24 News Update उदयपुर. राजस्थान विद्यापीठ के संघट लोकमान्य तिलक शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय, डबोक में आज ‘शांति शिक्षा-विचार एवं कर्म’ विषयक दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का भव्य शुभारंभ हुआ। यह संगोष्ठी शिक्षा, शांति और अहिंसा के विविध पहलुओं पर प्रकाश डालने के लिए आयोजित की गई है। कार्यक्रम की शुरुआत मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलन से हुई। इस संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में मोजाम्बिक के प्रसिद्ध पर्यावरणविद और शिक्षाविद प्रो. बेसेलियो ने अपने विचार साझा किए। उन्होंने शांति को केवल युद्ध की अनुपस्थिति से अधिक माना और इसे आत्मिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संतुलन के रूप में परिभाषित किया। प्रो. बेसेलियो ने मांसाहार को अशांति का कारण बताया और इसे केवल लालच का पोषक मानते हुए शिक्षा के केंद्र में मानवता को रखने की आवश्यकता पर जोर दिया।
उदयपुर विद्यापीठ के कुलपति कर्नल प्रो. शिवसिंह सारंगदेवोत ने शांति की महत्ता पर अपने उद्बोधन में कहा, “शांति का आरंभ आत्म से होता है। जब मनुष्य अपने अंतर्मन में संतुलन और सद्भाव स्थापित करता है, तभी वह बाह्य जगत में शांति का संवाहक बनता है।” उन्होंने भारत के शांति और अहिंसा के दर्शन का उल्लेख करते हुए कहा कि शांति केवल सत्ता द्वारा थोपी नहीं जा सकती, इसे साधना पड़ती है और अर्जित करना होता है। सुखाड़िया विश्वविद्यालय की कुलगुरु प्रो. सुनिता मिश्रा ने भारत की विविधता में एकता के महत्व को बताते हुए कहा कि “अहिंसा शांति की जड़ है और आंतरिक शांति से ही वैश्विक समरसता की नींव रखी जा सकती है।” उन्होंने शिक्षा प्रणाली को अधिक संवेदनशील बनाने और योग, मंत्र तथा पारिवारिक संबंधों के पोषण से शांति के स्थायित्व की आवश्यकता की बात की।
कुलाधिपति भंवरलाल गुर्जर ने शांति स्थापना में नैतिक शिक्षा की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि शांति केवल सैद्धांतिक विषय नहीं है, इसे जीवन में व्यावहारिक रूप से उतारना आवश्यक है। उन्होंने यह भी कहा कि परिवार और शिक्षा में संस्कारों का अभाव आतंकवाद और अशांति का कारण बन सकता है। संगोष्ठी में कनाडा से ऑनलाइन जुड़ीं प्रसिद्ध गांधीवादी शिक्षाविद डॉ. जिली ने गांधीवादी मूल्यों को शांति की स्थापना का केंद्र बताया। उन्होंने कहा कि गांधीवादी शिक्षा पद्धति अपनाकर हम एक शांति आधारित पारिस्थितिकी व्यवस्था स्थापित कर सकते हैं। संगोष्ठी में करीब 250 प्रतिभागी देश-विदेश से शामिल हो रहे हैं, जिनमें 6 विभिन्न देशों और भारत के 14 राज्यों के प्रतिभागी शामिल हैं। सम्मेलन में 100 से अधिक शोध पत्रों का वाचन किया जाएगा। कार्यक्रम का संचालन डॉ. अमी राठौड़ और डॉ. हरीश चौबीसा ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन डॉ. रचना राठौड़ ने किया। इस अवसर पर ‘विविध दृष्टिकोण की खोज करने वाला राजनीतिक दृष्टिकोण’ नामक पुस्तक का विमोचन भी किया गया। सम्मेलन के अंत में पहलगांव में हुए आतंकी हमले में दिवंगतों की याद में दो मिनट का मौन रखा गया और मोमबत्ती जलाकर शांति की प्रार्थना की गई। यह जानकारी निजी सचिव केके कुमावत ने दी।


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By desk 24newsupdate

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