सांसद का लवाजमे के साथ अस्पताल आना क्या था जरूरी, पीड़िता के सामने ही हुई क्यों की गई मेडिकल ब्रीफिंग
24 न्यूज अपडेट उदयपुर। बांसवाड़ा जिले के घाटोल क्षेत्र में 16 वर्षीय छात्रा के साथ निर्भया कांड जैसी दरिंदगी का मामला सबसे पहले 24 न्यूज अपडेट में प्रकाशित होने के बाद से हड़कंप मचा हुआ है। इस मामले को गुपचुप तरीके से रफा-दफ करके की कोशिशें हो रही थीं मगर 24न्यूज अपडेट में बच्ची से वीभत्स तरीके से दुष्कर्म और उसके बाद उसकी नाजुक हालत की खबर से आज पूरे प्रदेश में हड़कंप मच गया। छात्रा को न्याय दिलाने के लिए कांग्रेस की ओर से कल ही प्रयास शुरू हो गए थे। आज जन प्रतिनिधि और भाजपा पदाधिकारी भी बड़ी संख्या में बच्ची का हाल जानने पहुंचे। लेकिन ऐसा लगा कि न्याय की पुकार के बीच राजनीति का रंग ज्यादा गाढ़ा होता जा रहा है। पीड़िता दस दिन से उदयपुर के महाराणा भूपाल अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रही थी तब कोई नहीं आया। सवाल यह है कि अगर हमारे सांसदों, पुलिस अधिकारियों को इसके बारे में जानकारी नहीं थी तो आखिर क्यों नहीं थी। आदिवासी इलाके में निर्भया जैसी वीभत्सता और दरिंदगी हो जाए और जन प्रतिनिधियों को केवल मीडिया के माध्यम से जानकारी मिले व उसके बाद वे सक्रिय हों तो यह पूरे सिस्टम की संवेदनशीलता पर ही बड़ा सवाल है।
ना कुछ खा रही, ना पानी पी रही
आज बच्ची की हालत इतनी गंभीर हो गई कि वह न पानी पी पा रही, न कुछ खा रही, न सीधी होकर सो पा रही है। दूसरी ओर प्रशासनिक लापरवाही और नेताओं के औपचारिक दौरों ने परिजनों की पीड़ा को और गहरा दिया है। बालिका की मां ने सोमवार को बताया कि पुलिस ने अब तक घटना से जुड़े अहम सबूत जब्त नहीं किए हैं। उन्होंने कहा कि “मेरी बेटी के खून से सने कपड़े अब तक मेरे पास हैं। पुलिस ने उन्हें सबूत के तौर पर तक नहीं लिया। अब कहा जा रहा है कि गाड़ी का स्टैंड घुस गया था। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि स्थानीय स्तर पर समझौते का दबाव डलवाया जा रहा है।
राजनीति का दिखावा या संवेदनशीलता?
सोमवार को उदयपुर सांसद डॉ. मन्नालाल रावत भाजपा पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं के बड़े दल के साथ अस्पताल पहुंचे। कैमरों और फ्लैश लाइट्स से घिरे इस दौरे में अस्पताल अधीक्षक ने पीड़िता के सामने ही सांसद को घटना का मेडिकल ब्योरा दिया। सवाल यह है कि क्या इस तरह का औपचारिक लवाजमा और मीडिया कवरेज संवेदनशील स्थिति में जायज़ था? क्या इसे टाला नहीं जा सकता था। क्या केवल पीडिता की मां से अकेले में नहीं मिल सकते थे सांसद। सांसद ने यहां पर कहा कि कहा कि मुख्य आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है और मामले की गहन जांच जारी है। उन्होंने पीड़िता को सरकारी योजनाओं से सहायता दिलाने का आश्वासन दिया। रावत ने मीडिया से बातचीत में पीडितो को न्याय दिलाने की पुरजोर वकालत तो की मगर यह कह कर राजनीति कर दी कि इसके लिए नकारात्मक विचार जिम्मेदार है। डूंगरपुर-बांसवाड़ा में युवाओं को भटकाने का आतंक, कहीं उसका कनेक्शन तो नहीं?? बच्चों को चाहिए कि वो मूवमेंट के बारे में पेरेंट्स से चर्चा करें!!! आखिर रावत के निशाने पर कौन? है। क्या शुरू हो गई है इस मामले में डर्टी पॉलिटिक्स?
उच्च अधिकारियों तक पहुँची गुहार
इस बीच कांग्रेस की महिला नेत्री शांता प्रिंस ने कहा कि ने महिला कांग्रेस नेता शांता प्रिंस ने भी अस्पताल पहुंचकर दोषियों को फांसी की सजा, सरकारी खर्च पर इलाज, त्वरित न्याय और 50 लाख रुपये मुआवजा देने की मांग की। डॉ. दिव्यानी कटारा ने बताया कि आईजी ने सोमवार को फोन पर पुलिस अधिकारियों से जानकारी ली। इससे पहले इसे एक्सीडेंटल केस बताया गया था जो सरासर गलत था। परिजन आईजी के बाद संभागीय आयुक्त प्रज्ञा केवलरमानी से भी मिले और पुलिस पर दबाव डालने के आरोप लगाए। डॉक्टरों का कहना है कि यह घटना दिल्ली के निर्भया कांड जैसी ही है।
वारदात का सिलसिला
20 अगस्त की सुबह स्कूल जाते समय बाइक सवार युवकों ने छात्रा को अगवा कर लिया। आरोप है कि उसे दो अलग-अलग जगहों पर पूरी रात शराब के नशे में दरिंदगी का शिकार बनाया गया और प्राइवेट पार्ट में शराब की बोतलें व डंडे डालने से वह गंभीर रूप से घायल हो गई। अगले दिन उसे चलती बाइक से फेंक दिया गया। राहगीरों ने अस्पताल पहुंचाया। 22 अगस्त को उदयपुर में आपातकालीन ऑपरेशन हुआ। मेडिकल रिपोर्ट में प्राइवेट पार्ट, मलद्वार, गर्भाशय, रीढ़ की हड्डी समेत कई अंगों में गंभीर चोटों की पुष्टि हुई। शौच के लिए पेट से बायपास रास्ता बनाया गया। इतना गंभीर मामला होने पर भी जन प्रतिनिधियों को कल 24 न्यूज अपडेट की खबर से सूचना मिली, यह अचरज का विषय है।
न्याय की मांग
परिजनों ने 25 अगस्त को पुलिस को लिखित शिकायत देकर आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी मगर कार्रवाई नहीं हुई। फोरेंसिक विशेषज्ञों का कहना है कि बालिका के साथ हुई दरिंदगी शब्दों से परे है और मामले में तुरंत सख्त धाराओं में मुकदमा दर्ज कर उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए। उपचार के लिए एम्स जैसे संस्थानों में ले जाने पर विचार किया जाना चाहिए।
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