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पूर्वोत्तर को नई दिशा, मिजोरम को नई राह : बइरबी–सायरंग रेल लाइन से आइजोल तक पहुँची प्रगति की रेल

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24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। वर्ष 2025 मिजोरम के विकास यात्रा में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हो गया है। पहली बार राज्य की राजधानी आइजोल को ब्रॉड गेज रेलवे नेटवर्क से जोड़ा गया है, जो बइरबी–सायरंग रेल परियोजना के पूर्ण होने के साथ संभव हो सका। यह परियोजना न केवल मिजोरम, बल्कि पूरे पूर्वोत्तर भारत के लिए आर्थिक, सामाजिक और सामरिक दृष्टि से एक ऐतिहासिक उपलब्धि बनकर उभरी है।

भौगोलिक चुनौतियों के बीच विकास की सुरंगें
मिजोरम भारत का एक पर्वतीय, सीमावर्ती राज्य है, जिसकी सीमाएं असम, मणिपुर, त्रिपुरा, बांग्लादेश और म्यांमार से मिलती हैं। ऊबड़-खाबड़ भू-भाग और समुद्र से दूरी के कारण यह क्षेत्र अब तक केवल सड़कों पर निर्भर था। खराब सड़क संपर्क और बुनियादी सुविधाओं की कमी ने इसे देश की मुख्यधारा से लगभग अलग-थलग रखा हुआ था।

एक दशक की मेहनत, विकास का संकल्प
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 29 नवंबर 2014 को इस परियोजना की आधारशिला रखे जाने के बाद, 2014–15 में भूमि अधिग्रहण और 2015–16 में निर्माण कार्य शुरू हुआ। कठिन भौगोलिक परिस्थितियों, सीमित कार्यकाल और भारी वर्षा के बावजूद भारतीय रेल ने इस परियोजना को 2025 में पूर्ण कर दिखाया। जून 2025 में रेलवे सुरक्षा आयुक्त (CRS) द्वारा संचालन की अनुमति प्रदान की गई।

तकनीकी चमत्कार : सुरंगों, पुलों और रफ्तार का संगम
51.38 किमी लंबी इस ब्रॉड गेज रेल लाइन पर ट्रेनों की अधिकतम गति 100 किमी/घंटा रखी गई है। मार्ग में बइरबी, हॉर्तोकी, कवनपुई और मुआलखांग स्टेशन आते हैं। परियोजना में 48 सुरंगें (12.85 किमी लंबी), 55 बड़े पुल, 87 छोटे पुल, 5 रोड ओवरब्रिज और 9 अंडरब्रिज शामिल हैं। इनमें 104 मीटर ऊंचा एक पुल कुतुब मीनार से भी ऊंचा है।

इस सम्पूर्ण निर्माण पर ₹7,714 करोड़ की लागत आई है और उत्तर-पूर्व सीमांत रेलवे (NFR) को इसके निर्माण का दायित्व सौंपा गया था।

आमजन को राहत, अर्थव्यवस्था को बल
यह रेललाइन मिजोरम के नागरिकों, खासकर दूरस्थ व ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वालों के लिए वरदान साबित होगी। अब उन्हें तेज, सुलभ और सुरक्षित परिवहन की सुविधा मिलेगी, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं, उच्च शिक्षा, रोजगार और व्यापार के अवसरों तक आसान पहुंच बनेगी।
किसानों के लिए यह रेलवे जीवन बदलने वाली साबित हो सकती है। वे अपने उत्पादों को अब देशभर के बाजारों तक समय और लागत की बचत के साथ पहुंचा सकेंगे। इससे उनकी आय में वृद्धि होगी और राज्य की स्थानीय अर्थव्यवस्था को नई ऊर्जा मिलेगी।

पर्यटन और सामरिक महत्व : एक साथ
यह रेलवे लाइन पर्यटन के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है। हरे-भरे पहाड़ों, गहरी सुरंगों और ऊंचे पुलों से होकर गुजरती यह यात्रा पर्यटकों को अविस्मरणीय अनुभव देगी। इससे घरेलू ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा।
वहीं सामरिक दृष्टिकोण से यह परियोजना बेहद संवेदनशील म्यांमार सीमा के पास भारत की रणनीतिक स्थिति को मजबूत करती है। यह भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ के तहत दक्षिण-पूर्व एशिया से भविष्य के रेल संपर्क की नींव भी रखती है।

रेल मानचित्र पर आइजोल : पूर्वोत्तर को नई पहचान
अब मिजोरम की राजधानी आइजोल भी भारतीय रेलवे के मानचित्र पर दर्ज हो चुकी है। इसके साथ ही गुवाहाटी (असम), इटानगर (अरुणाचल प्रदेश), अगरतला (त्रिपुरा) और आंशिक रूप से शिलांग (मेघालय) पहले ही ब्रॉड गेज नेटवर्क से जुड़ चुके हैं।

संघर्षों से सफलता तक : एक इंजीनियरिंग गाथा
मिजोरम की जलवायु और भूगोल ने इस परियोजना को चुनौतीपूर्ण बना दिया। पूरे वर्ष में केवल 4–5 महीने ही निर्माण कार्य संभव था। भारी वर्षा, भूस्खलन, दुर्गम सड़कें, निर्माण सामग्री की ढुलाई, श्रमिकों की कमी और नेटवर्क समस्याओं के बावजूद भारतीय रेल ने इंजीनियरिंग कौशल और प्रबंधन क्षमता का परिचय देते हुए समय पर यह कार्य पूर्ण किया।

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