नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी ने बिना शोर-शराबे के संगठन के पावर-सेंटर में बड़ा बदलाव कर दिया है। बिहार सरकार में मंत्री और अपेक्षाकृत युवा चेहरे नितिन नबीन को पार्टी का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर भाजपा ने यह साफ कर दिया है कि अब संगठन पुराने विस्तारों और अस्थायी व्यवस्थाओं के भरोसे नहीं, बल्कि नए युग की रूपरेखा पर आगे बढ़ेगा।
रविवार को भाजपा संसदीय बोर्ड के फैसले की औपचारिक घोषणा जरूर हुई, लेकिन असल कहानी उस घोषणा के पीछे छुपे राजनीतिक संकेतों की है। जेपी नड्डा का कार्यकाल खत्म होने के बाद जिस कुर्सी को लंबे समय तक ‘एक्सटेंशन’ के सहारे चलाया गया, अब उस पर बैठाया गया है एक ऐसा चेहरा—जो उम्र में युवा, संगठन में पक्का और केंद्र की पावर-पॉलिटिक्स के लिए कम जोखिम वाला विकल्प माना जा रहा है।
कार्यकारी अध्यक्ष या भविष्य का ट्रायल?
पार्टी ने भले ही नितिन नबीन को ‘कार्यकारी’ अध्यक्ष कहा हो, लेकिन भाजपा की राजनीति में यह शब्द अक्सर परीक्षण काल का संकेत होता है। 45 वर्षीय नबीन को तब कमान सौंपी गई है, जब पार्टी 2029 की रणनीति, राज्यों के नेतृत्व संतुलन और संगठनात्मक पुनर्गठन के बेहद संवेदनशील दौर से गुजर रही है।
अगर नबीन इस भूमिका में फिट बैठते हैं, तो पार्टी के भीतर यह रास्ता खुल सकता है कि भाजपा को अब तक का सबसे युवा राष्ट्रीय अध्यक्ष मिले—जो संगठन को मोदी-शाह युग के बाद भी उसी लय में चलाए।
नड्डा से नबीन: सत्ता का स्मूद ट्रांजिशन
जेपी नड्डा अब केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हैं। संगठन और सरकार—दोनों जिम्मेदारियों को एक साथ ढोना अब पार्टी को भारी पड़ रहा था। ऐसे में नितिन नबीन की नियुक्ति को स्मूद ट्रांजिशन मॉडल के तौर पर देखा जा रहा है—जहां नड्डा सम्मानजनक दूरी पर रहते हुए संगठन छोड़ते हैं और नया चेहरा धीरे-धीरे पकड़ बनाता है।
यह वही मॉडल है, जिसे भाजपा पहले भी कई राज्यों में आजमा चुकी है।
बिहार फैक्टर और सोशल इंजीनियरिंग
नितिन नबीन का बिहार से आना महज संयोग नहीं है। बिहार वह राज्य है जहां भाजपा सामाजिक संतुलन, गठबंधन दबाव और संगठनात्मक विस्तार—तीनों मोर्चों पर प्रयोग कर रही है। नबीन को राष्ट्रीय भूमिका में लाकर पार्टी ने बिहार को यह संकेत भी दे दिया है कि राज्य को अब सिर्फ चुनावी प्रयोगशाला नहीं, बल्कि राष्ट्रीय नेतृत्व की नर्सरी के रूप में देखा जा रहा है।
मोदी-शाह की मुहर, विपक्ष का शोर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की बधाई केवल औपचारिक नहीं मानी जा रही। यह साफ संदेश है कि नितिन नबीन को शीर्ष नेतृत्व का भरोसा हासिल है। वहीं विपक्ष ने तुरंत सवाल खड़े कर दिए—कांग्रेस ने प्रक्रिया पर उंगली उठाई, आम आदमी पार्टी ने इसे ‘पर्ची सिस्टम’ बताया।
हालांकि भाजपा का इस पर चुप रहना भी राजनीति का ही हिस्सा है—क्योंकि पार्टी अक्सर अपने फैसलों का जवाब वक्त से देती है, बयान से नहीं।
संगठन के भीतर असली मुकाबला अभी बाकी
भाजपा में राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के कई दावेदार पहले से लाइन में हैं—अनुभवी चेहरे, सामाजिक समीकरण वाले नेता और संघ की पसंद वाले नाम। ऐसे में नितिन नबीन की यह एंट्री उन सभी के लिए एक साफ संदेश भी है—फैसला अभी खुला है, लेकिन दिशा तय हो चुकी है।
यह नियुक्ति न तो आकस्मिक है, न ही सिर्फ अस्थायी।
यह भाजपा के भीतर चल रही उस खामोश पावर-रीशफलिंग का हिस्सा है, जिसमें चेहरे बदले जाते हैं, लेकिन नियंत्रण हाथ से नहीं जाता।
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