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ठाकुर अमरचंद बड़वा की 305वीं जयंती पर “युग-युगीन मेवाड़ में जल प्रबंधन” विषयक संगोष्ठी आयोजित, प्रो. सारंगदेवोत बोले – जल प्रबंधन के लिए सामूहिक सहभागिता और जागरूकता अनिवार्य

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24 News Update उदयपुर, 12 जुलाई। ठाकुर अमरचंद बड़वा की 305वीं जयंती के अवसर पर शनिवार को राजस्थान विद्यापीठ ठाकुर अमरचंद बड़वा शोधपीठ एवं ठाकुर अमरचंद बड़वा स्मृति संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में “युग-युगीन मेवाड़ में जल प्रबंधन” विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह आयोजन प्रतापनगर स्थित कुलपति सचिवालय सभागार में सम्पन्न हुआ, जिसमें जल संरक्षण, पारंपरिक जल स्रोतों की पुनर्स्थापना और ऐतिहासिक जल प्रबंधन प्रणालियों पर विस्तृत विमर्श हुआ।
प्रो. सारंगदेवोत : अमरचंद बड़वा ने दी सुविकसित मेवाड़ की कल्पना
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. सारंगदेवोत ने ठाकुर अमरचंद बड़वा को मेवाड़ का कुशल प्रशासक, निष्ठावान प्रधानमंत्री और दूरदर्शी योजनाकार बताया। उन्होंने कहा कि बड़वा ने शहर कोट, झीलों और बावड़ियों का निर्माण करवाकर जल संरचना को सशक्त किया।
उन्होंने कहा – “मेवाड़ की जल परंपरा पूरे देश में अनुकरणीय रही है। जल एक सीमित संसाधन है, जिसे बचाने के लिए सामूहिक जागरूकता और महिलाओं की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है। हमारे पंचतत्व — जल, वायु, अग्नि, आकाश और पृथ्वी — लगातार प्रदूषित हो रहे हैं, और इसके लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं।”
ज्ञान प्रकाश सोनी : बिना संसाधन के 400 वर्ष पुराने जलाशय आज भी सुरक्षित
संगोष्ठी के मुख्य वक्ता ज्ञान प्रकाश सोनी ने कहा कि मेवाड़ में परंपरागत जल प्रबंधन तकनीकों ने जलस्रोतों को शताब्दियों तक संरक्षित रखा। उन्होंने कहा – “बिना किसी आधुनिक संसाधन के बनाए गए 400 वर्ष पुराने जलाशय आज भी सुरक्षित हैं। धनुषाकार बांध, शीशे का उपयोग और मिट्टी-पत्थर की मिश्रित संरचनाएं मेवाड़ की अनूठी देन हैं।”
उन्होंने 1900 में भारत के कुल 64 बड़े बांधों में से 13 बांधों का मेवाड़ में होना इसका प्रमाण बताया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जगदीश राज श्रीमाली ने कहा कि मेवाड़ की जल परंपरा महाराणाओं की दूरदर्शिता का परिणाम है। उन्होंने कहा – “आज हमें जल, जंगल और जमीन को बचाने की जरूरत है। इसके लिए जनजागरूकता ही सबसे बड़ा उपाय है। मेवाड़ में मानव श्रम से बने जलाशय आज भी जल संरक्षण की मिसाल हैं।” प्रो. विमल शर्मा (संस्था अध्यक्ष) ने कहा कि मेवाड़ में पंचमहाभूतों के संतुलन पर आधारित संरक्षण परंपरा रही है। जयकिशन चौबे (महासचिव) ने संगोष्ठी में प्रस्तुत शोध आलेखों को पुस्तक रूप में प्रकाशित करने का प्रस्ताव रखा, जिसे सर्वसम्मति से पारित किया गया। दिनेश कोठारी (पूर्व प्रशासनिक अधिकारी) ने कहा कि झीलों की भराव क्षमता बनाए रखने के लिए नियमित सफाई और अतिक्रमण हटाना जरूरी है। डॉ. राजेन्द्र पुरोहित ने अमरचंद बड़वा द्वारा पिछोला झील के विस्तार में किए गए निर्माणों का उल्लेख किया। लोकेश पालीवाल ने उदयपुर की विलुप्त होती बावड़ियों को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता जताई। वरिष्ठ कवि श्रेणीदान चारण और कैलाश सोनी ने जल विषयक कविताएं प्रस्तुत कर वातावरण को भावविभोर कर दिया।
आगामी कार्यक्रम : सेनानायकों द्वारा ‘लोडची तोप’ को सलामी
अध्यक्ष प्रो. विमल शर्मा ने बताया कि चार दिवसीय कार्यक्रम के तीसरे दिन, सिटी स्टेशन के सामने स्थित तोप माता बुर्ज पर स्थित बड़वा कालीन ऐतिहासिक ‘लोडची तोप’ पर “सेनापति को सैनिक सलाम” कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। इसमें सेना, बीएसएफ, सीआरपीएफ और पुलिस के अधिकारी भाग लेंगे।
उपस्थित गणमान्य व्यक्ति
प्रो. जीवनसिंह खरकवाल, डॉ. रमाकांत शर्मा, एडवोकेट भरत कुमावत, मनोहरलाल मुंदड़ा, गणेशलाल नागदा, हरीश तलरेजा, डॉ. यज्ञ आमेटा, जगदीश पुरोहित, विनोद पांडेय, डॉ. जयराज आचार्य, डॉ. कुलशेखर व्यास सहित अनेक बुद्धिजीवी, शोधार्थी व समाजसेवी उपस्थित रहे। संगोष्ठी का संचालन डॉ. कुलशेखर व्यास ने किया एवं आभार डॉ. जयराज आचार्य ने जताया।

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