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विज्ञापन के आगे लंबलेट हुई पत्रकारिता: अखबार ने चलाई ‘क्लीन चिट’ की फेक न्यूज

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24 News Update उदयपुर। उदयपुर में सामने आए सेंट ग्रिगोरियस स्कूल प्रकरण ने न केवल शिक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि पत्रकारिता की विश्वसनीयता को लेकर भी गंभीर चिंताएं पैदा कर दी हैं। हैरानी की बात यह है कि एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र (दैनिक भास्कर नहीं) ने स्कूल प्रबंधन के कथन को ही अंतिम सत्य मानते हुए, बिना किसी स्वतंत्र पुष्टि के ‘क्लीन चिट’ जैसी संवेदनशील घोषणा को खबर का रूप दे दिया। जबकि 24 न्यूज अपडेट की पड़ताल में और शिक्षा विभाग के अफसरों से हुई बातचीत में स्पष्ट हुआ कि शिक्षा विभाग की ओर से न तो स्कूल को कोई क्लीन चिट दी गई है और न ही जांच समाप्त हुई है। उल्टे, विभाग ने इस मामले में तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन कर रखा है, जो अभी विभिन्न पक्षों—शिक्षकों, प्रबंधन और अन्य हितधारकों—की राय लेकर जांच कर रही है।

खुद बन गया पार्टी
ऐसे में सवाल उठता है कि जिस ‘क्लीन चिट’ को खबर की सुर्खी बनाया गया, वह आई कहां से? क्या यह प्रशासनिक निर्णय था या सिर्फ स्कूल प्रबंधन का दावा, जिसे बिना सवाल किए छाप दिया गया? आरोप यह भी हैं कि संबंधित समाचार पत्र ने मामले की रिपोर्टिंग में एक खास पक्ष के लिए बढ़-चढ़कर भूमिका निभाई। वो खुद एक पार्टी बनता हुआ नजर आया जिसके बहुत चर्चे हो रहे हैं। स्कूल प्रबंधन की प्रेस बातचीत को ही समाचार का आधार बना लिया गया, जबकि प्रभावित शिक्षकों के आरोप, विभागीय जांच और प्रशासनिक प्रक्रिया को या तो हल्के में लिया गया या पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया। मीडिया की भूमिका सत्ता या प्रबंधन के पक्ष में खड़े होने की नहीं, बल्कि सवाल पूछने की होती है। लेकिन यहां तस्वीर उलटी नजर आती है—जहां जांच जारी है, वहां निर्णय सुना दिया गया। जहां जवाबदेही तय होनी थी, वहां बचाव का मंच तैयार कर दिया गया।

विज्ञापन का खुला खेल
सबसे गंभीर आरोप यह है कि इस पूरी कवरेज के पीछे विज्ञापन और आपसी समझ का खेल चल रहा है। तुम मुझे बचाओ, मैं तुम्हें विज्ञापन से सपोर्ट करूंगा। यही कारण बताया जा रहा है कि सरकारी स्तर पर उठे सवालों और विभागीय जांच की सच्चाई को सामने लाने के बजाय, खबर को स्कूल प्रबंधन के हित में मोड़ दिया गया। ​इस मामले में शिक्षा विभाग में जब हमने पड़ताल की तो सामने आया कि दबाव बना कर कुछ दस्तावेजों को वापस दिलवाने जैसा कोई काम हुआ है। इस मामले में विभाग में जबर्दस्त नाराजगी है। जब कुछ बड़े लोगों ने सवाल उठाया कि क्लिन चिट कहां हैं, हमाको भी दिखा दो, तो ना तो मीडिया समूह बता पाया ना ही विभाग। ऐसे में विभाग से समवेत स्वर उठा कि है तो ये न्यूज फेक मगर क्योंकि नियमों में बंधे हैं और किसी प्रकार का सार्वजनिक बयान देने पर उन्हें टारगेट किया जा सकता है, इस​लिए उनका कोई ओपीनियन नहीं है।
यह मामला केवल एक स्कूल या दो शिक्षकों का नहीं है। यह उस पत्रकारिता पर सवाल है, जो नैतिकता, संतुलन और सत्यापन जैसे मूल सिद्धांतों को दरकिनार कर दे। जब खबरें विज्ञापन के हिसाब से तय होने लगें, तो लोकतंत्र का चौथा स्तंभ खुद कटघरे में खड़ा हो जाता है।

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