रिपोर्ट – राहुल पाटीदार
24 News Update कानोड़। नगर स्थापना दिवस के अवसर पर पीएम श्री चतुर उच्च माध्यमिक विद्यालय में इतिहास संकलन समिति की ओर से इतिहास दिवस पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता रमेशचंद्र शुक्ल ने की, जबकि मुख्य वक्ता के रूप में प्रसिद्ध इतिहासकार एवं उदय जैन महाविद्यालय के पूर्व प्राध्यापक डॉ. जमनेश कुमार ओझा उपस्थित रहे। कार्यक्रम की शुरुआत भगवती शर्मा और गगन व्यास द्वारा दीप प्रज्वलन एवं वंदना से हुई। संगोष्ठी का संचालन वरतंतु पाण्डेय ने किया।
मुख्य वक्ता डॉ. ओझा ने कानोड़ के इतिहास और सामाजिक समरसता पर विस्तृत प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि 31 अगस्त 1711 में संग्राम सिंह के समय कानोड़ को प्रथम ठिकाणे का दर्जा मिला, जबकि इसका उल्लेख तुगलक कालीन “तारीख-ए-फिरोजशाही” (1357) में भी मिलता है। उन्होंने कहा कि यह वह भूमि है जहां रावत नाहर सिंह के समय अयोध्या निवासी रसिक बिहारी ने रामरसायन सहित 31 ग्रंथों की रचना की।
कानोड़: सामाजिक समरसता और धार्मिक सौहार्द का प्रतीक
डॉ. ओझा ने कहा कि कानोड़ नगर सदियों से सामाजिक समरसता का उदाहरण रहा है। यहां जातिगत भेदभाव नहीं था। महल की रानियां भी नंगारची समाज की महिलाओं का चरणवंदन करती थीं। जलझूलनी एकादशी पर नगर के सभी समाज की रैवाडियां राजमहल में एकत्र होकर ठाकुर जी के साथ झूलने जाती थीं। उन्होंने बताया कि गोपाल राय मंदिर की स्थापत्य कला विश्व में अद्वितीय है। यहां भगवान राम और गोपाल के बालस्वरूप दर्शन होते हैं। मंदिर की ध्वजा मौसम का पूर्वानुमान बताती है और गर्भगृह में प्रतिमा के मस्तक पर कभी धूप नहीं पड़ती।
इतिहास का सम्मान जरूरी
इतिहास पर गलत लेखन की प्रवृत्ति की आलोचना करते हुए डॉ. ओझा ने कहा, “केवल डिग्री लेने से इतिहासकार नहीं बना जा सकता, इतिहास को जीना पड़ता है। आजकल दूसरे के शोध पर आधारित गलत इतिहास लिखा जा रहा है, जो निंदनीय है।” उन्होंने अकबर को “महान” कहे जाने पर भी आपत्ति जताई और कहा कि “महान तो प्रताप थे, जिन्होंने युद्ध में विजय प्राप्त की।”
धार्मिक सौहार्द और श्रमिक सम्मान का अद्भुत उदाहरण
ओझा ने बताया कि मोहर्रम के दिनों में हिंदू परिवार मुस्लिम परिवारों में गुड़ और रोटी भेजते थे। महलों के निर्माण में मजदूरों को अनाज तौलकर मजदूरी दी जाती थी। उन्होंने कहा, “कानोड़ देवभूमि है जहां ठाकुर जी साक्षात विराजमान हैं। यहां कभी किसी का शोषण नहीं हुआ, न किसी से बेगारी करवाई गई।” संगोष्ठी में राजपरिवार के ओंकार सिंह, गिरिजा शंकर व्यास, और विद्यालय के प्राचार्य राजेंद्र व्यास ने भी विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर डॉ. ओझा का नागरिक अभिनंदन किया गया। इतिहास प्रदर्शनी में राजकुमार सुथार, निर्मल पुरोहित, दीपक शर्मा और शांतनु लोहार को सम्मानित किया गया।
“जहां ठाकुर जी साक्षात विराजे, वह धरती वंदनीय”: डॉ. ओझा

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