24 न्यूज़ अपडेट डूंगरपुर। डूंगरपुर जिले की वर्षा, यह नहीं जानती थी कि बेटे प्रियांशु को समय पर और उचित पोषण न देना, उसे अतिकुपोषण की स्थिति में पहुँचा देगा। वर्षा ने बताया कि जब प्रियांशु 6 माह का हुआ, तब उसने ऊपरी आहार की शुरुआत देर से की और जो आहार दिया वह भी पैकेट बंद व बाजार से खरीदा हुआ होता था। स्तनपान और ऊपरी दूध को ही पर्याप्त मानने की उसकी सोच ने धीरे-धीरे बच्चे को कमजोर बना दिया।
1 से 7 मई के दौरान जब आंगनवाड़ी कार्यकर्ता मंजुला पटेल द्वारा बच्चों की लंबाई और वजन की जांच की जा रही थी, तब प्रियांशु का वजन सिर्फ 7.2 किलोग्राम और लंबाई 75.3 सेंटीमीटर पाई गई, जो उसकी उम्र के अनुसार बहुत कम थी। एमसीएचएन दिवस पर प्रियांशु को लाया गया, जहाँ एएनएम हेमा पटेल द्वारा उसकी चिकित्सकीय जाँच की गई और जटिलता पास होने के बाद भूख परीक्षण किया गया।
परीक्षण में जब प्रियांशु को आंगनवाड़ी सहायिका द्वारा बनाया गया मीठा दलिया दिया गया, तो उसने आराम से खा लिया – जिससे यह स्पष्ट हो गया कि बच्चा भूखा तो रहता है, परंतु घर पर उसे नियमित और संतुलित आहार नहीं दिया जा रहा।
अम्मा कार्यक्रम के अंतर्गत उसी दिन प्रियांशु को पंजीकृत किया गया और उसकी माँ को विस्तृत जानकारी दी गई – जैसे कि किस बर्तन में, कितनी मात्रा में, और कितनी बार खाना देना है। निगरानी प्रपत्र भी सौंपा गया, जिसमें भोजन देने का समय, प्रकार और टिक-मार्क करने की प्रक्रिया समझाई गई।
चार महीनों तक लगातार कार्यकर्ता और आशा द्वारा घर पर जाकर खानपान संबंधी मार्गदर्शन दिया गया। घर में घी, गुड़, तेल, और शक्कर का उपयोग कर प्रियांशु की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के सुझाव दिए गए। आहार कैलेंडर रसोई में लगाया गया ताकि प्रियांशु को विविध रेसिपियों से खाना खिलाया जा सके।
साप्ताहिक वजन मापन और परिवार से संवाद के साथ, बालाहार प्रीमिक्स की रेसिपी बनाकर भी दी गई। कार्यकर्ता ने बार-बार निगरानी प्रपत्र भरने, साफ-सफाई रखने और समय पर भोजन देने की महत्ता बताई।
आज, प्रियांशु न केवल स्वस्थ है बल्कि अत्यधिक सक्रिय और खुशमिजाज भी है। उसकी माँ वर्षा, दादा और दादी ने खुशी जताते हुए बताया, “अब हम समय पर खाना खिलाते हैं, उसकी देखभाल करते हैं, बातें करते हैं और उसके साथ खेलते हैं।
“गलत ऊपरी आहार और अनजाने में हुई लापरवाही के बाद “अम्मा” कार्यक्रम ने लौटाया प्रियांशु का बचपन”

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