24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। यूडीए और डीपीएस की परफेक्ट मिलीभगत रोज नए गुल खिला रही है। ऐसे-ऐस खुलासे हो रहे हैं जिनसे यूडीए की साख ही दांव ही पर लग रही है। उस पर उदयपुर के नेताओं और जनप्रतिनिधियों की सब कुछ जानते हुए भी चुप्पी बता रही है दाल में काला नहीं, पूरी दाल ही काली है। पूरा सिस्टम ही जैसे किसी के लिए गिरवी रख दिया गया है। जब इच्छा हुई, कागज चलाया, सेटिंग बिठाई और जमीन हाजिर। कोई फर्क नहीं पड़ता कितनी जांच कमेटियां बैठ रही है, कितनी रिपोर्टे चीख-चीख कर भ्रष्टाचार की दुहाई दे रही है। डीपीएस का भ्रष्टाचार का मॉडल रोज नए खेल खेल रहा है। आज हम एक और बड़े खेल का खुलासा करने जा रहे हैं जिसमें यूडीए की ओर से पहले से दो बार जमीन हड़प चुके डीपीएस को एक बार फिर से जनता की आंखों में धूल झोंकते हुए जमीन का एक और टुकड़ा देने की अनुशंसा कर दी गई है और वो भी कौड़ियों के दाम। बड़ा सवाल है कि ऐसा करते हुए ही आखिर यूडीए के अफसरों के हाथ क्यों नहीं कांपे?? उनका दिल ये सब करने की गवाही कैसे दे गया?? ये कौनसे पॉलिटिक प्रेशर की माया है या फिर सब तरफ माया ही माया है????
शहर में जमीनों के खेल का ताज़ा मामला सामने आया है, जहां उदयपुर विकास प्राधिकरण यूडीए ने जांच रिपोर्ट के नाम पर एक बार फिर डीपीएस स्कूल को कब्जाई जमीन कौड़ियों के दाम पर देने की सिफारिश कर दी है। भु-आवंटन नीति 2015 की अनदेखी करते हुए यह तीसरी बार हो रहा है कि जब डीपीएस स्कूल को बड़े-बड़े टुकड़ों में प्राधिकरण की जमीन आवंटित करने का रास्ता बनाया जा रहा है।
19.5 बीघा निजी जमीन के बावजूद सरकारी जमीन का आवंटन
2005 में डीपीएस संचालित करने वाली मंगलम एजुकेशन सोसायटी के पास पहले से करीब 19.5 बीघा जमीन मौजूद थी। इसके बावजूद वर्ष 2005 में गरीब आदिवासी बच्चों को शिक्षा देने के नाम पर 3,04,920 वर्ग फीट जमीन आवंटित करवा ली। इसके बाद स्कूल प्रबंधन ने कब्जा आगे बढ़ाते हुए नगर विकास प्रन्यास और फिर यूडीए की जमीन पर हाथ साफ किया और पिछली कांग्रेस सरकार के दौरान तीन बड़े टुकड़ेकृकुल 99,870 वर्ग फीटकृअपने नाम करवा लिए। इनमें से दो टुकड़े (50,274 वर्ग फीट) स्कूल की बाउंड्री वाल के अंदर नहीं थे बल्कि 60 फीट सड़क के उस पार सामने की तरफ स्थित थे।
शिकायत और जांच, लेकिन फिर वही खेल
जब इन घपलों की शिकायत मुख्य सचिव, राजस्थान सरकार तक पहुंची, तो आदेश पर जांच समिति बनाई गई। मगर जांच के बाद भी राहत देने का तरीका निकाल लिया गया। यूडीए या पूर्व की यूआईटी के अधिकारियों ने कब्जाई 23,894 वर्ग फीट जमीन को ‘गैप भूमि’ करार देते हुए उसे आवंटित करने की सिफारिश कर डाली।
प्राधिकरण द्वारा सरकार को भेजे गए पत्र में साफ लिखा गया हैः
आवंटित 3,04,920 वर्ग फीट में से 2,93,757 वर्ग फीट का लाइसेंस जारी हो चुका है। अतिरिक्त 11,163 वर्ग फीट को भी लीज डीड जारी करने का प्रस्ताव है।
निजी खातेदारी 4,43,312 वर्ग फीट में से 4,06,577 वर्ग फीट पहले ही लीज हो चुकी है। शेष में से सड़क पर आई जमीन हटाकर बची 12,731 वर्ग फीट को नियमन शुल्क लेकर लीज डीड करने की अनुशंसा है।
यानी कुल 23,894 वर्ग फीट जमीन दो हिस्सों में बांटकर डीपीएस को सौंपने की तैयारी है।
बदलते आंकड़े और ‘गणितज्ञों’ का कमाल
1 अगस्त 2022 को डीपीएस चेयरमैन ने तत्कालीन यूआईटी सचिव को पत्र लिखकर स्कूल की बाउंड्री के भीतर 8,69,058 वर्ग फीट जमीन बताई थी, जबकि उसी पत्र की गणना में यह आंकड़ा 8,80,221 वर्ग फीट निकला। आश्चर्यजनक रूप से, कब्जाई जमीन की गणना हर सचिव बदलने पर अलग-अलग होती रही, मानो नियम नहीं, बल्कि अधिकारियों की ‘गणित’ ही जमीन का आकार तय कर रही हो।
सवालों के घेरे में यूडीए
शहर के आम लोग मकान बनाने के लिए कर्ज लेकर बाजार भाव पर छोटे-छोटे प्लॉट खरीदते हैं। लेकिन डीपीएस मालिक कब्जा कर जमीन हड़पते हैं और यूडीए बिना किसी झिझक के वही जमीन औने-पौने दामों में उन्हें आवंटित कर देता है।
सबसे बड़ा सवाल यही है कि 23,894 वर्ग फीट कब्जाई जमीन को गैप भूमि मानकर आवंटन करने का प्रस्ताव आखिर किस नियमावली के तहत तैयार किया गया है? क्या यह सुविधा शहर के अन्य नागरिकों को भी मिलेगी, या फिर उदयपुर विकास प्राधिकरण ने केवल डीपीएस स्कूल के लिए ही कोई खास नियम बना रखे हैं, जहां जमीन पर कब्जा करो और बाद में उसे वैध करा लो?

