24 न्यूज अपडेट.उदयपुर। क्या आपने कभी सुना है कि किसी मामले की जांच करते हुए कोई पुलिस अधिकारी किसी के घर गया और उसने अपना निजी लेपटॉप निकाल कर सुपरकॉप की तरह से खटाखट-खटाखट कंपोजिंग करते हुए खुद ही लेपटॉप पर बयान ले लिए। क्योंकि अब तक का तुजुर्बा तो यही कहता है कि जब भी पुलिस को बयानों की बात आती है, एक लीगज साइज का कार्बन लगा पेपर लिया जाता है जिस पर जांच करने वाला या संबंधित ऑथराइज्ड कार्मिक तसल्ली से बात सुनते हुए खुद बयानों को कलमबद्ध करता है। तसल्ली से सवाल दर सवाल पूछते हुए एक-एक तथ्य को पुलिस की भाषा लेखन पद्धति में अंकित किया जाता है। लेकिन इस मामले में अफसर ने लेपटॉप पर बयान लेना बताया और वह भी अपने निजी लेपटॉप पर। देश के जाने-माने आरटीआई एक्टिविस्ट जयवंत भैरविया का कहना है कि राजस्थान के एकमात्र अनूठे और इकलौता वाहन दुर्घटना के प्रकरण में अनुसंधान अधिकारी ने पीड़ितों के घर जाकर लेपटॉप पर बयान लेने की बात कही और आश्चर्य की बात ये कि अब वो लैपटॉप इस दुनिया मे नही रहा। मतलब टूट कर खराब चुका है, जैसा कि बिच्छीवाडा के तत्कालीन एएस आई अंसार अहमद का कहना है। वर्ष 2019 का यह मामला है। वाहन दुर्घटना के मामले में अहमदाबाद जाते वक्त पिता पुत्री और वाहन चलाने वाले उमेश जोशी घायल हो गए थे। अहमदाबाद में उपचार के बाद कई महीनों तक नरेन्द्र घर पर ही बेडरेस्ट पर रहे।
अनुसंधान के दौरान बिच्छीवाड़ा में कार्यरत एएस आई अंसार अहमद उदयपुर आए और उन्होंने जैसा कि नरेंद्र का पक्ष है, हाथ से पीड़ितों व गवाह के बयान धारा 161 सी आर पी सी के अंतर्गत लेखबद्ध किए। इनको कोर्ट में चालान पेश किए जाने की कोई जानकारी अंसार अहमद ने पीड़ितो को नही दी और दुर्घटना कारित करने वाले ट्रेलर चालक के जुर्म स्वीकार कर लेने के कारण केस का फैसला हो गया। अब कोर्ट की पत्रावली प्राप्त करने के बाद पीड़ित व परिजन दंग रह गए क्योंकि हाथ से लिखे बयान उनके अनुसार बदल दिए और कोर्ट में कंप्यूटर टाइप शुदा पेश किए गए जिनमें बयानों में घायल पीड़ित को ही वाहन चालक बता दिया गया। इस प्रकरण में अंसार अहमद की उच्चाधिकारियों को पीडित की ओर से शिकायत की गई तो जांच अधिकारी प्रशिक्षु आर पी एस भवानी सिंह ने पुनः सबके बयान लिए जिसमे अंसार अहमद द्वारा लैपटाप पर धारा 161 सीआरपीसी के बयान लेखबद्ध किया जाना बताया। इस दौरान साथ आए पुलिस कर्मियों ने भी लेपटॉप पर बयान लिए जाने की पुष्टि नही की और न ही कोई लेपटॉप उन्होंने देखा और स्वयं को वाहन में बैठे होने की बात बताई।
इस पर सूचना के अधिकार के जरिये राज्य के विभिन्न जिलों की पुलिस से लेपटॉप पर बयान लिए जाने के नियमों व पुलिस को उपलब्ध कराए गए लेपटॉप की जानकारी मांगी गई तो सभी जिलों ने अलग-अलग जवाब आए। डूंगरपुर जिले की बिच्छीवाड़ा पुलिस ने बताया कि उनके पास ऐसा कोई लेपटॉप नही है, जिसे अनुसंधान में काम लिया जाता है। भीलवाड़ा, बांसवाडा और बीकानेर पुलिस ने जवाब दिया कि लेपटॉप पर बयान लेने के न तो कोई नियम है और न कोई प्रावधान। दूसरी और अंसार अहमद ने कहा कि उनके पास निजी लेपटॉप था जिस पर उन्होंने पीड़ितो के बयान लिए थे। जब अंसार अहमद द्वारा काम मे लिये जाने वाले लेपटॉप की फोरेंसिक जांच कराने हेतु सूचना माँगी गई तो उन्होंने जवाब दिया कि लैपटॉप गिर जाने से बुरी तरह डैमेज हो गया है जिसका रिपेयर खर्च अत्यधिक आने से उन्होंने दुकानदार को ही लेपटॉप दे दिया और अब लेपटॉप की फोरेंसिक जांच सम्भव नहीं। जबकि पूरा मामला ही लेपटॉप पर बयान लेने और नहीं लेने के बीच टिका हुआ है। पीडित का कहना है कि वर्तमान में भी राज्य का शायद ही ऐसा कोई थाना होगा जहां पर हाथ से बयान लिखने की जगह लेपटॉप पर बयान लिए जाते हों। यदि ऐसा है तो उसकी सत्यापित कॉपी संबंधित को यह लिखकर जरूरी दी जाती होगी कि यह बयान कलमबद्ध की जगह लेपटॉपबद्ध किया गया है।
इस मामले में उठे हैं कई सवाल
- पुलिस लेपटॉप पर अगर बयान लेने आती है तो यह जवाबदेही भी पुलिस की ही बनती है कि जब लेपटॉप पर बयान लेने की बात को किया न्यायिक स्तर पर चैलेंज किया जाए तो वह यह साबित करे कि बयान कलमबद्ध करने की जगह लेपटॉप पर लिया गया था। पुलिस अधिकारी को उस पक्ष को यह बताना होगा कि बयान की फाइल कब, कितने बजे जनरेट हुई, कितने बजे सेव हुई और यदि उसका कोई प्रिंट लेकर संबंधित को प्रदान किया गया है तो वह कितने बजकर कितने मिनट का है। बयान को पीड़ितो को ई-मेल पर भेज कर भी विश्वास दिलाया जा सकता है कि क्या बयान लिया गया। साइबर पुलिसिंग के जमाने में लेपटॉप पर बयान लेना पुलिस की कार्यकुशलता का उच्चतम प्रमाण हो सकता है मगर यह कहने से काम नहीं चल सकता कि जिस पर बयान लिया वह लेपटॉप ही डैमेज हो गया। दूसरी बात यह है कि लेपटॉप पर बयान लेने के नियमों पर आरटीआई से मिले जवाबों के आधार पर कहा जा सकता है कि लगभग पूर्ण रूप से संशय की स्थिति है तो फिर इस मामले की जांच क्यों नहीं होनी चाहिए कि आखिर लेपटॉप पर बयान लेने की जरूरत ही क्यों व किस नियम के तहत पड़ी?? ऐसे में आमजन को भी जागरूक होकर सावचेत हो जाना चाहिए कि अगर उनका कोई भी बयान पुलिस के स्तर पर कंप्यूटर पर या लेपटॉप पर लिया जा रहा है तो वे उसकी समयांकित सत्यापित कॉपी जरूर ले लें क्योंकि पता नहीं कब कौन सा सुपरकॉप कानून की देवी के सामने तथ्य को किस अंदाज में प्रस्तुत कर दे।

