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मनुष्य के लिए सबसे कठिन है नमस्कार भाव : जैनाचार्य रत्नसेन सूरीश्वर महाराज

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20 जुलाई को श्री सिद्ध हेमचन्द्र शब्दानुशासन पुस्तक का होगा विमोचन

24 News Update उदयपुर, 16 जुलाई। मालदास स्ट्रीट स्थित आराधना भवन में जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर महाराज की निश्रा में बड़े हर्षोल्लास के साथ चातुर्मासिक आराधना चल रही है।
श्रीसंघ के कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया ने बताया कि बुधवार को मालदास स्ट्रीट के नूतन आराधना भवन में जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर ने प्रवचन देते हुए कहा प्राणी सृष्टि में मनुष्य और पशु की शारीरिक रचना में सबसे बडा भेद है कि मनुष्य का( मस्तक) सीधा है, जबकि पशुओं का मस्तक झुका हुआ है। इसलिए मनुष्य के लिए सबसे कठिन कार्य है मस्तक झुकाना। दुनिया के लोग तो सिर उठाकर जीने की बात करते है, परंतु धर्म तो नमस्कार भाव की बात करता है। सिर उठाकर जीना, अहंकार दर्शाता है, जबकि नमस्कार भाव, नम्रता सिखाता है।
जो मनुष्य नमस्कार के योग्य गुणवान पुरुषों को नमस्कार नहीं करता है उसे अगले जन्म में पशु के भव में जाना पड़ता है। पशु जीवन की सबसे बडी सजा है कि उन्हें दौडने के लिए चार पैर तो मिले है परंतु, पशुओं के पास हाथ नहीं है। मनुष्य को भोजन करने के लिए दो हाथ मिले हैं। हाथों के द्वारा वह भोजन को मुंह तक ले जा सकता है परंतु, पशुओं को भोजन करने के लिए मुंह को भोजन के पास ले जाना पड़ता है। पशुओं का मुंह हमेशा झुका हुआ ही रहता है। मनुष्य के इस अहंकार को तोडऩे के लिए ही नमस्कार महामंत्र की शुरुवात नमो पद से है। नमो पद नम्रता का प्रतिक है। इस महामंत्र में, इस विश्व में रहे सर्वश्रेष्ठ गुणवान स्वरूप अरिहंत आदि पंच परमेष्ठि को नमस्कार किया जाता है।
पंच परमेष्ठि में अरिहंत और सिद्ध पद आत्मा की पूर्णता को प्राप्त हो चुके है, इसलिए ये दोनों पद आराध्य देव के स्थान पर है। तथा शेष आचार्य, उपाध्याय और साधु, आत्मा की पूर्णता को प्राप्त करने में निरंतर प्रयत्नशील है इसलिए ये तीनों पद आराध्य गुरु के स्थान पर है। देव और गुरु के प्रति किया गया नमस्कार हमारी आत्मा के लिए अत्यंत लाभकारी है। देव-गुरु को किया गया नमस्कार हमे उनमें रहे सर्वस्व गुणों को प्रदान करने में समर्थ है। गुणों की प्राप्ति के लिए जीवन भर बार-बार पंच परमेष्ठी नमस्कार स्वरूप नमस्कार महामंत्र का स्मरण करना चाहिए।
जावरिया ने बताया कि 20 जुलाई को प्रातः: 9 बजे जैनाचार्य रत्नसेन सूरी द्वारा सम्पादित श्री सिद्ध हेमचन्द्र शब्दानुशासन पुस्तक भाग 1-से 4 का भव्य विमोचन स्वरूप “नमो श्रुत ज्ञानम्- नमो श्रुतज्ञानी” का संगीतमय कार्यक्रम होगा । भक्ति संगीत दीपक करणपुरिया करेंगे।
इस अवसर पर कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया, अध्यक्ष डॉ.शैलेन्द्र हिरण, नरेंद्र सिंघवी, हेमंत सिंघवी, भोपाल सिंह सिंघवी, गौतम मुर्डिया, प्रवीण हुम्मड आदि मौजूद रहे।

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