24 News Update. उदयपुर। मोहनलाल सुखाड़िया विश्चंवविद्यालय की चंपाबाग की कब्जाई व जबरन हथियाई जमीन के मामले में सांसद मन्नालाल रावत ने मोर्चा खोला है, सीएम को पत्र लिख कर, जमीन को फिर से विश्वविद्यालय को दिलाने की मांग कर दी है। इस मांग से राजनीतिक भूचाल आ गया है क्योंकि खुद भाजपा में ही बरसों से मलाई खा रही जमीनखोर लॉबी इससे असहज हो गई है। उनकी सरपरस्ती में पनप रहे जमीन माफिया और खास प्रशासनिक लॉबी को सूझ ही नहीं रहा कि अब करें तो क्या करें?? कोई बाहर का व्यक्ति मांग उठाता तो अब तक सब मिल कर उस पर पिल पड़ते, जैसे प्रोफेसर अमेरिकासिंह के मामले में हुआ था, मगर यहां तो अंदरखाने से उठी आवाज का जवाब देना बहुत भारी पड़ रहा है। नेताओं की गोद में बैठे कुछ प्रशासनिक अफसर भी इस मांग से असहज हो गए हैं। वे नगर सेठ भाई साहब की लॉबी की मानें या फिर नई बयार के साथ चलें??
सबको पता है कि अब तक भाजपा में ही नगर सेठ भाई साहब की जमीन वाली पावरफुल लॉबी और उनके सिपहसालार इस मुद्दे पर कुंडली मार कर बैठे थे। जग जाहिर तथ्य है कि पूर्व कुलपति प्रोफेसर अमेरिकासिंहजी के खिलाफ चंपाबाग की जमीन को लेकर किसने मोर्चा खोला, किस तरह से भाई साहब के दखल पर भाजपा—कांग्रेस के दिग्गज जमीनखोर एक हुए और प्रोफेसर अमेरिकासिंह को एक अन्य मामले में उलझाते हुए ऐसे हालाता पैदा कर दिए कि उन्हें उदयपुर से ही विदाई लेनी पड़ गई। तब राज्यपाल के आदेश आए संभागीय आयुक्त के नाम कि जमीन को खाली करवाओ, कोर्ट के आदेश की तामील करवाओ, मगर हुआ क्या?? भाई साहब की तूती बोलती थी, ब्यूरोक्रेसी में किसकी हिम्मत की कार्रवाई कर दे, सो जमीन पर 44 साल से कब्जा बरकरार है। एनएसयूआई ने बोर्ड लगवाए कि जमीन सुविवि की है, मगर बोर्ड लगवाने वालों को ऐसा धमकाया गया कि बाद में वे विरोध का झंडा ही बुलंद नही कर पाए। जमीन वाली लॉबी को भाई साहब ने उसके बाद आशीर्वाद देते हुए साफ कह दिया कि चाहे अमेरिकासिंह आ जाए या काई ओर, चम्पाबाग का बाल बांका नहीं होने वाला है। कोर्ट का क्या है, आदेश आते—जाते रहते हैं। अफसर मैनेज हैं, दोनों दलों के लोकल नेता मैनेज हैं फिर फिकर नोट।
मगर भाजपा उदयपुर की नई कार्यकारिणी बनने के बाद से बयार ही बदल गई है। भाई साहब की लॉबी एकदम दरकिनार कर दी गई है। पार्टी में एकदम विचार बन गया है कि आखिर कब तक दूर संवेदी उपग्रहों की सेवाओं से नेटवर्क चलाएंगे। जबकि लोकल नेटवर्क की सेवाएं ही उससे ज्यादा क्वालिटी वाली मिल रही है। उपग्रह वाले संकेतों की काट होते ही अब खुद दूर संवेदी संदेश भेजने वालों पर संकट आ गया है।
ऐसे में चंपाबाग का नाम आते ही उदयपुर में राजनीति की मिट्टी फिर हिल गई है। सविना एक्सटेंशन का विवाद अभी ठंडा भी नहीं पड़ा है और जमीनखोर नेता एक् के बाद एक एक्सपोज होकर पार्टी की छवि को बट्टा चूना लगा रहे हैं, ऐसे माहौल में चंपाबाग प्रकरण से भाजपा के भीतर एक और भू-राजनीतिक भूकंप महसूस किया जा रहा है। कोई इसे टेक्टोनिक प्लेट के सरकने जैसा कह रहा है। एक प्लेट सरक कर दूर जा रही है और उससे बने नए भूभाग में लगातार भूकंप के झटके व जीवित ज्वालामुखी जैसी राजनीतिक घटनाएं होने लगी हैं।
सांसद का ब्यूरोक्रेसी को साफ संकेत—कठपुतली बनने से काम नहीं चलेगा
सांसद डॉ. मन्नालाल रावत जो खुद सुविवि से पीएचडी कर चुके हैं। उन्होंने 4,000 करोड़ रुपये मूल्य वाली चम्पाबाग जमीन पर 44 साल से बने अवैध कब्जों का मुद्दा उठाकर एक बार फिर यह संदेश दे दिया कि वे पार्टी संगठन में चल रही अंदरूनी हलचलों से बेखौफ हैं। व उसमें नगर सेठ भाई साहब के बनाए किलों को ढहाते हुए खुद अपनी नई धारदार उपस्थिति दर्ज करवाना चाहते हैं। नई जिला कार्यकारिणी के बाद माना जा रहा था कि ‘पुराने युग’ का अवसान शुरू हो चुका है, मगर उसकी चाल इतनी तेज होगी, यह अब साफ दिखाई दे रहा है। अब सांसद ने जमीन के मसले को उठाकर भाजपा के भीतर शक्ति-संतुलन को केलकुलेटेड रूप से सीधी चुनौती दे दी है। सांसद हमेशा अपनी बातचीत में इको सिस्टम की बात करते हैं तो उन्हीं के शब्दों को काम में लेकर कह सकते हैं कि उदयपुर भाजपा के अंदर अस्तांचलगामी इको सिस्टम को पूरी तरह से छिन्न—भिन्न करने का खेल शुरू हो गया है। अब नया इको सिस्टम बनेगा जिसमें नए सूरमाओं की ताजपोशी होगी। तब तक की रस्साकशी का दौर भी अंदरखाने शुरू हो गया है।
महा ढीठ है प्रशासन, हाईकोर्ट के आदेश नही मानता
सांसद के आंकड़ों को मानें तो सबसे बड़ा सवाल यही है कि हाई कोर्ट के साफ आदेश के बावजूद कब्जे हटाने की कार्रवाई आखिर किसके प्रभाव के कारण रुकी हुई है? यह वही इलाका है, जहां बीते वर्षों में कुछ भू-व्यवसायियों ने राजनीतिक संरक्षण में अपना साम्राज्य खड़ा किया।
कहा यह भी जाता है कि इन्हीं ‘नगर सेठ भाई साहब’ की मंशा से सौ फीट वाली रोड की कमर टूट गई वो सर्पिलाकार हो गई। कई खास लोगों की जमीनें बचा ली गईं। आज जब भी जानकार वहां से गुजरते हैं तो शहर के दुर्भाग्य को कोसना नहीं भूलते।
शासन चाहे जिसका हो, सेटिंग हमेशा रही तगड़ी
चंपाबाग की जमीन के मामले की खासियत यह रही कि राजस्थान में शासन चाहे किसी पार्टी का रहा हो, नगर सेठ भाई साहब की कृपा से जमीन माफिया को कोई परेशानी नहीं हुई। जमीन पर बिछाई इनकी बिसात पॉलिटिकल लेंड माइन जैसी रही। जिस जिस ने पांव धरा, वो विदाई का गीत गाता हुआ गुमनामी में चला गया। प्रोफेसर अमेरिकासिंह इसका जीता जागता उदाहरण है। सुविवि का कुलपति अगर चंपाबाग की जमीन का मामला नहीं उठाएगा तो कौन उठाएगा?? सरकार कांग्रेस की थी, धरना भाइपाइयों का हुआ, और अंत में विदाई कुलपति की हो गई। जमीनखोर लोग सेठजी भाई साहब की कृपा से वहीं के वहीं कायम रहे। अब सांसद ने इस स्थापित सत्ता-संरचना पर उंगली उठाई है। चलताउ भाषा में कहें तो उंगली कर दी है। तो भाजपा के भीतर नई खेमेबंदी खुलकर सामने आ गई है।
44 साल का विवाद—4,000 करोड़ की यूनिवर्सिटी भूमि अब भी कब्जे में
उदयपुर की चम्पाबाग क्षेत्र स्थित 14.5900 हेक्टेयर जमीन को राज्य सरकार ने 3 अक्टूबर 1981 को राजस्थान भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1953 की धारा 4(1) के तहत मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के विकास कार्यों के लिए अधिग्रहित किया था। अधिसूचना 30 अक्टूबर 1981 को राजपत्र में प्रकाशित की गई। आज के बाजार मूल्य के अनुसार कीमत 4,000 करोड़ रुपये तक पहुंच चुकी है। चार दशकों में लगातार अवैध कब्जे बनाए, निर्माण किए, और मामला अदालतों में उलझा दिया।
नेताओं के मोहपाश में बंधे अफसर, कहीं खानी ना पड़े जेल की हवा
लंबी कानूनी लड़ाई के बाद 30 मई 2024 को राजस्थान हाई कोर्ट की खंडपीठ ने बड़ा फैसला देते हुए— भूमि को विश्वविद्यालय की वैध संपत्ति माना, सभी स्थगन आदेश, अपीलें और याचिकाएं खारिज कीं, और कब्जा विश्वविद्यालय को देने का आदेश सही ठहराया। इसके बावजूद जमीन विश्वविद्यालय को नहीं सौंपी गई—प्रशासनिक कार्रवाई अब भी अधर में है। सांसद का सीधा सवाल—कोर्ट आदेश की अवमानना क्यों? उदयपुर सांसद डॉ. मन्नालाल रावत ने मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को पत्र लिखते हुए कहा कि—अवैध कब्जे हाई कोर्ट के आदेश की खुली अवमानना हैं,जिला प्रशासन धारा 5(ए) के तहत कार्रवाई नहीं कर रहा, विश्वविद्यालय की उदासीनता विकास को रोक रही है, और 4,000 करोड़ की सार्वजनिक संपत्ति हित समूहों के कब्जे में पड़ी है। स्थानीय निधि अंकेक्षण विभाग (LFA) की नवीनतम ऑडिट रिपोर्ट में भी चम्पाबाग भूमि विवाद को प्रमुख अनियमितता बताया गया। रिपोर्ट ने साफ लिखा कि— भूमि का हस्तांतरण न होना, अवैध कब्जों को न हटाया जाना, और कोर्ट आदेश की अनुपालना न होना, विश्वविद्यालय की दीर्घकालिक विकास योजनाओं को पूरी तरह रोक रहा है।
भाजपा में बदली हवा—पुराने गुट पर सीधी चोट
उदयपुर की भाजपा की स्थानीय राजनीति में बड़ा संकेत है कि 40 वर्षों से चले आ रहे ‘पुराने संरक्षक तंत्र’ का प्रभाव अब शून्य की ओर बढ़ रहा है। अब चम्पाबाग भूमि विवाद पर सांसद की सक्रियता से अंदरखाने की बेचैनियां आने वाले दिनों में साफ दिखाई देगी। ‘नगर सेठ भाई साहब’ और उनके प्रभावशाली भू-नेटवर्क को अब हर मोर्चे पर जवाब देना भारी पड़ जाएंगा। प्रोफेसर अमेरिकासिंह से निपटने के लिए पूरी पार्टी को झोंक दिया गया, अंत में जिलाध्यक्ष को कहना पड़ा कि—हम भी ठाले—भुले नहीं है, हमारे पास भी काम है। मगर अब सांसद के खिलाफ कौन मोर्चा लेगा यह देखना दिलचस्प होगा। सांसद के पास पावर्स हैं। वे चाहते तो सीधे स्थानीय प्रशासन को आदेश दे सकते थे मगर उन्होंने सीएम को पत्र लिख कर बता दिया कि वे भी थ्रू प्रोपर चैनल चल रहे हैं। हां, यह बात अलग है कि अब तक सांसद इस मुद्दे पर खामोश क्यों रहे?? और अभी ऐसा कौनसा शुभ मुहूर्त निकला कि 44 साल से बोतल में बंद जिन्न को जगाना पड़ गया?? क्या उनके माध्यम से कहीं किसी ने इस जिन्न को तो बोतल से बाहर नहीं निकलवाया?? यह भी राजनीतिक विश्लेषण का विषय है।
सबसे बड़ा प्रश्न वही, 44 साल से कब्जे आखिर बचा कौन रहा है?
कोर्ट के आदेश स्पष्ट हैं, ऑडिट की रिपोर्ट चेतावनी दे रही है, सांसद खुलकर बोल रहे हैं—
फिर भी कब्जे हट नहीं रहे। अब उदयपुर में सिर्फ एक ही सवाल गूंज रहा है— आखिर किसके प्रभाव के कारण 4,000 करोड़ की विश्वविद्यालय भूमि पर कार्रवाई नहीं हो पा रही है? कौन-सी अदृश्य शक्ति इस कार्रवाई को रोक कर बैठी है?

