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देश के वैदिक मानचित्र पर कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय उभर रहा दैदीप्यमान नक्षत्र के रूप में : संत दिग्विजयराम

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कविता पारख

24 न्यूज़ अपडेट निंबाहेड़ा । देश में लुप्त होती वैदिक संस्कृति को संरक्षण प्रदान करने की दृष्टि से देश के वैदिक मानचित्र पर श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय एक दैदीप्यमान नक्षत्र के रूप में उभर कर अपनी विशिष्ट पहचान बना रहा हैं। जिसके माध्यम से भारत एक बार फिर अपनी पारंपरिक वैदिक परंपरा को सुरक्षित एवं संरक्षित करने में निश्चय ही पूर्ण सफलता प्राप्त करेंगा। यह विचार रामस्नेही सम्प्रदाय के युवाचार्य संत दिग्विजयराम ने माघ कृष्णा चतुर्दशी को वैदिक विश्वविद्यालय के अनुपम स्वरूप को देखते हुए व्यक्त किए। उन्होंने वैदिक विश्वविद्यालय को अनूठा प्रकल्प बताते हुए कहा कि यहां सनातन संस्कृति को संरक्षण प्रदान करने का प्रशसनीय कार्य किया जा रहा हैं। जहां वैदिक पद्धति के माध्यम से बटुकों को चारों में पारंगत करने के साथ ही समस्त कल्याण भक्तों के सहयोग से मुक्त कंठ से प्रशसनीय कार्य में समाज के प्रत्येक वर्ग को हर संभव योगदान करना चाहिए। उन्होंने कल्याण गौशाला में गोसेवा करते हुए कहा कि यहां की जा रही गौसेवा को और बेहतर बनाने के लिए इंदौर और बगरू की गौशालाओं का अवलोकन कर इस गौशाला को उत्कृष्ट बनाया जा सकता हैं। उन्होंने ब्रह्माण्ड कल्याण अरण्यम में स्थापित वाटिकाओं और वृक्षावली का अवलोकन करते हुए उच्च गुणवत्तायुक्त वटवृक्ष लगाने का भी सुझाव दिया। संत दिग्विजयराम ने संत रमताराम के साथ विश्वविद्यालय के ग्रंथागार का अवलोकन करते हुए इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि वैदिक दृष्टि से देश के प्रमुख चार विश्वविद्यालयों में से इस विश्वविद्यालय में भी वृहद स्तर पर ग्रंथागार को संधारित किया जा रहा हैं। जहां वेद, पुराण, ज्योतिष, कर्मकाण्ड से लेकर कई अनूठे ग्रंथों के साथ ही अरबी, फारसी, संस्कृत व वैदिक संस्कृत में सैकड़ों हस्तलिखित पाण्डूलिपियां उपलब्ध हैं। जिनके माध्यम से कई विद्यार्थी शोध कर जीवन को धन्य बना सकते हैं। विश्वविद्यालय परिसर पहुंचने पर संत द्वय का चेयरपर्सन कैलाशचन्द्र मून्दड़ा ने आत्मिक स्वागत अभिनन्दन करते हुए प्रशासनिक भवन एवं भव्य यज्ञशाला के साथ ही वेदाश्रम, भोजनशाला, आवासग्रहों के अलावा परिसर में संचालित किए जा रहे आयुर्वेद औषद्यालय का अवलोकन कराते हुए संतों से समूचे परिसर के सर्वागीण विकास में हर संभव योगदान करने का अनुनय आग्रह किया।
श्रीमद् भागवत मृत्यु को उत्सव बनाने का अनूठा ग्रंथ : संत दिग्विजयराम
भागवत मर्मज्ञ युवा संत दिग्विजयराम ने कहा कि 18 पुराणों में श्रीमद् भागवत ही ऐसा महापुराण हैं जो मृत्यु को भी उत्सव बनाना सिखाता हैं। जिसके माध्यम से राजा परिक्षित को 7 दिवस में ही मोक्ष प्राप्ति हो सकी। संत दिग्विजयराम मंगलवार को श्री कल्लाजी वेदपीठ एवं शोध संस्थान द्वारा वेद एवं गौसेवार्थ कृषि उपज मण्डी परिसर में आयोजित सप्त दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा महोत्सव के द्वितीय दिवस व्यासपीठ से श्रीमद् भागवत महापुराण का रसामृतपान करा रहे थे। उन्होंने भागवत के मंगलाचरण में नेमीशारण्य तीर्थ पर सूत जी द्वारा 88 हजार ऋषियों को भागवत श्रवण कराने और ऋषियों द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उत्तर बताते हुए कहा कि भगवान की भक्ति ही जीवन में कल्याण का सही मार्ग हैं और भक्ति भी अहेतु होनी चाहिए। वहीं ईश्वर के प्रति दृढ विश्वास के अभाव में व्यक्ति दुखी होता हैं। उन्होंने कहा कि प्रभु से प्रेम भावना लेकर शरणागति भाव से मंदिर में जाना चाहिए। उन्होंने मतंग ऋषि की शबर कन्या भक्तिमति शबरी जैसी प्रतिक्षा और मीरा जैसी प्रेमा भक्ति को अपनाने का आह्वान किया। इसी दौरान जब व्यासपीठ से मेरी झोपड़ी के भाग जाग जाएंगे भजन की प्रस्तुति हुई तो श्रद्धालु राम भक्ति से सराबोर हो गए। उन्होंने कहा कि जीवन में कैसा भी कष्ट हो लेकिन भक्ति छूटनी नहीं चाहिए। जैसा की नरसी भगत सुदामा, शबरी, मीरा ने भक्ति करके भगवान को प्राप्त कर लिया। उन्होंने कहा कि जीवन में नवदा भक्ति के माध्यम से ही आनंद प्राप्ति संभव हैं। वहीं हमें तार देने वाले तीर्थों पर जाकर स्नान करने से जो लाभ मिलता हैं, उतना ही फल राम नाम से ही संभव हैं। इसलिए नाम आश्रय को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। उन्होंने श्रीमद् भागवत उत्पति का उल्लेख करते हुए कहा कि वेदव्यास द्वारा 17 पुराणों की रचना के बाद भी संतुष्ट नहीं होने पर नारद मुनि के मार्गदर्शन में 18 वें महापुराण के रूप में श्रीमद् भागवत की रचना कर संसार को मोक्ष और मुक्ति का मार्ग प्रशस्त्र करने का अनुठा कार्य किया। नारद मुनि के पूर्व जन्म में दासी पुत्र होने का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि संतों का सानिध्य करने से ही उन्हें नारद स्वरूप मिल पाया। उन्होंने कुंति प्रसंग का उल्लेख करते हुए कहा कि भगवान श्री कृष्ण की कृपा से ही उत्तरा के गर्भ से राजा परिक्षित का जन्म होने से भागवत में इनका महत्व सभी का कल्याण करने वाला हैं। उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति प्रभु से सुख मांगता हैं, लेकिन कुंति ने श्री कृष्ण से संसार का दुख मांगकर हमेशा प्रभु के प्रेमाश्रय में रहने का वरदान मांगा। उन्होंने कहा कि भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था, जिनके समक्ष पहुंचकर चरणा भक्ति मांगने पर पितामह को मोक्ष प्रदान किया। उन्होंने बताया कि कलयुग को पांच स्थान दिए गए हैं, जिनमें जुआ, मदिरा, वासना, कसाई और स्वर्ण प्रमुख हैं, जो भी इनके संपर्क में आता हैं वह जीवन में निराशा ही पाता हैं। उन्होंने सनातन जन्म से जुड़ने का आह्वान करते हुए कहा कि जाति पाति के भेद से ऊपर उठकर अगर सभी 97 करोड़ हिन्दू एक हो जाए तो हमारे धर्म और संस्कृति की जागरूकता में कोई कमी नहीं रहेगी। इसके साथ ही हमें शास्त्र और शस्त्र को स्वीकार करना होगा, तभी भारतीय संस्कृति संरक्षित रह पाएंगी। प्रारंभ में वेदपीठ के न्यासियों द्वारा व्यासपीठ का पूजन किया गया, जबकि संतों द्वारा कल्याण नगरी के राजाधिराज एवं मुख्य श्रोता ठाकुर जी श्री कल्लाजी की पूजा अर्चना की गई। वहीं द्वितीय दिवस के कथा विश्राम पर पूर्व यूडीएच मंत्री एवं निंबाहेड़ा विधायक श्रीचंद कृपलानी, भाजपा नगर अध्यक्ष कपिल चौधरी, ग्रामीण मण्डल अध्यक्ष अशोक जाट, नानालाल भूतड़ा, सर्व व्यापार मंडल पदाधिकारी, हैल्पिंग हैंड फूड कैम्पेन के पदाधिकारी, मानवाधिकार सुरक्षासंगठन के पदाधिकारियों के साथ ही वेदपीठ के न्यासियों, पदाधिकारियों एवं श्रद्धालुओं द्वारा व्यासपीठ की महाआरती की गई। कथा में बुधवार को संत दिग्विजयराम द्वारा ध्रुव चरित्र, जड़ भरत कथा एवं आजामिल उपाख्यान के साथ ही अन्य धार्मिक अनुष्ठानों पर व्याख्यान दिया जाएगा।

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