हर प्रस्तुति ने साकार की शिल्पग्राम उत्सव की थीम—‘लोक के रंग, लोक के संग’
उदयपुर। जब भक्ति में शारीरिक सामर्थ्य और आध्यात्मिक समर्पण एक साथ जुड़ जाए, तब गोटिपुआ जैसा विलक्षण नृत्य जन्म लेता है। शिल्पग्राम उत्सव की पांचवीं संध्या गुरुवार को मुक्ताकाशी मंच पर ओडिशा के पारंपरिक गोटिपुआ नृत्य ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। स्त्री वेश, नारी सुलभ लावण्य और कठिन एक्रोबेटिक करतबों का ऐसा संगम देखने को मिला कि पूरा शिल्पग्राम तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
सबसे रोचक बात यह रही कि मंच पर नृत्य करती दिखाई दे रहीं सभी ‘नर्तकियां’ वास्तव में लड़के थे, जिन्होंने संपूर्ण स्त्री वेश धारण कर भगवान जगन्नाथ को रिझाने के लिए भक्ति और कौशल का अद्भुत प्रदर्शन किया। यह तथ्य जानकर दर्शक हैरान रह गए और हर प्रस्तुति पर दांतों तले उंगली दबाते नजर आए।
नृत्य के दौरान नर्तकों ने जहां सधे हुए शास्त्रीय स्टेप्स और कोमल मुद्राओं से नारी सौंदर्य को उकेरा, वहीं रोमांचक एक्रोबेटिक करतब, मानव पिरामिड और संतुलन के कठिन प्रयोगों ने प्रस्तुति को सांस रोक देने वाला बना दिया। हर करतब के साथ दर्शकों की ‘वाह-वाह’ और तालियों की गूंज बढ़ती चली गई।

देशभर की लोक प्रस्तुतियों से सजा शिल्पग्राम का मंच
उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, उदयपुर द्वारा आयोजित दस दिवसीय शिल्पग्राम उत्सव के पांचवें दिन की शाम देश के विभिन्न राज्यों की रंग-बिरंगी लोक प्रस्तुतियों से सजी रही। हर प्रस्तुति ने उत्सव की मूल भावना ‘लोक के रंग-लोक के संग’ को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया।
- गुजरात की गरबा प्रस्तुति पर दर्शक झूम उठे।
- जम्मू के पारंपरिक डोगरी लोकनृत्य जगरना ने सभी को मंत्रमुग्ध किया।
- राजस्थान की सहरिया आदिवासी संस्कृति को दर्शाता सहरिया स्वांग और पारंपरिक सफेद आंगी गेर ने खूब सराहना बटोरी।
- गोवा की नाविक लोककथा पर आधारित प्रस्तुति ने भावनात्मक रंग घोले।
- त्रिपुरा के होजागिरी नृत्य में सिर पर बोतल रखकर किया गया अद्भुत संतुलन दर्शकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा।
- ओडिशा की जनजातीय संस्कृति को दर्शाता संभलपुरी नृत्य और
- महाराष्ट्र के मल्लखंभ कलाकारों के साहसिक करतबों ने रोमांच भर दिया।
इसके अलावा हरियाणा की प्रसिद्ध घूमर, राजस्थान के लोकदेवता गोगाजी को समर्पित डेरू नृत्य, पश्चिम बंगाल का मार्शल आर्ट से युक्त नटुआ लोकनृत्य, छत्तीसगढ़ की पंडवानी कथा और मार्शल आर्ट से भरपूर थांगटा-स्टिक प्रस्तुति ने दर्शकों को पूरी तरह बांधे रखा।
कार्यक्रम का सशक्त और प्रभावी संचालन दुर्गेश चांदवानी एवं मोहिता दीक्षित ने किया।
‘हिवड़ा री हूक’ में मेलार्थियों ने दिखाई अपनी प्रतिभा
शिल्पग्राम उत्सव के बंजारा मंच पर चल रहे ‘हिवड़ा री हूक’ कार्यक्रम का भी गुरुवार को पांचवां दिन रहा। इस मंच पर मेलार्थियों ने स्वयं गीत, कविताएं और अभिव्यक्तियां प्रस्तुत कर अपनी रचनात्मक प्रतिभा का प्रदर्शन किया।
को-ऑर्डिनेटर सौरभ भट्ट द्वारा आयोजित प्रश्नोत्तरी में सभी आयु वर्ग के दर्शकों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया और सही उत्तर देने वालों को मौके पर ही उपहार प्रदान किए गए।
थड़ों पर दिनभर लोक रंजन, बहरूपियों ने बांधा समां
शिल्पग्राम के विभिन्न थड़ों पर सुबह 11 बजे से शाम 6 बजे तक निरंतर लोक प्रस्तुतियों का दौर चलता रहा। कहीं कच्ची घोड़ी, कहीं गवरी-गरबा, कहीं मांगणियार गायन, तो कहीं बाजीगरों और बीन-जोगियों के करतब मेलार्थियों का मनोरंजन करते रहे।
इसके साथ ही शिल्पग्राम परिसर में घूमते बहरूपियों, विभिन्न स्थानों पर स्थापित पत्थर की मूर्तियां और आकर्षक संरचनाएं दर्शकों के लिए न केवल आकर्षण का केंद्र बनी रहीं, बल्कि ये फेवरेट सेल्फी पॉइंट्स भी बन गईं।
शिल्पग्राम उत्सव की यह सांस्कृतिक संध्या लोक परंपराओं की जीवंतता, विविधता और सौंदर्य का उत्सव बनकर दर्शकों की स्मृतियों में बस गई।
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