24 News Update उदयपुर. देश की 720 जनजातियों को संवैधानिक अधिकार दिलाने की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल करते हुए उदयपुर सांसद डॉ. मन्नालाल रावत ने सोमवार को लोकसभा में डीलिस्टिंग का मुद्दा प्रमुखता से उठाया। संसद के मानसून सत्र के पहले ही दिन नियम 377 के तहत सूचना के माध्यम से सांसद डॉ. रावत ने वह आवाज बुलंद की जो 1950 से वंचित आदिवासी समुदायों के हक की प्रतीक्षा कर रही थी।
क्या है डीलिस्टिंग मुद्दा
डीलिस्टिंग उस प्रक्रिया की मांग है, जिसके तहत अपनी मूल जनजातीय संस्कृति और परंपराओं को त्यागकर धर्मांतरण करने वाले व्यक्तियों को अनुसूचित जनजाति (ST) के आरक्षण व अन्य संवैधानिक लाभों से वंचित किया जाए, जैसा कि अनुसूचित जाति (SC) के लिए पहले से ही संविधान में प्रावधान है। डॉ. रावत ने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत अनुसूचित जनजातियों की सूची में 1950 में अधिसूचना जारी की गई थी, किंतु उसमें धर्मांतरण के बाद ST का लाभ प्राप्त करने पर कोई निषेध नहीं जोड़ा गया। उन्होंने कहा कि धर्मांतरण कर चुके कई लोग आज भी ST के आरक्षण, छात्रवृत्ति, नौकरियों और अन्य सरकारी लाभों का अनुचित रूप से लाभ ले रहे हैं, जिससे मूल संस्कृति से जुड़े वास्तविक आदिवासी हाशिए पर चले गए हैं।
50 सालों बाद फिर गूंजी आवाज
सांसद रावत ने कहा कि 1970 के दशक में कांग्रेस के आदिवासी नेता डॉ. कार्तिक उरांव ने इस विषय को गंभीरता से उठाया था और 348 सांसदों ने डीलिस्टिंग बिल का समर्थन कर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पत्र लिखा था, लेकिन राजनीतिक दबाव में उस जनमत की अनदेखी कर दी गई। डॉ. रावत ने कहा, “अब समय नरेंद्र मोदी का है, जो जनजातीय समाज के गौरव व विकास के प्रति गंभीर हैं।” उन्होंने उम्मीद जताई कि केंद्र सरकार इस दिशा में ठोस कानून बनाकर मूल आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करेगी।
बीएपी पर निशाना, कांग्रेस को आत्ममंथन की सलाह
डॉ. रावत ने डूंगरपुर-बांसवाड़ा क्षेत्र में सक्रिय बीएपी पार्टी पर निशाना साधते हुए कहा कि यह पार्टी धर्मांतरित जनों के साथ खड़ी होकर डीलिस्टिंग आंदोलन का विरोध कर रही है। वहीं, उन्होंने कांग्रेस से आग्रह किया कि वह अपने पुराने रुख पर पुनर्विचार कर डॉ. कार्तिक उरांव की भावना को समझे और इस सामाजिक मुद्दे पर समर्थन दे। जनजाति सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय संगठन मंत्री सूर्य नारायण सुरी और राजस्थान संयोजक लालूराम कटारा ने सांसद रावत की पहल का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ राजनीतिक नहीं बल्कि सामाजिक न्याय का विषय है, जिसे लेकर मंच लंबे समय से सक्रिय है। अब संसद में इसकी गूंज डॉ. रावत ने सुनिश्चित की है।
1950 से संवैधानिक हक से वंचित जनजातियों की आवाज 50 साल बाद संसद में गूंजी: सांसद डॉ. मन्नालाल रावत ने उठाया डीलिस्टिंग का मुद्दा

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