24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। भाजपा उदयपुर शहर जिला की नई कार्यकारिणी की घोषणा ने स्थानीय राजनीति में नई हलचल पैदा कर दिया है। सात महीने तक खिंची इस कवायद के बाद आज जिलाध्यक्ष गजपाल सिंह राठौड़ ने 41 पदाधिकारियों की सूची जारी कर दी। पहली नजर में यह “संतुलित कार्यकारिणी“ दिखाई देती है, लेकिन बारीकी से देखें तो इसमें कई राजनीतिक संकेत छिपे हैं। सबसे बड़ा संकेत है मेवाड़ के दिग्गज नेता गुलाबचंद कटारिया के प्रभाव का कम होना और प्रमोद सामर का उभरता हुआ असर।
कटारिया गुट की पंखुड़ियां बिखरी
गुलाबचंद कटारिया, जो लंबे समय तक उदयपुर भाजपा की राजनीति का केंद्रीय चेहरा रहे, अब पंजाब के राज्यपाल हैं। उनके प्रभाव क्षेत्र से जुड़े कई नाम जैसे राजकुमार चित्तौड़ा, अतुल चंडालिया, दीपक बोल्या, गजेन्द्र भंडारी और डॉ. किरण जैन इस बार कार्यकारिणी से बाहर हैं। पार्टी गलियारों में चर्चा है कि “गुलाबजी के बड़े शूज़ में अब गजपाल-सामर का गुट पांव डाल रहा है।“ पांवाधोक से पगबाधा तक का सफर दिखाई देने लगा है। शहर की कार्यकारिणी में यह प्रयोग साफ दिख रहा है और आने वाले दिनों में देहात संगठन में भी ऐसी ही तस्वीर बनने की संभावना है। ऐसे में कहा जा सकता है कि अब गुलाबजी के गुट वाले लोगों को नए ठौर तुरंत तलाशने होंगे। कुछ ने उनसे छिटकने के प्रयास भी शुरू कर दिए हैं।
प्रमोद सामर की छाया और नए समीकरण
घोषित सूची में प्रमोद सामर का प्रभाव साफ झलकता है। महामंत्री पद पर उप महापौर रहे पारस सिंघवी के साथ देवीलाल सालवी और पहली बार पंकज बोराणा का नाम आया है। बोराणा की भीड़ जुटाने की क्षमता और युवा चेहरा होने को संगठन ने तवज्जो दी, लेकिन यह भी माना जा रहा है कि उन्हें लाकर कटारिया गुट के समीकरण तोड़े गए हैं। पारस सिंघवी के लिए यह पद उचित तो नहीं दिखता है लेकिन विधायक ताराचंद जैन को बैलेंस करने के लिए उनका होना इस कार्यकारिणी में जरूरी हो गया था।
महिला प्रतिनिधित्वः भाजपा संविधान को रख दिया ताक में
भाजपा संविधान के अनुसार एक तिहाई महिला प्रतिनिधित्व होना चाहिए, लेकिन 41 पदाधिकारियों में सिर्फ 6 महिलाएं ही शामिल हैं। तीन महामंत्रियों में एक महिला प्रतिनिधि परंपरा रही थी, लेकिन इस बार तीनों ही पुरुष हैं। पहले किरण जैन जैसी सक्रिय महिला नेता थीं, लेकिन नई टीम में वे बाहर हो गईं। संविधान के अनुसार कार्यकारिणी नहीं बनने पर संगठन के भीतर भी सवाल उठने लगे हैं।
पुराने चेहरों का पुनर्वास और कुछ का वनवास
पूर्व जिलाध्यक्ष तख्तसिंह शक्तावत को उपाध्यक्ष बनाया गया है, जो उनके लिए “डिमोशन“ जैसा कहा जा रहा है। कोई बडे पद पर रहा नेता आखिर क्यों नीचे का पद स्वीकार कर रहा है यह तो वो ही बता सकता है मगर यह परसेप्शन कितना सही है यह तो वक्त ही बताएगा। इसी तरह उदयपुर शहर विधायक ताराचंद जैन की बैलेंसिंग के लिए पारस सिंघवी को कार्यकारिणी में लिया गया है जिससे यह साफ हो गया है कि बर्तन बजते रहने चाहिए वाला प्रयोग चलता रहेगा। वहीं रवि नाहर लगातार कोषाध्यक्ष बने रहना उनकी “चमत्कारिक आर्थिक पकड़“ को दिखाता है। उनके पास वो कुंजी या खजाने की मास्टर-की जरूर है जो जादुई है।
दूसरी ओर संभाग के मीडिया प्रभारी चंचल अग्रवाल जैसे नेताओं का नाम नहीं आने से जाना कई लोगों को चौंका गया। हालांकि उनके लिए एक व्यक्ति एक पद का सिद्धांत वाली बात कही जा रही है लेकिन कटारिया गुट से होने से उनको नुकसान उठाना पड़ा है। उनके नहीं होने से नई टीम को ज्यादा डेटा माइनिंग करनी पड़ सकती है।
बूथ और जमीनी समीकरण व मनी व मसल पावर
सूत्रों का कहना है कि नई कार्यकारिणी की असली परीक्षा बूथ स्तर पर होगी। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह “नई बयार और नया गुट“ उदयपुर भाजपा में धीरे-धीरे कटारिया गुट को पूरी तरह किनारे लगाने की ओर बढ़ रहा है। नगर निगम चुनाव में पार्षदों की सक्रियता और अब पंचायत चुनाव में यह टीम कितनी पकड़ बना पाती है, इससे संगठन का भविष्य तय होगा। मनी और मसल पावर के साथ-साथ जातीय समीकरण और बूथ मैनेजमेंट क्षमता यहां की राजनीति की दिशा तय करेंगे।
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