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उदयपुर में थाली, मांद की गवरी वाली धुनों थिरकते आए आदिवासियों ने गुजाया जय जौहार, भील प्रदेश की मांग को किया बुलंद, क्या है मांगें और इनसे क्यों हैं परेशान दोनों प्रमुख दल, डीटेल में पढ़िये और वीडियो देखिये—–

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24 न्यूज अपडेट.उदयपुर। आज जिला कलक्ट्रेट पर थाली, मांदर और ढोल ताशों की थाप पर झूमते-गाते आदिवासी समुदाय के लोग पहुंचे। जय जौहार का नारा लगाते हुए उन्होंने अलग से भील प्रदेश की मांग की व ज्ञापन दिया। उदयपुर में भाजपा और कांग्रेस के लिए यह खतरे की घंटी है क्योंकि उनके पास इस मांग की कोई काट नहीं है व इसी मांग के आधार पर आदिवासियों का एक नए अंदाज में एकीकरण व धु्रवीकरण लगातार हो रहा है। भाजपा के पास आदिवासी हिंदू हैं का नारा है जो लोकसभा चुनावों में नहीं चल पाया है तो कांग्रेस के पास आदिवासी दलों से समझौता करने के अलावा कोई चारा नहीं है। ऐसे में नई राजनीतिक का प्रदुर्भाव होता दिख रहा हैं। नए भील प्रदेश की मांग की आंच में झुलसे रहे दोनों दल व खासकर भाजपा इसका क्या तोड़ निकालती है यह देखना दिलचस्प होगा।
भील प्रदेश मुक्ति मोर्चा के पूर्व जिला संयोजक अमित खराड़ी ने बताया कि राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र व मध्यप्रदेश के सीमावर्ती आदिवासी इलकों को शामिल कर भील प्रदेश की मांग को लेकर हम यहां पर आए हैं। यह मांग काफी समय से चल रही है। मानगढ़ में आंदोलन भी इसी राज्य को लेकर हुआ था। भील समुदाय का राज्यों की वजह से बंटवारा हो गया। हम चाहते हैं कि राज्यांं के इलाकों को जोड़ कर आदिवासी राज्य बना लिया जाए। इसके लिए हम निरंतर धरना व प्रदर्शन कर रहे हैं। विधानसभाओं में मांग उठ चुकी है व निरंतर मांग उठ रही हैं। आदिवासी हितैषी सांसद संसद में भी मांग कर रहे हैं। वनाधिकार पट्टे, पानी की समस्या आदि को लेकर भी मांगे हैं। हमारा प्रशासन भी अलग हो, प्रशासन में प्रतिनिधि भी आदिवासी हो ताकि समस्याओं का निराकण कर सकें। ज्ञापन में बताया गया कि भारत के आदिवासी समुदाय से जुड़े ज्वलंत मुद्दे एवं संविधान के अनुच्छेद 3 (क. ख, ग, घ ङ) के तहत् पश्चिमी भारत के भील आदिवासी सांस्कृतिक क्षेत्र के चार राज्यों का सीमाई इलाका एवं एक केन्द्र शासित प्रदेश को जोड़कर “भीलप्रदेश राज्य“ गठन किया जाए। “भारतीय उपमहाद्वीप में 20 लाख साल पहले से रह रहे आखेटक-खाध्य संग्राहक मानव समूह के वंशज आदिवासी है।“ पुरातात्विक स्थल विन्ध्याचल-संतपुंडा-अरावली पर्वतमाला में क्रमशः बेलेन नदी घांटी, भीमबेटका एवं साबरमती नदी बेसिन में मिले है। भारत की इस मूल संस्कृति मानव समूह के संरक्षण के लिए “भील प्रदेश राज्य“ गठन आवश्यक है। भारत भूमि की मूल मिट्टी की मूल उपज भील आदिवासी है। पश्चिमी भारत के इस इलाके में ईरानी, यूनानी, पार्थियन, शक, कुषाण, हूण, अरब, तुर्क, मुगल विदेशियों के वंशज भी आकर बसे जिससे भारत की मूल संस्कृति, सभ्यता, बोली, धर्म के अस्तित्व की रक्षार्थ भील सांस्कृतिक भाषाई- ऐतिहासिक क्षेत्र को जोड़कर ’भीलप्रदेश राज्य“ गठन होना चाहिए था, मगर आजादी के बाद भील प्रदेश नहीं बना। चार राज्यों में पूरा इलाका बांट दिया गया। राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश की विधानसभाओं में “भीलप्रदेश राज्य“ का प्रस्ताव पारित कर केन्द्र सरकार को भिजवाया जाए। ् विश्व आदिवासी दिवस 09 अगस्त पर “राष्ट्रीय अवकाश“ घोषित किया जाए। वन संरक्षण कानून-2023 आदिवासी क्षेत्रो (अनुसूचित क्षेत्रो) में लागू न किया जाये। भारत के आदिवासी क्षेत्रो (अनुसूचित क्षेत्रो) में वन विभाग की जमीन वृक्षारोपण-वन संरक्षण वन्य जीवों के संरक्षण के लिए आदिवासियों को सुपुर्द की जाए। सभी आदिवासियों को ।इवतपहपदमे वत प्दकपहमदवने घोषित कर भारत की खनिज संपदा का 25 प्रतिशत शेयर होल्डर बनाया जाए। राजस्थान विधानसभा की 17वीं विधानसभा में चौरासी विधायक राजकुमार रोत द्वारा अनादिकाल से भीलीपूजा पद्धति में इस्तेमाल होने वाले भीली पूजा पदार्थ महुआ अर्क का पेटेन्ट एवं लाईसेन्स’ भील आदिवासियों को देने की मांग के उलट ’राजस्थान सरकार ने आबकारी विभाग द्वारा गंगानगर शुगर मिल’ को महुआ 4 शराब बनाने का निर्णय लिया है। इसका हम विरोध करते है। हमारी मूल मांग महुआ अर्क का पेटेन्ट एवं लाईसेन्स भील आदिवासियों को ही दिया जाए। भीलप्रदेश में सरकारी आबकारी विभाग संचालित अग्रेजी शराब दुकानों से शराब व्यापार प्रतिबंधित हो’ और ’आदिवासी इलाका दारू विहिन इलाका’ घोषित हो। राजस्थान-गुजरात-महाराष्ट्र-मध्यप्रदेश (भीलप्रदेश) में ’भील आदिवासियों के लिए कानून बनाकर जल आरक्षण का प्रावधान’ बनाकर अविलम्ब अमलीकरण किया जाए। आदिवासी इलाकों (अनुसूचित क्षेत्र पांचवी अनुसूची टेरीटरी) में पुलिस प्रशासन में सामंतवादी लोगों की ही भर्ती की जा रही है, जो रजवाड़ों की स्थापना से आदिवासियों के दमन में लगे है, हमारी मांग है कि ’पुलिस थाना क्षेत्र की आदिवासी जनसंख्या के अनुपात में आदिवासी पुलिस कर्मीयों को अनिवार्ययतः प्रतिनिधित्व दिया जाये।’ भील वंश एवं उप समूह (गरासिया, डामोर, भीलाला, बारेला, पटलिया, राठया, नायक, वारली, पारधी, मानकर, कोली बारिया, कूकणा, पावरा, वसावा, गावित, पाडवी महादेव कोली), गोंडवाना लैण्ड के विभाजन के समय पृथक हुए भारतीय खंड में जीवों के क्रमिक विकास से उपजा होमोसेपियंस मूलवंश है। जो अरावली- विंध्याचल-सातपुडा एवं इन पर्वतमालाओं की नदियों की उम्र बराबर समय काल से भारतभूमि पर निरंतर रहवास कर रहे है। जो पश्चिम सिंध से पूर्व दिशा में बंगाल की खाड़ी से त्रिपुरा राज्य तक फैले हुए है। भारतीय उप महाद्वीप में विकसित हडप्पा- मोहनजोदडो सभ्यता (सिंधुघाटी सभ्यता) भील सहित आदिवासी पूर्वजों की देन थी। हड़प्पाई संस्कृति आज भी आदिवासी समुदाय में जीवित देखी जा सकती है इसे सरक्षित करने के लिए भील आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ताओं के नेतृत्त्व में भीली संस्कृति बोर्ड का गठन हो। श्रीमान् विश्व की प्राचीनतम पर्वतमाला अरावली धरती पर सबसे पहले ठंडा होने वाले इलाके का भाग है जहाँ सबसे पहले पेड-पौधे एवं जीव-जन्तु पैदा हुए। अरावली पर्वतमाला से निकलने वाली मानसी वाकले साबरमती सेई नदियों के सबसे समृद्ध पाट स्थल कोटडा तहसील में दो बाँध बुझा बाँध (कूकावास, झेड, बाखेल माण्डवा, कोदरमाल पंचायत) सक सांडमारिया बाँध (घघमता खजूरिया, बिकरनी रुजिया खूणा पंचायत) की समतल उपजाऊ जमीन डूब क्षेत्र में जा रही है। इसी क्षेत्र में पुरापाषाण काल (20 लाख साल से 12 हजार साल पहले तक) के 1000 पत्थर के औजार एवं मानव आवास पुरातत्वविद् भगवानलाल पटेल खेडब्रह्मा को मिले थे। अरावली पर्वतमाला में होमिनिड (वनमानुष) से बने इंसानों द्वारा इन पत्थरों के औजारों एवं मानव आवास का निर्माण किया होगा। जो मील आदिवासी गरासिया आदिवासी, डूंगरी भील आदिवासी समुदाय के पूर्वज थे। यह क्षेत्र पूरे भील आदिवासी समुदाय की पवित्र भूमि भ्वससल स्ंदक हैं। ऐसी कई जगह भील आदिवासीयों के लिए पवित्र स्थलं विभिन्न बांध परियोजनाओं का निर्माण करें ’जल में डूबा दिये गये है जैसे-धरोई बाँध (साबरमती नदी) कडाणा बाँच (माही नदी) सरदार सरोवर बाँध (नर्मदा नदी) उकाई बाँध (वापी नदी) आदि नदी पाट स्थल में लाखों पुरातात्विक अवशेष स्थल डूबा दिए गए है इस तरह शासन-प्रशासन संस्कृति इतिहास संविधान लोकतंत्र नैतिकता इसानियत की पक्षधर नहीं कही जा सकती है। शासन-प्रशासन नीतिगत व्यवहार परिवर्तन करना चाहिए ऐसी मांग करते हैं। 5 दिसम्बर 1982 को नर्मदा घांटी के सीहोर जिले के हथनोरा गांव में “जिओलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के भू-विज्ञानी पुरातत्वविद डॉ. अरूण सोनकिया; को जिवाश्म मिले जिसमें हाथी, जंगली भैंसा शामिल थे। 70 हजार वर्ष पुराने मानव की कपाल के अवशेष भी खोजे थे। वैज्ञानिकी द्वारा इसे ’नर्मदा मानव’ कहा गया। हथमौरा के सामने धांसी और सूरजकुंड में नर्मदा के उत्तरी तट पर प्राचीनतम विलुप्त हाथी (स्टेगोडॉन) के दोनों दाँत तथा तथा उपरी जबड़े का जिवाश्म भी खोजा गया था। इस तरह साबरमती नदी घाटी एवं नर्मदा नदी घाटी के पुरातात्विक मानव अवशेषों से प्रमाणित होता है कि प्रारंभिक मानव अफ्रीका के साथ-साथ भारत के गोंडवानालैण्ड में भी जन्मा था। इन्हीं के वंशज भारत भूमि के आदिवासी समुदाय के वर्तमान वशज है। आबू पर्वत पर भील आदिवासियों का प्रथम गणतंत्रात्मक राज्य कायम हुआ था ऐसी भीली पुरातन मान्यता है। भील पूर्वजों की मौखिक चली आ रही “गायणा परंपरा में उल्लेख आता है कि “गढ़ आबू हो गढ़ो गूडक्यो, भागला होया तण, पेलो महादेव, बीजी मताई, तीजो भौम घणी भील“ इससे प्रमाणित होता है कि आबू पर्वत प्रारंभिक भीली संस्कृति सभ्यता की ऐतिहासिक आवास स्थली में से एक है। आज आबूपर्वत पर अनादिकाल से निवासरत भील आदिवासियों के वंशजों को राजस्थान सरकार वनाधिकार 2006 के तहत् मकान बनाने, खेती बाडी करने, वृक्षारोपण करने के लिए भूमि पट्टे नहीं दे रही है जबकि सुप्रिम कोर्ट के फैसले 5 जनवरी 2011 के अनुसार 92 प्रतिशत पर वंशजों ने शहर बना लिया है. होटल व्यवसायिक संस्थान, शिक्षण संस्थान, चिकित्सालय, धर्मस्थल खड़े कर दिए है। राजस्थान सरकार का भील समुदाय वंशजों के साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार रोकना चाहिए एवं शासन-प्रशासन वनाधिकार 2006 के तहत् अविलम्ब पट्टे देने को आदेशित कर अमल करावे। जॉर्ज ग्रियर्सन के अनुसार भारत का भाषाई सर्वेक्षण 1903-1928 देश में 179 भाषाएँ और 544 के लगभग बोलीयों थी। वर्तमान में भारत के 22 भाषाएं अनुसूचित है और कई भाषाएँ गैर-अनुसूचित है। जॉर्ज ग्रियर्सन ने भीली यां मिलोडी भाषा का भी सर्वेक्षण किया था। पेशे से डॉक्टर चार्ल्स स्टीवर्ट थॉम्पसन ने मीली भाषा की पहली व्याकरण एवं शब्दकोष “रूडीमेंट्स ऑफ द भीली लेंग्वेज 1895“ में लिखकर प्रकाशित की थी। संविधान सभा के गठन से भी पहले भीली बोली भाषा की व्याकरण एवं शब्दकोष की किताब प्रकाशित हो चुकी थी। इसके बावजूद भीली बोली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूचि में “अनुसूचित“ नहीं किया गया। हमारी पुरजोर मांग है कि संडीमेंट्स ऑफ द भीली लेंग्वेज 1895 के मूल आधार पर भीली बोली भाषा शब्दकोष का संकलन कराकर भीली भाषा को मान्यता दी जाए, आठवी अनुसूचि में अनुसूचित किक जाएं तुरि राजस्थानी गुजराती मराठी-हिन्दी के बजाए प्राथमिक शिक्षा पाठच्या भाषा में बनाकर लागू करा सके। भील प्रदेश में भीली बोली भाषा की शब्दावली आधारित प्राथमिक शिक्षा पाठ्यक्रम बने।

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