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- भाषा, संस्कृति और विविधता : विश्वगुरू भारत की पहचान विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी
24 न्यूज अपडेट.उदयपुर। राजस्थान विद्यापीठ के संघटक शिक्षा संकाय, लोकमान्य तिलक शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय द्वारा “भाषा, संस्कृति और विविधताः विश्वगुरू भारत की पहचान“ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी में देशभर से शिक्षाविद, शोधकर्ता और विद्यार्थी सम्मिलित हुए।
’भारत विश्वगुरु था और रहेगा’
दिल्ली विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष डॉ. योगानंद शास्त्री ने मुख्य वक्ता के रूप में भारतीय संस्कृति और ज्ञान परंपरा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत प्राचीन काल से ही ज्ञान और संस्कृति का केंद्र रहा है और पुनः विश्वगुरु बनने की ओर अग्रसर है। उन्होंने भारतीय नेतृत्व और वैश्विक परिदृश्य में इसकी भूमिका को रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि चीन में भारतीय ज्ञान को चीनी भाषा में अनुवादित करने के प्रयास किए गए थे, जिससे यह सिद्ध होता है कि भारतीय ज्ञान परंपरा कितनी समृद्ध रही है। उन्होंने मेकाले शिक्षा व्यवस्था के प्रभाव को रेखांकित करते हुए भारतीय भाषाओं और संस्कृति के संरक्षण की आवश्यकता पर बल दिया।
ज्ञान आधारित विश्वगुरु बनने की ओर अग्रसर भारत
राजस्थान विद्यापीठ के कुलपति कर्नल प्रो. शिवसिंह सारंगदेवोत ने कहा कि ज्ञान और शिक्षा ही भारत को पुनः विश्वगुरु बना सकते हैं। उन्होंने भारत के प्राचीन शिक्षा केंद्र नालंदा, तक्षशिला, और वल्लभी का उल्लेख किया, जहाँ विश्वभर से विद्यार्थी अध्ययन करने आते थे। उन्होंने कहा कि आधुनिक विज्ञान के साथ भारतीय ज्ञान को जोड़कर देखा जाना चाहिए। उन्होंने मातृभाषा के महत्व को प्रतिपादित करते हुए भारतीय ज्ञान परंपरा को संरक्षित और आत्मसात करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
’भाषा में निपुणता आवश्यक’
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलाधिपति भंवर लाल गुर्जर ने कहा कि भाषा हमारे अस्तित्व और संस्कृति का आधार है, इसलिए हमें अपनी भाषा में निपुणता लानी होगी। उन्होंने भाषा की मर्यादा और सम्मानजनक प्रयोग पर बल देते हुए कहा कि जिस प्रकार हम सम्मान चाहते हैं, हमें दूसरों को भी वही सम्मान देना चाहिए।
’भारतीय ज्ञान परंपरा और शास्त्रों का महत्व’
विशिष्ट अतिथि प्रो. श्रीनिवासन अय्यर ने भारतीय ज्ञान और शास्त्रों की समृद्ध परंपरा को उजागर किया। उन्होंने बताया कि भारतीय गुरुत्व का आधार केवल भौतिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक भी है।
’संगोष्ठी में विविध विचार-विमर्श’
संगोष्ठी की संयोजक डॉ. रचना राठौड़ ने जानकारी दी कि संगोष्ठी के दौरान आठ तकनीकी सत्रों में चर्चा हुई, जिनमें 180 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. इंदु आचार्य ने किया और डॉ. बलिदान जैन ने आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर डॉ. बलिदान जैन, डॉ. सुनिता मुर्डिया, डॉ. अमी राठौड़, डॉ. भूरालाल श्रीमाली, डॉ. अपर्णा श्रीवास्तव, अकादमिक सदस्य, विद्यार्थी एवं पीएचडी स्कॉलर्स उपस्थित रहे।

