24 News Update उदयपुर। जैनाचार्य विजय रत्नसेन सूरीश्वर जी म. सा. की शुभ निश्रा में चित्रकूट नगर में भद्रंकर परिवार द्वारा आयोजित सामूहिक उपधान तप बडे उत्साह से चल रहा है। धर्मसभा में प्रवचन देते हुए जैनाचार्यश्री ने कहा कि -नवकार महामंत्र मात्र 68 अक्षर प्रमाण है। नौ पद और आठ संपदामय छोटे से नवकार महामंत्र में समस्त श्रुतज्ञान अर्थात् चौदह पूर्व के ज्ञान का समावेश है । जैसे दूध का सार मलाई है, फूल का सार उसकी सुगंध है वैसे ही समस्त श्रुतज्ञान का सार नवकार महामंत्र है। जैसे एक छोटे से चेक में लाखों-करोडों रुपयों की शक्ति है अथवा एक छोटी-सी दवाई में पूरे शरीर में रहे रोग को शमन करने की ताकात है, वैसे ही इस 68 अक्षर वाले नवकार महामंत्र में चौदह पूर्व का ज्ञान समाया हुआ है।जीवन की बाल्यावस्था में आहार की आसक्ति रहती है । युवावस्था में धनार्जन एवं मौज-शौक में मन लीन बनता है और वृद्धावस्था में व्यक्ति को मरण का भय हैरान करता है।जीवात्मा को सबसे अधिक स्नेह शरीर के साथ है।
आचार्य श्री ने कहा कि शरीर को छोड़ते समय यदि हमारे मन में शुभ भाव रहते हैं, तो हमारी सद्गति होती है, अन्यथा दुर्गति ही होती है।जीवन के अंतिम समय देह को छोड़ते मन में समाधि भाव पाने के लिए नवकार महामंत्र में मन की एकाग्रता जरूरी है। उस एकाग्रता को पाने के लिए हमें जीवन भर में बार-बार नवकार महामंत्र का स्मरण, ध्यान, जाप करना चाहिए । 5 नवंबर को प्रात: 7.30 बजे श्री महावीर जैन विद्यालय से पूज्य आचार्य भगवंत का चातुर्मास परिवर्तन श्रीमान महेंद्र सेठ खेलगांव गोगुंदा वाले के वहां होगा ।
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