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रिड्यूस, रिसाईकिल और रियूस की अवधारणा को जीवन में अपनाकर सतत विकास को गतिमान कर सकते हैं – कर्नल प्रोफेसर शिवसिंह सारंगदेवोत
-बी एन में दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का वैचारिक मंथन के  साथ समापन)

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उदयपुर, 31 मार्च, 2024। भूपाल नोबल्स विश्वविद्यालय के सामाजिक एवं मानविकी संकाय के अर्थशास्त्र विभाग एवं सतत शोध कल्याण संस्थान, उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान में भूपाल नोबल्स विश्वविद्यालय के सभागार में ‘सततता का नया दृष्टिकोण: अवसर एवं चुनौतियाँ’ विषयक  दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का वैचारिक मंथन के साथ समापन हुआ। संगोष्ठी मुख्य सलाहकार व अधिष्ठाता डाॅ शिल्पा राठौड़ ने अतिथियों का स्वागत करते हुए बताया कि समापन सत्र के मुख्य अतिथि डाॅ सेलोअमनी पेलनियांडी, मलेशिया थे। मुख्य अतिथि ने उद्बोधन देते हुए कहा कि पर्यावरण प्रणाली के अन्तर्गत पर्यावरण के प्रति हमें विशेष जागरूक होने की आवश्यकता है। पर्यावरण के संरक्षण के लिए नो प्लास्टिक व मुफ्त प्लास्टिक की तरफ ध्यान देने की आवश्यकता है। वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए सतत विकास में पर्यावरण महत्वपूर्ण पक्ष है जिस पर हमें गंभीरता से ध्यान दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि पर्यावरण के प्रति हमें मानसिकता बदलने की आवश्यकता है। बिना मानसिकता के हम विकास की अवधारणा को प्राप्त करने में सफल नहीं हो सकते हैं।
संगोष्ठी समन्वय डाॅ नरेश कुमार पटेल ने बताया कि विशिष्ट अतिथि जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली के एसोसिएट प्रोफेसर डाॅ अशोक ने उद्बोधन देते हुए कहा कि सततता के नए दृष्टिकोण में वित्तीय पक्ष पर ध्यान देने की आवश्यकता है। जीडीपी और भ्रष्टाचार के कारण वित्त का वास्तविक विकास नहीं हो पा रहा है।  सादा जीवन उच्च विचार की जीवन शैली को अपनाकर हम वास्तविक विकास की अवधारणा  को प्राप्त कर सकते हैं।
विशिष्ट अतिथि डाॅ. परितोष दूगड़ ने सततता के नए दृष्टिकोण के संबंध में अपने विचार रखते हुए तीन लघु कहानियों के माध्यम से विषय को समझाने का प्रयास किया। उन्होंने ने कहा कि सतत विकास की अवधारणा को हर नागरिक का समझना आवश्यक है। तभी वास्तविक विकास को हम प्राप्त कर सकते हैं।
समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए भूपाल नोबल्स  विश्वविद्यालय के चैयरपर्सन  कर्नल प्रोफेसर शिवसिंह सारंगदेवोत ने तीन आर पर बल देते हुए कहा कि रिड्यूस, रिसाईकिल और रियूस की अवधारणा को जीवन में अपनाकर सतत विकास को गतिमान कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि हमारी वैदिक परंपरा विकास के संबंध में व्यापक विचार प्रदान करती है। उन्होंने कहा कि मरण में वरण सतत विकास एक चुनौती है। वेद वाक्यों से उदाहरण देते हुए कहा कि हमारी परंपरा पर्यावरण संरक्षण के साथ विकास को महत्व प्रदान करती है। हमें हमारे सांस्कृतिक जीवन मूल्यों के साथ सतत विकास को अपनाना चाहिए। हमंे ईश्वर द्वारा प्रदत्त ऐश्वर्य के लिए सदैव कृतज्ञता ज्ञापित करनी चाहिए। हम सैकड़ों हाथों से प्रकृति का उपयोग करते हैं तो हजारों हाथों से सृजित भी करना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की संगोष्ठियों  एक वैचारिक उद्वेलन उत्पन्न होता है जो समाज के विकास के लिए आवश्यक है। 
सभी विषय विशेषज्ञ, शोधार्थियों के सार्थक अवदान से दो दिवसीय आयोजन सफल हो पाई है। इस प्रकार के आयोजन की निरंतरता रहनी चाहिए। ऐसी मेरी शुभकामना है।
भूपाल नोबल्स विश्वविद्यालय के प्रसिडेंट  डाॅ महेन्द्र सिंह आगरिया, कुलसचिव एवं संगोष्ठी सह सरंक्षक मोहब्बत ंिसंह राठौड़ ने शुभकामनाएं प्रेषित करते हुए बताया कि इस दो दिवसीय संगोष्ठी में सतत विकास की नई दृष्टि के विविध आयामों एवं चुनौतियांे पर शोधपरक चिंतन हुआ जिसके सार्थक परिणाम प्राप्त हुए।
इस अवसर पर डीन पी जी स्टडीज डाॅ प्रेमसिंह रावलोत, विज्ञान संकाय अधिष्ठाता डाॅ रेणु राठौड़, सामाजिक विज्ञान एवं मानविकी संकाय के सह अधिष्ठाता डाॅ ज्योतिरादित्य सिंह भाटी सहित संकाय सदस्य, शोधार्थी आदि उपस्थित थे। 
अर्थशास्त्र विभाग की अध्यक्ष डाॅ राजश्री चैहान ने दो दिवसीय आयोजन का विस्तार से प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। दूसरे दिन के विभिन्न तकनीकी सत्रों में पचास से अधिक शोधपत्रों का वाचन हुआ, जिसमें देश के विभिन्न राज्यों से  आए प्रतिभागियों ने अपने शोधपत्र प्रस्तुत करते हुए सतत विकास के संबंध में अपने अनुभवों को साझा किया।
कार्यक्रम के अंत में डाॅ. नरेश कुमार पटेल नेे संगोष्ठी के सफल आयोजन के लिए सभी के सहयोग के लिए आभार व्यक्त किया। 
कार्यक्रम का प्रारंभ मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलन और सरस्वती वंदना के साथ प्रारंभ हुआ।  सतत शोध व कल्याण संस्थान की सचिव व आयोजन सचिव डाॅ एकता खटोर ने भूपाल नोबल्स विश्वविद्यालय व समस्त विषय विशेषज्ञों व शोधार्थियों के सहयोग के लिए आभार व्यक्त किया। बेस्ट पेपर प्रेजेन्टेशन का अवार्ड आर कैथरिन को प्रदान किया गया।

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