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एमबी के हॉस्टल में गिरा प्लास्तर, दो बार पोस्टमार्टम, फिर एफएसएल जांच की जरूरत, महाभ्रष्ट सिस्टम से अब कार्रवाई की उम्मीद करना ही मूर्खता

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24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। एमबी अस्पताल में कमाल हो रहा है। भ्रष्टाचार, मनमानी और ढिठाई का ऐसा खुला खेल पहले कभी नहीं देखा। वाटर कूलर से रेजिडेंट को जान गंवानी पड़ रही है तो भ्रष्टाचार से बनी छतें खुद प्लास्तर गिरा कर कह रही हैं कि हो जाए दो बार पोस्टमार्टम और एक एफएसएल जांच। क्योंकि अपनी गलती मानना और नैतिकता के आधार पर पद त्याग की मिसाल कायम करना तो RNTप्रिंसिपल साहब की फितरत में ही नहीं हैं। उनको व पूरे सिस्टम को पॉलिटिकल सपोर्ट करने वालों और इस अस्पताल के आस पास बने बरसों से धन निकासी वाले इकोनोमिक इको सिस्टम को भी आज की प्लास्तर गिरने की घटना थोड़ी से खल रही होगी। उनको लग रहा होगा कि रॉन्ग टाइमिंग पर राइट काम आखिर कैसे हो गया? आम दिनों में गिरता तो मैनेज कर लेते। एक दूसरे की गलती बताते हुए लोगों को मैनेज कर लेते। जांच में मामले उलझा कर खत्म कर देते मगर अब क्या जवाब देंगे। दरअसल जड़ें ही खोखली नजर आ रही हैं। जवाब चाहिए कि प्लास्तर गिरा तो गिरा कैसे? ये कौनसी डाक्टरी की डॉक्टराइन चल रही है अस्पताल में। इसके दोषी नेता, जन प्रतिनिधि और ब्यूरोक्रेट भी हैं। गाहे बगाहे वे अवलोकन करने चले जाते हैं जयपुर से आदेश पर और फोटो सेशन कर आते हैं। क्या उनकी जिम्मेदारी नहीं है कि इस मामले में अस्पताल के वेंटिलेटर पर पड़े महाभ्रष्ट तंत्र को ही लाइन में हाजिर करें।
तत्काल सख्त कार्रवाई करे। लेकिन करें क्या इनमें से कई तो खुद सिस्टम के हिस्सेदार, भागीदार व लाभार्थी हैं। या तो चंदे का खेल है या फिर कमीशन का खेल। एमबीबीएस के स्टूडेंट आखिर इनकी कारास्तानी के शिकार क्यों हों। भाई कोई तो ऐसा हो जिसका इकबाल बुलंद हो, जो इस सिस्टम के सिस्ट को निकाल बाहर करे। ये नासूर हो गया है।
अब खबर पर आते हैं। एमबी अस्पताल के RNT सीनियर बॉयज हॉस्टल की हालत ऐसी है कि जंग लगी दीवारें, बदबूदार बाथरूम, और टूटती छतें हॉस्टल के हर कोने में मौत का न्योता बन चुकी हैं। यहां तीन से चार सौ एमबीबीएस छात्र रहते हैं, जिनसे हर साल साठ हजार रुपए फीस वसूल की जाती है। इसके बावजूद पूरे परिसर में महज एक टॉयलेट है, जिसमें भी डॉक्टरों को लाइन लगाकर खड़ा होना पड़ता है।
गुरुवार को इसी बाथरूम में पचास से साठ किलो वजनी प्लास्टर की पूरी छत भरभराकर गिर पड़ी। सौभाग्य था कि उस वक्त वहां मौजूद दो डॉक्टर बाल-बाल बच गए। अगर कुछ सेंकड इधर-उधर होते, तो अनहोनी होना तय था। छात्रों ने फौरन हल्ला मचाया और आप बीती प्रशासन को बताई। हमने अवलोकन किया तो पाया कि अस्पताल में कभी पंखा गिरता है, कभी एलिवेशन टूटता है, कभी सड़कें धंसती हैं। हॉस्टल की हालत ऐसी है कि जैसे किसी गाय के बाड़े में रात काटनी पड़ रही हो। बदबू का आलम ऐसा कि कल्पना भी नहीं की जा सकती। हद तो ये है कि रेजिडेंट डॉक्टर्स के रूम के दरवाजे तक नहीं लगे हैं। बिजली की एमसीबी हर जगह खुली हुई है, जो किसी भी वक्त हादसे को दावत दे रही है। हमें पता है कि खबर लिखने से सिस्टम नहीं सुधरेगा मगर अपने समय का सच दर्ज करना भी जरूरी है।

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