-गोकाष्ठ से कम मात्रा और कम व्यय में होगा दाह संस्कार
-सनातन में दाह संस्कार में गोकाष्ठ का महत्व

24 News Update उदयपुर। पर्यावरण संरक्षण और वृक्षों को बचाने की मुहिम के तहत उदयपुर में पहली बार दो शवों का गोकाष्ठ से बनी लकडी से दाह संस्कार किया गया। यह दाह संस्कार अशोक नगर स्थित श्मशान घाट पर हुआ और दोनों शव लावारिस अवस्था में थे। उदयपुर में गोकाष्ठ की लकडी से दाह संस्कार की पहल को बेहतर माना जा रहा है, जिसमें लकडी की कम मात्रा और कम व्यय में दाह संस्कार हो पायेगा।
यह पहल उदयपुर में राहडा फाउंडेशन की ओर से की गई जिसमें इस पुण्य सेवा कार्य में महाराणा प्रताप सेना के संस्थापक मोहन सिंह राठौड़, भरत साहू, एवं अरुण शर्मा की प्रमुख भूमिका रही। फाउंडेशन की संस्थापक अध्यक्ष अर्चनासिंह चारण ने बताया कि महाराणा प्रताप सेना द्वारा दो लावारिस शव जिनमें एक महिला और एक पुरुष का था, दाह संस्कार के लिए अशोकनगर स्थित श्मशान घाट लाया गया। पुरुष का शव सूरजपोल थाना द्वारा अंतिम संस्कार हेतु सौंपा गया, जबकि महिला का शव अशाधाम संस्था द्वारा प्रदान किया गया। दोनों शवों का दाह संस्कार गौमाता के गोबर से बनी लकड़ी से किया गया, जो पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक अनोखी पहल है। यह उदयपुर ही नहीं, बल्कि पूरे राजस्थान में इस प्रकार का पहला दाह संस्कार माना जा रहा है। प्रदूषण नियंत्रण मंडल के सहयोग से गोकाष्ठ की लकडी शिवशंकर गौशाला में तैयार हुई, जो निशुल्क दी गई।
दाह संस्कार के दौरान राहडा फाउंडेशन की संस्थापक अर्चना सिंह चारण, कुसुम लता सुहलका, राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल से कुंज बिहारी पालीवाल, सफल पाटीदार, अशाधाम संस्था से सिस्टर डेनिसा, शंकर मीणा, संजय प्रजापत, और गजेन्द्र सिंह राठौड़ सहित अन्य समाजसेवी भी उपस्थित रहे। खास बात यह रही कि महिलाओं ने भी शवों पर गोकाष्ठ की लकडी रखने में सहयोग किया।
पर्यावरण संरक्षण की दिशा में पहल
गोकाष्ठ से दाह संस्कार को पर्यावरण संरक्षण की दिशा में बेहतर माना जा रहा है, क्योंकि इसमें लकडी की जरुरत नहीं रहती। गाय के गोबर से लकडी तैयार की जाती है जिससे पेडों का संरक्षण हो पायेगा। जितनी मात्रा में गोकाष्ठ का उपयोग होगा उससे ज्यादा मात्रा में लकडी को बचाया जा सकेगा।
सस्ता और सुलभ साधन
गोकाष्ठ से दाह संस्कार लकडी की तुलना में सस्ता होगा, क्योंकि यह लकडी की तुलना में कम खर्च पर मिलेगा। साथ ही लकडी की तुलना में यह हल्का भी होगा जिससे परिवहन में भी दिक्कत नहीं आयेगी। आम लकडी की तुलना में गोकाष्ठ से दाह संस्कार कम समय में हुआ। गोकाष्ठ लकडी केवल 3 क्विंटल लगी, जबकि आम लकडी में 6 से 7 क्विंटल का उपयोग होता है।
सनातन में गोकाष्ठ से दाह संस्कार सबसे श्रेष्ठ
सनातन धर्म में दाह संस्कार के दौरान लकडी के साथ कंडे रखने का भी प्रावधान है। कई समाजों में शव के पास कंडे बडी मात्रा में रखे जाते हैं, लेकिन आजकल कंडे कम मिलने से समस्या खडी हो जाती है। अब जब पूरा दाह संस्कार की गोकाष्ठ से होगा तो यह सबसे श्रेष्ठ होगा, क्योंकि अलग से कंडो की आवश्यकता नहीं रहेगी और शास्त्रों में भी इसका विधान है।
गोकाष्ठ से दाह संस्कार बढाने की पहल होगी
राहडा फाउंडेशन की संस्थापक अर्चना सिंह चारण ने बताया कि दक्षिणी राजस्थान में 100 प्रतिशत गोकाष्ठ से निशुल्क दाह संस्कार पहली बार उदयपुर में किया गया है। गोकाष्ठ फाउंडेशन की ओर से उपलब्ध करवाई गई। अब इसको बढाने की दिशा में काम किया जा रहा है।
जल्दी हुआ दाह संस्कार
24 News Update उदयपुर। पर्यावरण संरक्षण और वृक्षों को बचाने की मुहिम के तहत उदयपुर में पहली बार दो शवों का गोकाष्ठ से बनी लकडी से दाह संस्कार किया गया। यह दाह संस्कार अशोक नगर स्थित श्मशान घाट पर हुआ और दोनों शव लावारिस अवस्था में थे। उदयपुर में गोकाष्ठ की लकडी से दाह संस्कार की पहल को बेहतर माना जा रहा है, जिसमें लकडी की कम मात्रा और कम व्यय में दाह संस्कार हो पायेगा।
यह पहल उदयपुर में राहडा फाउंडेशन की ओर से की गई जिसमें इस पुण्य सेवा कार्य में महाराणा प्रताप सेना के संस्थापक मोहन सिंह राठौड़, भरत साहू, एवं अरुण शर्मा की प्रमुख भूमिका रही। फाउंडेशन की संस्थापक अध्यक्ष अर्चनासिंह चारण ने बताया कि महाराणा प्रताप सेना द्वारा दो लावारिस शव जिनमें एक महिला और एक पुरुष का था, दाह संस्कार के लिए अशोकनगर स्थित श्मशान घाट लाया गया। पुरुष का शव सूरजपोल थाना द्वारा अंतिम संस्कार हेतु सौंपा गया, जबकि महिला का शव अशाधाम संस्था द्वारा प्रदान किया गया। दोनों शवों का दाह संस्कार गौमाता के गोबर से बनी लकड़ी से किया गया, जो पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक अनोखी पहल है। यह उदयपुर ही नहीं, बल्कि पूरे राजस्थान में इस प्रकार का पहला दाह संस्कार माना जा रहा है। प्रदूषण नियंत्रण मंडल के सहयोग से गोकाष्ठ की लकडी शिवशंकर गौशाला में तैयार हुई, जो निशुल्क दी गई।
दाह संस्कार के दौरान राहडा फाउंडेशन की संस्थापक अर्चना सिंह चारण, कुसुम लता सुहलका, राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल से कुंज बिहारी पालीवाल, सफल पाटीदार, अशाधाम संस्था से सिस्टर डेनिसा, शंकर मीणा, संजय प्रजापत, और गजेन्द्र सिंह राठौड़ सहित अन्य समाजसेवी भी उपस्थित रहे। खास बात यह रही कि महिलाओं ने भी शवों पर गोकाष्ठ की लकडी रखने में सहयोग किया।
पर्यावरण संरक्षण की दिशा में पहल
गोकाष्ठ से दाह संस्कार को पर्यावरण संरक्षण की दिशा में बेहतर माना जा रहा है, क्योंकि इसमें लकडी की जरुरत नहीं रहती। गाय के गोबर से लकडी तैयार की जाती है जिससे पेडों का संरक्षण हो पायेगा। जितनी मात्रा में गोकाष्ठ का उपयोग होगा उससे ज्यादा मात्रा में लकडी को बचाया जा सकेगा।
सस्ता और सुलभ साधन
गोकाष्ठ से दाह संस्कार लकडी की तुलना में सस्ता होगा, क्योंकि यह लकडी की तुलना में कम खर्च पर मिलेगा। साथ ही लकडी की तुलना में यह हल्का भी होगा जिससे परिवहन में भी दिक्कत नहीं आयेगी। आम लकडी की तुलना में गोकाष्ठ से दाह संस्कार कम समय में हुआ। गोकाष्ठ लकडी केवल 3 क्विंटल लगी, जबकि आम लकडी में 6 से 7 क्विंटल का उपयोग होता है।
सनातन में गोकाष्ठ से दाह संस्कार सबसे श्रेष्ठ
सनातन धर्म में दाह संस्कार के दौरान लकडी के साथ कंडे रखने का भी प्रावधान है। कई समाजों में शव के पास कंडे बडी मात्रा में रखे जाते हैं, लेकिन आजकल कंडे कम मिलने से समस्या खडी हो जाती है। अब जब पूरा दाह संस्कार की गोकाष्ठ से होगा तो यह सबसे श्रेष्ठ होगा, क्योंकि अलग से कंडो की आवश्यकता नहीं रहेगी और शास्त्रों में भी इसका विधान है।
गोकाष्ठ से दाह संस्कार बढाने की पहल होगी
राहडा फाउंडेशन की संस्थापक अर्चना सिंह चारण ने बताया कि दक्षिणी राजस्थान में 100 प्रतिशत गोकाष्ठ से निशुल्क दाह संस्कार पहली बार उदयपुर में किया गया है। गोकाष्ठ फाउंडेशन की ओर से उपलब्ध करवाई गई। अब इसको बढाने की दिशा में काम किया जा रहा है।
जल्दी हुआ दाह संस्कार
Discover more from 24 News Update
Subscribe to get the latest posts sent to your email.