• सांसद मन्नालाल रावत के पत्र पर जनजाति कार्य मंत्रालय ने किया स्पष्ट
  • रावत उपनाम की गलत व्याख्या कर अनुसचित जनजाति के संवैधानिक हक छीनने की शिकायत की थी


24 न्यूज़ अपडेट उदयपुर। रावत उपनाम का जातिसूचक व्याख्या कर अनुसूचित जनजातियों के संवैधानिक हक छीनने के मामले में जनजातीय कार्य मंत्रालय ने साफ कर दिया है कि अगर किसी व्यक्ति का भू-अभिलेख में जाति अथया वर्ग गलत अंकित कर दिया गया है तो वह संशोधन या सुधार के लिए संबंधित तहसीलदार को आवेदन प्रस्तुत कर सकता है। साथ ही इस संबंध में अगर किसी व्यक्ति विशेष से इस प्रकार की कोई शिकायत प्राप्त होती है तो इसकी विस्तृत जांच भी करायी जा सकती है।
उल्लेखनीय है कि उदयपुर सांसद डॉ. मन्ना लाल रावत ने इस संबंध में जनजातीय कार्य मंत्री जुएल ओराव को विस्तृत पत्र लिखकर अवगत करवाया था कि राज्य के उदयपुर एवं चितौड़गढ़ जिले के वल्लभनगर, कानोड, भीण्डर, डूंगरा, बड़ी सादड़ी क्षेत्र में रावत उपनाम की जातिसूचक व्याख्या कर अनुसूचित जनजातियों के सवैधानिक हक छीनते हुए भीलों को अन्य पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में दर्ज किया जा रहा है।
सांसद श्री रावत ने बताया कि उदयपुर एवं चित्तौड़गढ़ क्षेत्र के राजस्व अथवा अन्य सक्षम अधिकारियों द्वारा अनुसूचित जनजाति के क्रमांक 1 पर दर्ज भील समाज में परम्परागत पदवी रावत भी है, के आधार पर बड़ी संख्या में इस समाज के लोगों को अनुसूचित जनजाति के संवैधानिक अधिकार यथा कृषि भूमि को अन्य श्रेणी के लोगों को अवैध रूप से बेचान किया जा रहा है, साथ ही इस प्रक्रिया में नियोजन, शिक्षा व राजनीतिक पदों के लिए संवैधानिक आरक्षण सम्बन्धित प्रावधान का भी गम्भीर हनन किया गया है।
इसके जवाब में जनजातीय कार्य मंत्रालय ने सांसद श्री रावत को पत्र लिखकर बताया कि इस संबंध में राजस्थान सरकार को मामला संदर्भित किया गया था और मामले पर टिप्पणी देने को कहा गया था। राजस्थान सरकार ने सूचित किया है कि राजस्थान राज्य में अनुसूचित जनजाति वर्ग को शिक्षा, राजकीय सेवा एवं संवैधानिक पदों पर आरक्षण तथा अन्य लाभ, अनुसूचित जनजाति के जाति प्रमाण पत्र के आधार पर प्रदान किये जाते हैं। राज्य में अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र भारत सरकार द्वारा राजस्थान अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (संशोधन) अधिनियम, 1976 से जारी अनुसूचित जनजातियों की सूची के अनुसार जारी किये जाते हैं।
इसके अतिरिक्त राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 136 के अनुसार भूमि अभिलेख अधिकारी किसी भी समय, किसी लिपिकीय त्रुटि को तथा अधिकारों के अभिलेख या रजिस्टर में की गई किसी त्रुटि को, जिसे हितबद्ध पक्षकार स्वीकार करते हैं, या जिसे राजस्व अधिकारी किसी रजिस्टर में अपने निरीक्षण के दौरान नोटिस करता है, विहित रीति से ठीक कर सकता है या ठीक करवा सकता है, परन्तु जब राजस्व अधिकारी द्वारा अपने निरीक्षण के दौरान किसी अधिकार अभिलेख में कोई त्रुटि पाई जाती है तो तब तक कोई त्रुटि ठीक नहीं की जाएगी जब तक कि पक्षकारों को कारण बताओ नोटिस न दे दिया गया हो। अतः अगर किसी व्यक्ति का भू-अभिलेख में जाति अथया वर्ग गलत अंकित कर दिया गया है तो वह संशोधन या सुधार के लिए संबंधित तहसीलदार को आवेदन प्रस्तुत कर सकता है।
इस संबंध में अगर किसी व्यक्ति विशेष से इस प्रकार की कोई शिकायत प्राप्त होती है तो इसकी विस्तृत जांच करायी जा सकती है।


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By desk 24newsupdate

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