दो दिन नहीं, लंबे समय से वहां काम कर रहे थे। याने नौकरी कहीं और बोल रही थीं, काम कहीं और लिया जा रहा था। सेल्फ फाइनेंस बोर्ड की जगह सेल्फ सर्विस बोर्ड जैसा कुछ चल खेल चलने का आरोप लगा। किरण तंवर अब गवर्नर को ज्ञापन देने की तैयारी कर रही हैं।
उनका कहना है कि सुविवि में एक साल से कुलपति निवास पर काम कर रही थी, उनकी मूल नियुक्ति सेंट्रल लाइब्रेरी में थी। वहां से माथुर मैडम और भाट सर के कहने पर वीसी बंगले में काम करने भेजा गया। उन्होंने परिवाद में और मीडिया को दिए अपने बयान में कहा कि जी जान से काम किया, सेवाएं दीं लेकिन बदले में नगर वधू जैसे शब्दों से नवाजा गया। विरोध करते ही बुरा बर्ताव कर बाहर निकाला गया। जब वे अपने मूल नियुक्ति विभाग याने कि लाइब्रेरी में ज्वाइनिंग के लिए गईं तो मना कर दिया गया। मना इसलिए कर दिया गया क्योंकि उपर से मौखिक आदेश था। याने, एक मौखिक आदेश बंगले पर जाने का, दूसरा लाइब्रेरी में काम नहीं करने का। तंवर का आरोप है कि महीनों बीत गए, साइन ही नहीं करने दे रहे। घर में दोनों बच्चों, पेरेलाइज्ड होकर बिस्तर में उपचार पा रहे पति व बूढ़ी सास की जिम्मेदारी। जाएं तो कहां जाएं। जिस संस्थान को लगभग 17 साल सेवाएं दीं वहां नौकरी का स्थायित्व तो बहुत दूर की बात है। नौकरी तक के लाले पड़ रहे हैं। कहती हैं-वीसी झूठ बोल रही हैं, कि मैंने उनके बंगले पर काम नहीं किया है। इसकी जांच मेरी कॉल डिटेल, बंगले के कर्मचारियों से पूछताछ और आवक-जावक सहित कई अन्य माध्यमों से आसानी से की जा सकती है। अब मैं बार बार विश्वविद्यालय के चक्कर लगा रही हूं मगर जवाइनिंग नहीं दी जा रही है। इस दौरान पांव में फ्रेक्चर भी हो गया।
भारतीय मजदूर संघ से संबद्ध मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय कर्मचारी संगठन एसएफएबी के कर्मचारियों का आंदोलन शुरू हुआ तो अपनी बात कही व यहीं किरण तंवर की मुसीबतें बढ़़ गईं। प्रतापनगर थाने में परिवाद देने के बावजूद सुनवाई नहीं हुई तो दूसरी तरफ सबको ज्वाइनिंग देने के बाद भी किरण तवंर को ज्वाइनिंग नहीं दी गई। अब सुविवि प्रशासन इस उम्मीद में दिखाई दे रहा है कि इस हाथ ज्वाइनिंग, उस हाथ परिवाद वापस लेने जैसा कोई खेल हो जाए और पूरा मामला ही सेटल हो जाए।
किरण का कहना है कि अब उन दोनों लोगों के माध्यम से उन पर दबाव बनाया जा रहा है जिन्होंने उन्हें वीसी के बंगले पर काम करने मौखिक आदेश से भेजा था। वे कह रहे हैं कि थाने में दिया परिवाद वापस लेना पड़ेगा। उसके बाद ही ज्वाइनिंग नियमों के विपरीत जाकर ज्वाइनिंग नहीं दी जा रही है। कोर्ट तक के आदेश को नहीं माना जा रहा है। छह महीन से उन्हें सैलरी नहीं दी गई है। इधर, पुलिस भी पूछताछ तक की पहल नहीं कर रही है। ऐसे में जाएं तो कहां जाएं। इस मामले में मानवाधिकार आयोग से लेकर महिला आयोग तक शिकायतें की जा चुकी हैं लेकिन वहां से भी चुप्पी बता रही है कि पूरा सिस्टम ही सुस्त नींद में सोया है।

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