24 News Update सागवाड़ा (जयदीप जोशी)। नगर के महिपाल विद्यालय खेल मैदान में दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से आयोजित सात दिवसीय भगवान शिव कथा के तीसरे दिन कथा वाचक आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी गरिमा भारती ने भगवान शिव की महिमा का रसास्वादन करवाया।
साध्वी जी ने बताया कि यह समस्त धर्मग्रंथ हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा हमें प्रदत्त एक अनमोल धरोहर हैं। प्रभु का जीवन-चरित्र आज मानव समाज के लिए एक प्रेरणा स्तंभ है। प्रभु की पावन कथा रूपी गंगा में जब कोई व्यक्ति गोता लगाता है, तो वह अपने कर्म-संस्कारों की कालिमा से स्वयं को पवित्र बना लेता है।
प्रभु को प्राप्त करने के लिए मानव में श्रद्धा का होना अति आवश्यक है। श्रद्धा के अभाव में ही माता सती न भगवान शिव को समझ पाईं और न प्रभु श्रीराम को। नर-लीला करते देखकर वे उनकी वास्तविकता से परिचित नहीं हो पाईं।
आज यदि मानव में धर्म को लेकर दायरे बन चुके हैं, बुद्धि में संशय और भ्रम है, तो इसका एकमात्र कारण अज्ञान की दृष्टि है। सर्वप्रथम आवश्यकता है सद्गुरु की शरण में जाकर उस दिव्य दृष्टि को प्राप्त करने की, जिसके माध्यम से हम उस एक निराकार शक्ति, ज्योति स्वरूप परमात्मा का साक्षात्कार कर सकें।
साध्वी जी ने कहा कि पावन कथा से बढ़कर कोई दूसरा दिव्य ज्ञान-रसायन नहीं है, जो मानव जीवन को मुक्ति और सद्गति प्रदान कर सके। इस कथा को सुनकर माता पार्वती भगवान शिव से अमरता का वरदान प्राप्त करती हैं।
भगवान शिव के गले में पहनी नर-मुंड माला प्रत्येक जीव के आवागमन के चक्र को दर्शाती है। जिस प्रकार माता पार्वती ने भगवान शिव से ज्ञान प्राप्त कर अमरता को प्राप्त किया, उसी प्रकार शिव के गले में पहने नर-मुंडों की संख्या 108 पर आकर रुक गई थी।
ऐसे ही हमें भी उस ईश्वर के तत्व स्वरूप से जुड़कर आवागमन के चक्र से मुक्ति प्राप्त करनी है। शिव का प्रतिमा स्वरूप उनके साकार स्वरूप को दर्शाता है, जबकि उनका ज्योतिर्लिंग स्वरूप निराकार स्वरूप की ओर संकेत करता है। एक तत्व से न जुड़े होने के कारण आज हमारी दृष्टि में भेद है। कोई भगवान श्रीराम को मानता है, कोई प्रभु श्रीकृष्ण को, कोई शिव भगवान की पूजा करता है तो कोई आदि शक्ति मां जगदंबिका की। वास्तव में ज्ञान-नेत्र के अभाव में हम इन समस्त शक्तियों को अलग-अलग मानकर उनकी पूजा करते हैं, जबकि तत्व स्वरूप से यह सभी एक ही हैं।
सर्वश्री आशुतोष महाराज जी आज वह दिव्य दृष्टि प्रदान कर उस एक शक्ति से जोड़ रहे हैं, जिससे जुड़कर मानव की भेद-बुद्धि का नाश हो जाता है। निराकार और साकार स्वरूप के पीछे छिपे तत्व स्वरूप को जानकर ही मानव की भक्ति सार्थक होती है।
कथा के अंत में भक्तों द्वारा प्रभु की आरती की गई। कथा में नगर सहित आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों तथा उदयपुर, बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिलों से सैकड़ों की संख्या में भक्त उपस्थित रहे।
Discover more from 24 News Update
Subscribe to get the latest posts sent to your email.