24 न्यूज अपडेट, खेरवाड़ा। श्री राम मंदिर सत्संग सभागार में दिव्य राम कथा के नौवे दिन गाजियाबाद के प्रसिद्ध कथा वाचक वीरेंद्र शास्त्री ने राम का वनवास तथा केवट का भाग्य का रोचक प्रसंग का वर्णन किया। दिव्य राम कथा के प्रवक्ता जगदीश व्यास के अनुसार शबरी आजीवन घर में रही और केवट घाट पर रहा तो प्रभु राम उनसे मिलने गये परंतु जो मनुष्य न घर में रहता है और न घाट पर रहता है वह न घर का और न घाट का रह जाता है ।प्रभु राम उनसे नहीं मिलते हैं। भगवान राम के चरण धोते हुए केवट ने कहा कि आपका और मेरा एक ही कार्य है आप भवसागर को पार कराते हैं और मैं गंगा को पार कराता हूं । भगवान राम के चरित्र को 14 वर्ष साथ रहने पर लक्ष्मण भी नहीं जान पाए तो हम साधारण मनुष्य और केवट कैसे जान पाते। जब राम ने गंगा पार करने के बाद केवट को उतराई देने के लिए जानकी जी की अंगूठी देने को तैयार हुते तब केवट ने कहा कि राजा जनक ने आपके पैर धोए तो जानकी दी और मैं आपके पैर धो रहा हूं तो मैं जानकी की अंगूठी कैसे ले सकता हूं ? इसलिए इसे आप अपने पास ही रखिए। ब्रह्मा ने जब भगवान विष्णु के चरण धोये थे तब कमंडल में गंगा की उत्पत्ति हुई और वही गंगा आज जब केवट ने कठौती में भगवान राम के चरण धोए तो वहां पर भी गंगा की उत्पत्ति हुई। “ मध्य में “मुसाफिर चलते जाना है“ मेरी छोटी सी है नाव तेरे जादू भरे पाव“ का मार्मिक भजन गाया गया तो सभी भक्त राममय हो गए और झूमने लगे।
जब भगवान का राज्याभिषेक हो रहा था तो कैकई ने पूर्व के दिये गये दो वरदान मांगे जिसमें राम को वनवास और भरत को राज्याभिषेक ।जब राम ने इस आदेश को सुना तो जानकी और लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष के लिए वनवास की ओर प्रस्थान किया । अयोध्या की जनता ने खूब समझाया परंतु राम ने कहा कि पिता के आज्ञा को में उल्लंघन नहीं कर सकता हूं। मैं पूरे 14 वर्ष वनवास में रहकर ही वापस अयोध्या आऊंगा। अयोध्या से राम का वन गमन हो गया ।महावीर जांगिड़ तथा सत्यनारायण के चरणधोक के बाद महाआरती तथा इसके पश्चात महाप्रसाद का वितरण किया गया।
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