उदयपुरर्. विश्व जल शांति दिवस पर शुक्रवार को जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय के डबोक परिसर के मुख्य द्वारा पर स्थापित 250 वर्ष पुरानी ऐतिहासिक बावड़ी व प्रतापनगर की प्राचीन बावड़ी के जल का मैग्सेसे पुरस्कार विजेता, पानी वाले बाबा के नाम से मशहूर डॉ राजेंद्र सिंह, कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत, प्राचार्य प्रो. सरोज गर्ग, प्रो. गजेंन्द्र माथुर, प्रो. आईजे माथुर, डॉ. बलिदान जैन ने पंडित डॉ. तिलकेश आमेटा, डॉ. कैलाश आमेटा के द्वारा मंत्रोच्चारण से विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना की।
इस अवसर पर संघटक महाविद्यालय लोकमान्य तिलक शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय की ओर से घटता जल स्तर – कारण एवं निवारण विषय पर आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के मुख्य वक्ता जल पुरूष डॉ. राजेन्द्र सिंह ने कहा कि पूरे विश्व में आज के दिन को विश्व जल शांति दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। उन्हांेने कहा कि पानी व्यापार की वस्तु नहीं है, ये साझी है, जीवन की वस्तु है। पानी के बिना जीवन में आनंद की कल्पना ही नही की जा सकती है। इस पर जीव, जन्तु, पैड़ , पौधे, वन्य पक्षी सहित हर वर्ग का अधिकार है। जल, नदी व जंगल हमारे लिए केवल प्राकृतिक वस्तुएॅ नहीं है ये तो हमारे अस्तित्व व आत्मा से जुड़े है । इनसे हमें उतना ही प्रेम है जितना स्वयं से है। उन्होंने कहा कि दुनिया में जल सम्बंधी आपदाओं का दायरा तेजी से बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि पानी के लिए विश्व में एक दर्जन से अधिक युद्ध चल रहे।
अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि देश जल दोहरे संकट से जूझ रहा है, एक तरफ पानी की कमी, दूसरी तरह स्वच्छ जल की अनुपलब्धता। जल स्त्रोतों को बढ़ाने के लिए हमें अपने परम्परागत स्त्रोतों की ओर पुनः लौटना होगा, हमें अपनी जरूरतों के हिसाब से इसका दोहन करना होगा। 1952 के मुकाबले भारत में जल की उपलब्धता एक तिहाई रह गई है, जबकि आबादी 36 करोड़ से बढ़कर 135 करोड़ के करीब पहुंच गई है। हालात यह हो गये है कि हम निरंतर भू जल पर निर्भर होते जा रहे है जिसके कारण भूमिगत जल प्रत्येक वर्ष औसतन एक फीट की दर से नीचे जा रहा है। इसके लिए हम सभी को आगे आना होगा। हमे जल की एक एक बूंद को बचाने, जल का विवेकपूर्ण उपयोग करने, जल शक्ति अभियान कैंच द रेन को बढावा देने में सहयोग, जल को एक अनमोल सम्पदा मानते हुए इसका समुचित उपयोग करने के साथ ही हमें प्राचीन जल स्त्रोतों बावड़ी व कुओं का भी संरक्षण करना होगा। प्रो. सारंगदेवोत ने कहा कि विद्यापीठ के तीनों परिसरों के भवनों को वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से जोडा गया है जिससे बरसात का पानी सीधा जमीन, कुओं व बावडियों में जाता है जो कि वाटर लेवर बढाने में मददगार हो रहे है। पानी को लेकर अन्तर्राष्ट्रीय मापदंडों के अनुसार शहरी इलाकों में प्रति व्यक्ति 135 लीटर और ग्रामीण इलाकों में 55 लीटर पानी की आवश्यकता रहती है। संचालन डॉ. हरीश चौबीसा ने किया जबकि आभार डॉ. रचना राठौड़ ने जताया।
इस अवसर पर डॉ. अमी राठौड़, डॉ. रचना राठौड़, डॉ. राजन सूद, डॉ. लीली जैन, डॉ. अपर्णा श्रीवास्तव, डॉ. सुभाष पुरोहित, डॉ. संतोष लाम्बा, डॉ. रोहित कुमावत, डॉ. ध्वनि नागदा सहित विद्यापीठ के डीन, डायरेक्टर एवं विद्यार्थीयों ने जल संरक्षण की शपथ ली। यह जानकारी नीजि सचिव केके कुमावत ने दी।
250 वर्ष पुरानी ऐतिहासिक बावड़ी का किया जल पूजन

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