24 News update उदयपुर। राजस्थान के खेरवाड़ा क्षेत्र के बलीचा गांव में इस बार की होली पारंपरिक उल्लास के साथ रोमांचकारी नजारों से भरी रही। शनिवार को हुए इस अनूठे आयोजन में हजारों लोगों ने हिस्सा लिया, जहां युवाओं ने तलवारें और बंदूकें लेकर गेर खेली। इस आयोजन की खास बात यह रही कि युवाओं ने जलती होली के अंगारों पर दौड़ने का साहस दिखाया और परंपरा के अनुसार, होली के डांडे को तलवार से काटने की कोशिश की।
इस आयोजन को देखने के लिए न केवल उदयपुर बल्कि डूंगरपुर, बांसवाड़ा और पड़ोसी राज्यों गुजरात व मध्य प्रदेश से भी बड़ी संख्या में लोग पहुंचे। परंपरा के अनुसार, जो युवा तलवार से होली के डांडे को काटने में असफल रहे, उन्हें देवी मंदिर में सांकेतिक रूप से कुछ समय के लिए कैद किया गया और भविष्य में गलती न करने की शर्त पर रिहा किया गया।
हजारों लोगों की उमड़ी भीड़, फाल्गुन गीतों से गूंजा माहौल
खेरवाड़ा के बलीचा गांव में हर साल की तरह इस बार भी होलिका दहन पूर्णिमा के अगले दिन धुलंडी पर हुआ। लोकदेवी के मंदिर के पास आयोजित इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। सुबह से ही आसपास के गांवों से ग्रामीण टोलियां बनाकर फाल्गुन गीत गाते हुए पहुंचे। इस दौरान युवाओं के जोश और उमंग का अनोखा नजारा देखने को मिला।
विशेष रूप से वनवासी समुदाय के युवक-युवतियां, महिलाएं और बुजुर्ग पारंपरिक परिधानों में पहुंचे। पूरे आयोजन में युवाओं के हाथों में नंगी तलवारें और बंदूकें नजर आईं, जिससे माहौल और भी रोमांचक बन गया।
परंपरा: तलवार से काटा जाता है होली का डांडा, असफल होने पर ‘जेल’
बलीचा गांव में होली का यह आयोजन सदियों पुरानी परंपरा के तहत मनाया जाता है। यहां होली के डांडे (लकड़ी के खंभे) को तलवार से काटने की प्रथा है। युवा समूह में आगे आते हैं और पूरी ताकत लगाकर इसे काटने का प्रयास करते हैं।
अगर कोई युवा इस कार्य में असफल रहता है, तो उसे मंदिर परिसर में बनी सांकेतिक जेल में कुछ समय के लिए बंद कर दिया जाता है। बाद में गलती न दोहराने की जमानत पर उसे रिहा किया जाता है। इस दौरान पूरे क्षेत्र में गेर नृत्य चलता रहता है, जिसमें लोग ढोल-नगाड़ों की धुन पर झूमते हैं।
धधकती होली के अंगारों पर दौड़ने की परंपरा
इस आयोजन की सबसे रोमांचक परंपरा आग के अंगारों पर दौड़ने की रही। होलिका दहन के बाद जब लकड़ियां और उपले जलकर लाल अंगारों में तब्दील हो जाते हैं, तब कई युवा इन पर नंगे पैर दौड़ते हैं। ऐसा करते हुए वे अपनी शक्ति, साहस और आस्था का प्रदर्शन करते हैं।
इस दौरान पूरे माहौल में फाल्गुन गीतों की गूंज और पारंपरिक वाद्ययंत्रों की धुन सुनाई देती रही। वहीं, कई युवा हाथों में तलवारें लहराते हुए नाचते-गाते नजर आए।
हजारों लोगों की भीड़, पहाड़ियों पर चढ़कर देखी गई होली
इस रोमांचक नजारे को देखने के लिए हजारों की संख्या में ग्रामीण इकट्ठा हुए। कुछ लोग पहाड़ियों पर चढ़कर इस पूरे आयोजन को अपने मोबाइल कैमरों में कैद करते नजर आए।
आयोजन स्थल के आसपास खाने-पीने के स्टॉल और सजावटी सामान की दुकानें भी लगीं, जहां ग्रामीणों ने जमकर खरीदारी की और मेले का आनंद उठाया।
सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद, पुलिस बल रहा तैनात
चूंकि आयोजन में तलवारें और बंदूकें शामिल थीं, इसलिए सुरक्षा व्यवस्था को भी विशेष रूप से मजबूत किया गया था। खेरवाड़ा, पाटिया, पहाड़ा और बावलवाड़ा थानों के पुलिस अधिकारी पूरे जाब्ते के साथ तैनात रहे। अतिरिक्त पुलिस बल भी व्यवस्था बनाए रखने के लिए लगाया गया था।
बलीचा गांव में हर साल आयोजित होने वाला यह उत्सव अपनी अनूठी परंपराओं के कारण क्षेत्रभर में प्रसिद्ध है। इस बार भी यह आयोजन देखने के लिए हजारों लोग उमड़े और रोमांच से भरे इस त्योहार का भरपूर आनंद लिया।

