24 न्यज अपडेट, जयपुर। अमेरिका द्वारा लगाए गए 50 प्रतिशत टैरिफ के कारण राजस्थान की वूलन और यार्न (सूत) इंडस्ट्री गहरे संकट में है। बीकानेर, ब्यावर, भीलवाड़ा सहित पूरे प्रदेश में फैक्ट्रियां बंद होने की कगार पर हैं। इस उद्योग से जुड़े करीब सवा लाख मजदूर और भेड़पालकों की रोजी-रोटी पर संकट मंडरा रहा है।
कारोबारियों का कहना है कि टैरिफ के प्रभाव से अब तक लगभग 150 से 200 करोड़ रुपए के ऑर्डर होल्ड पर चले गए हैं। यदि सरकार से वित्तीय सहायता नहीं मिली तो आने वाले एक साल के भीतर यह उद्योग लगभग 70 फीसदी तक खत्म हो जाएगा। वूलन इंडस्ट्री एसोसिएशन के आंकड़ों के अनुसार, यदि आवश्यक मदद नहीं दी गई तो करीब एक लाख लोगों का बेरोजगारी के गर्त में चले जाने का खतरा है।
राजस्थान की वूलन और यार्न इंडस्ट्री की करीब 70 प्रतिशत खपत अमेरिका में होती है। वहां कालीन को जरूरी वस्तु माना जाता है, जैसे भारत में टीवी, वॉशिंग मशीन व रेफ्रिजरेटर। लेकिन टैरिफ के बाद भारतीय उत्पाद महंगे हो गए हैं, जिससे अमेरिकी बाजार में उनकी मांग घट गई है। इसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ रहा है और निर्यात रुकने से उद्योग संकट में है।
बीकानेर में हर दिन दो से ढाई लाख किलो यार्न तैयार होती थी, लेकिन अब यह मात्रा आधी रह गई है। तैयार माल को भी फिलहाल स्टॉक किया जा रहा है क्योंकि निर्यात बंद होने के कारण इसका उपयोग नहीं हो पा रहा।
राज्यभर में करीब 350 यूनिट्स पर संकट मंडरा रहा है, जहां भेड़ के बालों से धागा बनाकर कालीन तैयार किया जाता था। 50 फीसदी टैरिफ के बाद अमेरिका से मिलने वाले कालीन के ऑर्डर लगभग बंद हो चुके हैं, जिससे उत्तर प्रदेश के भदोही सहित देशभर की कालीन इंडस्ट्री भी प्रभावित हो रही है।
फैक्ट्रियों में काम कर रहे मजदूर बिहार व अन्य प्रदेशों से आते हैं। कई फैक्ट्री मालिक मजबूरी में ऑर्डर ना होते हुए भी उन्हें काम पर बनाए रख रहे हैं ताकि मजदूर पलायन न कर दें। लेकिन ऐसा चलना भी मुश्किल हो रहा है। यदि मजदूर लौट गए तो भविष्य में काम मिलना और भी मुश्किल हो जाएगा।
वर्तमान में अधिकांश ऑर्डर होल्ड पर हैं, जिसके कारण धीरे-धीरे कई यूनिट्स बंद हो रही हैं। पहले दो-तीन महीने के ऑर्डर एडवांस चलते थे, लेकिन अब वे भी रुक चुके हैं। उद्योग के लिए यह स्थिति बेहद चिंताजनक है। हर महीने करीब 150 से 200 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है।
इस समय सिर्फ लेबर को बनाए रखने के लिए उत्पादन किया जा रहा है, लेकिन यह स्थिति कब तक जारी रहेगी, कहा नहीं जा सकता।
उद्योग से जुड़े कारोबारी यह भी बता रहे हैं कि अमेरिका में कालीन बड़े आकार में उपयोग होते हैं। भारत की दरें अमेरिका के हिसाब से काफी किफायती थीं, लेकिन टैरिफ के बाद कीमतें बढ़ जाने से उत्पादन और निर्यात दोनों पर संकट गहराया है। यदि जल्द ही उचित वित्तीय सहायता व नीतिगत राहत नहीं मिली तो वूलन और यार्न इंडस्ट्री पूरी तरह बंद हो सकती है।
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