
24 न्यूज़ अपडेट उदयपुर। इतिहास एवं संस्कृति विभाग, जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय द्वारा भारतीय मंदिर – शिल्प, वास्तु, दर्शन एवं सामाजिक – सांस्कृतिक परंपराओं विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आगाज हुआ ।
संगोष्ठी निदेशक डॉ. हेमेन्द्र चौधरी ने बताया कि इस दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ता डॉ. ओम जी उपाध्याय, सदस्य सचिव, भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, शिक्षा मंत्रालय, नई दिल्ली थे। कार्यक्रम के विशिष्ठ अतिथि प्रो. एस. पी. व्यास आचार्य, इतिहास विभाग, जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर थे तथा अध्यक्षता डॉ. मलय पानेरी ने की।
संगोष्ठी की शुरुआत पूजा अर्चना, अतिथियों के माल्यार्पण द्वारा की गई। अतिथियों का स्वागत डॉ. हेमेन्द्र चौधरी ने किया तथा विषय प्रवर्तन आयोजन सचिव डॉ ममता पुर्बिया ने किया।
मुख्य वक्ता एवं मुख्य अतिथि डॉ. ओम जी उपाध्याय ने कहा कि मनुष्य की में सच्ची मानवता का संचार मंदिर करता है। मंदिर निर्माण का कारण बताते हुए कहा कि 700 -800 वर्षों तक भारतीय समाज ने वैश्विक रूप से जो संघर्ष का सामना किया, तब लोग आध्यात्मिकता से दूर हो गए थे, तब उन लोगों में आध्यात्मिकता एवं सकारात्मक ऊर्जा का संचार मंदिर निर्माण द्वारा हुआ।
डॉ. उपाध्याय ने पूर्व से पश्चिम एवं उत्तर से दक्षिण सभी मंदिरों के निर्माण, दर्शन, सामाजिक सांस्कृतिक परंपराओं और शैलियों का जिक्र करते हुए तत्कालीन निर्माण की तकनीक को उदाहरणो के साथ समझाते हुए कहा कि वर्षों पुराने बने मंदिर की तकनीक को देख, लोगों की धर्म एवं अध्यात्म के प्रति आस्था के आगे आज का विज्ञान घुटने टेकता नजर आता है। मंदिर के प्रति जो गुरुत्वाकर्षण की शक्ति मानव के मन में स्वार्थ से नहीं मन से जुड़ी हुई है, अतः मंदिर की घंटी की आवाज मात्र से मनुष्य स्वयं को ईश्वर के समीप समझता है।
विशिष्ट अतिथि प्रो. एस. पी. व्यास ने बताया कि भारतीय मंदिर तथा उसकी विभिन्न शैलियाँ सभी का ध्यान आकर्षित करती है। इतिहास को प्रधानता देने के लिए स्थापत्य अभिलेख, सिक्कों, किले, शिलालेखों पर बहुत शोध कार्य हुआ है लेकिन मंदिर स्थापत्य वास्तु एवं शिल्प पर शोध कार्य में कमी नजर आती है। प्रो. व्यास ने तृतीय लिंग (किन्नर समाज) की मंदिर स्थापना में योगदान जिस महत्वपूर्ण विषय पर ध्यान आकर्षित करते हुए किन्नर समाज की मंदिरों में कार्य प्रणाली पर विशेष जोर दिया।
अध्यक्षता करते हुए डॉ. मलय पानेरी ने मनुष्य एवं मंदिर के संबंधों पर बात करते हुए कहा कि हिंदू परंपरा में बच्चों के बचपन से मंदिर के प्रति आकर्षण एवं आध्यात्मिक प्रति चेतना का भाव पैदा होना शुरू हो जाता है, मंदिर में विभिन्न शिल्प एवं कलात्मक आकर्षण हमारी संस्कृति की धरोहर है जो भारतीय ज्ञान परंपरा को पुष्ट करती है ।
डॉ. हेमेंद्र चौधरी ने बताया कि आज कुल दो तकनीकी सत्र हुए जिसमें करीब बीस शोध पत्रों का वाचन हुआ तथा विवेक भटनागर, प्रो. मनोरमा उपाध्याय तथा डॉ. हेमंत दवे ने प्रो. के. एस. गुप्ता स्मृति में आयोजित सत्र में अपना विशेष व्याख्यान दिया। इस संगोष्ठी में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान के लगभग 150 शोधार्थी एवं इतिहासकारों ने अपनी भागीदारी निभाई।
Discover more from 24 News Update
Subscribe to get the latest posts sent to your email.