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संसार परिभ्रमण का मुख्य कारण क्रोधादि कषायों का आचरण है : जैनाचार्य रत्नसेन सूरीश्वर महाराज

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24 News Update उदयपुर। मालदास स्ट्रीट स्थित आराधना भवन में जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर महाराज की निश्रा में बड़े हर्षोल्लास के साथ चातुर्मासिक आराधना चल रही है।
श्रीसंघ के कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया ने बताया कि गुरुवार को आराधना भवन में जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर ने प्रवचन देते हुए कहा आत्मा के संसार रूपी वृक्ष का सिंचन कषायों के माध्यम से होता है। जैसे वृक्ष अपनी जड़ों से अपना आहार-जल को ग्रहण करता है। वृक्ष के पत्ते या डालिया काटने पर भी जब तक उसकी जडे सुरक्षित है, तब तक उसका सर्वनाश नहीं हो सकता है. कुछ दिनों के बाद सारे पत्ते और डालियाँ नवपल्लवित हो जाती है। वैसे ही आत्मा के संसार परिभ्रमण का मूल कारण क्रोध आदि चार कषाय है। हम जब किसी पर क्रोध करते है तब हम मानते है कि क्रोध करके हमने सामने वाले को दबा दिया। लेकिन हम नहीं जानते कि क्रोध करके हमने सामने वाले को मात्र दबाया नहीं है अपनी मुक्ति को दूर धकेल दिया है। आज तक हमारी आत्मा ने प्रत्येक भव में क्रोध, मान, माया और लोभ के आचरण से अपनी आत्मा के भवभ्रमण की बढ़ाने का ही काम किया है। इन चार कषायों का संक्षेप करे तो क्रोध और मान, द्वेष स्वरूप है, और माया और लोभ, राग स्वरूप है। पून: राग-देष का संक्षेप करे तो वह है मोह ।यह मोह आत्मा को भ्रमित करता है। मोह पर विजय पाने की साधना मात्र मनुष्य जन्म से ही हो सकती है। देव, नरक और तिर्यंच गति में आत्म साधना की शक्यता नहीं है। अत: हमे प्राप्त हुई मनुष्य भव की सामग्री से मोह विजय का प्रयत्न करना चाहिए। इस संसार में कदम-कदम पर समस्याएँ रही हुई है। एक समस्या सुलझे तब तक तो अनेक समस्याएं वापस पैदा हो जाती है। जहाँ समस्याओं का अंत नहीं है और समाधान का अंश नहीं है, वह संसार है और जहाँ समाधान का अंत नहीं है और समस्याओं का अंश नहीं है, वह मोक्ष है। जिसे मोक्ष प्राप्त करना हो उसे मोह विजय की साधना करना अत्यंत जरूरी है।
जावरिया ने बताया कि 27 जुलाई को प्रातः 9 बजे संगीतमय पश्चात्ताप भावयात्रा का आयोजन होगा । इस अवसर पर कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया, गौतम मुर्डिया, जसवंत सिंह सुराणा, भोपाल सिंह सिंघवी सहित कई श्रावक-श्राविकाएं मौजूद रही।

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