
24 news Update उदयपुर। नारायण सेवा संस्थान के सेवा महातीर्थ, लियों का गुड़ा में रविवार को आयोजित दो दिवसीय 44वें नि:शुल्क दिव्यांग एवं निर्धन सामूहिक विवाह समारोह का समापन हुआ। इस दौरान देश के विभिन्न राज्यों से पहुंचे 51 नवविवाहित दिव्यांग और निर्धन जोड़ों ने वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच अग्नि को साक्षी मानकर सात फेरे लिए। समारोह में हजारों की संख्या में संस्थान के सहयोगी, दानदाता, कन्यादानी, परिजन और अतिथि शामिल हुए।
विविध परिस्थितियों से जुड़े दिव्यांग जोड़े
इस सामूहिक विवाह में शामिल जोड़ों में ऐसे वर-वधू भी थे जो शारीरिक रूप से कई तरह से दिव्यांग हैं। कुछ जोड़ों में वधू या वर पैरों से दिव्यांग, कोई हाथों से अक्षम, कोई एक पैर या एक हाथ से दिव्यांग, तो कुछ दृष्टिबाधित भी हैं। कई जोड़े घुटनों के बल चलने वाले अथवा घिसटकर चलने वाले दिव्यांग थे, लेकिन अब सभी एक-दूसरे का संबल बनकर जीवन की नई यात्रा पर निकले।
इनमें से अधिकतर जोड़े नारायण सेवा संस्थान द्वारा कराई गई नि:शुल्क सुधारात्मक सर्जरी और प्रशिक्षण कार्यक्रमों (सिलाई, कंप्यूटर व मोबाइल रिपेयरिंग कोर्स) से आत्मनिर्भर बने और अब जीवनसाथी की तलाश भी यहीं पूरी हुई।
बिंदोली और तोरण रस्म से हुई शुरुआत
रविवार सुबह 10 बजे विवाह समारोह का शुभारंभ 51 जोड़ों की भव्य बिंदोली (बारात) से हुआ। बैंड बाजों के साथ सजे-धजे दूल्हा-दुल्हन पारंपरिक वेशभूषा में जब विवाह स्थल की ओर रवाना हुए तो वातावरण उल्लास से गूंज उठा।
बिंदोली के बाद सभी दूल्हों ने भगवान श्रीनाथजी और अयोध्यापति श्रीरामलला की छवि के सान्निध्य में पारंपरिक तोरण रस्म पूरी कर विवाह पंडाल में प्रवेश किया।
वरमाला, आशीर्वाद और पुष्पवर्षा
दोपहर 12:15 बजे मंच पर पुष्प मालाओं से सजे मंडप में सभी वर-वधू का स्वागत हुआ। इस दौरान संस्थान संस्थापक पद्मश्री कैलाश ‘मानव’, उनकी धर्मपत्नी श्रीमती कमला देवी, संस्थान अध्यक्ष प्रशांत अग्रवाल, निदेशक वंदना अग्रवाल और पलक अग्रवाल ने नवदम्पतियों को आशीर्वाद दिया।
इसके बाद सभी जोड़ों ने एक-दूसरे को वरमाला पहनाकर जीवनसाथी बनने की मौन स्वीकृति दी। इस अवसर पर पुष्प वर्षा कर उनका स्वागत किया गया।

51 आचार्यों की वेदियों पर पूर्ण हुआ विवाह
सभी जोड़ों का विवाह वैदिक मंत्रोच्चारण और पवित्र अग्नि की साक्षी में अलग-अलग वेदियों पर सम्पन्न हुआ। 51 जोड़ों के लिए 51 आचार्य मौजूद रहे, जिन्हें एक मुख्य आचार्य ने मार्गदर्शन दिया। यह दृश्य अपने आप में अनोखा और भव्य था, जब एक साथ इतने दिव्यांग जोड़े सामाजिक मान्यता के साथ विवाह बंधन में बंधे।
पूर्व विवाहित जोड़े भी बने प्रेरणा
समारोह में पूर्व सामूहिक विवाहों में विवाह बंधन में बंधे दिव्यांग जोड़े भी आए। इनमें मुंबई के दिव्यांग दंपति सचिन और पद्मा विशेष रूप से उपस्थित थे। उन्होंने बताया कि 2020 में संस्थान द्वारा आयोजित विवाह में वे परिणय सूत्र में बंधे थे। आज वे अपने एक वर्षीय बच्चे के साथ खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे हैं और आत्मनिर्भरता की राह पर अग्रसर हैं। उन्होंने संस्थान को धन्यवाद देते हुए कहा कि यहां से उन्हें समाज की मुख्यधारा में शामिल होने का अवसर मिला।
गृहस्थी का संपूर्ण सामान भेंट
संस्थान की ओर से सभी नवविवाहित जोड़ों को नई गृहस्थी बसाने हेतु आवश्यक सामान प्रदान किया गया। इसमें गैस चूल्हा, बर्तन, संदूक, डिनर सेट, स्टील कोठी, पलंग, बिस्तर, पंखा, दीवार घड़ी, रसोई के सामान शामिल थे।
कन्यादानियों और अतिथियों द्वारा प्रत्येक वधू को मंगलसूत्र, चूड़ियां, चैन, कर्णफूल, नाक की बाली, बिछिया, पायल, अंगूठी और सौंदर्य प्रसाधन सामग्री उपहार स्वरूप प्रदान की गई।
सांस्कृतिक प्रस्तुतियां और हस्तशिल्प स्टॉल
विवाह स्थल पर आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों में शिव-पार्वती विवाह और कृष्ण-रुक्मिणी विवाह की मनमोहक नृत्य नाटिकाओं ने अतिथियों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इसके अलावा संस्थान के भगवान नारायण-महावीर आवासीय विद्यालय के मूक-बधिर बच्चों द्वारा बनाए गए हस्तशिल्प उत्पादों के स्टॉल भी लगाए गए। अतिथियों ने बच्चों के हाथों से बनी वस्तुएं खरीदकर उनका उत्साहवर्धन किया।
विवाह के बाद नववधुओं को प्रतीकात्मक रूप से डोली में बैठाकर विदा किया गया। यह दृश्य बेहद भावुक कर देने वाला था। संस्थान परिवार ने सजल नेत्रों से उन्हें विदा किया। इसके बाद सभी नवदम्पतियों और उनके परिजनों को संस्थान के वाहनों द्वारा रेलवे स्टेशन अथवा उनके गृहनगर तक पहुंचाया गया। नारायण सेवा संस्थान के संस्थापक पद्मश्री कैलाश ‘मानव’ ने बताया कि संस्थान पिछले कई दशकों से दिव्यांगों की पुनर्वास सेवा कर रहा है। सामूहिक विवाह जैसे आयोजन सामाजिक समरसता और दिव्यांगजनों के सम्मानजनक जीवन के लिए मील का पत्थर हैं।
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