- डॉ अनिल मेहता, लेखक, चिंतक, शिक्षाविद, पर्यावरणविद
24 न्यूज अपडेट उदयपुर। भाई दूज : जल चक्र की निरंतरता तथा जीवन चक्र की प्राकृतिक व्यवस्था बहाली के मूल विज्ञान से आम समाज को शिक्षित करने तथा निरंतरता, पवित्रता व मजबूती को बनाए रखने के संकल्प की अभिव्यक्ति का अवसर है। यम द्वितीया की कथा में नदियों को सूर्य की पुत्रियां (यमुना व ताप्ती के रूप में ) बताया गया हैं। हम जानते है कि सूर्य की ऊर्जा से ही हाइड्रोलॉजिकल साइकल चलता है। नदियों में जल उपलब्ध होता है। इस कथा में सूर्य पुत्र के रूप में यम( मृत्यु) का वर्णन है। सूर्य से जीवन सृजन भी, जीवन अंत भी..फिर सृजन, फिर अंत.. यही तो जीवन चक्र है। यही खाद्य श्रृंखला ( फूड चेन) है– इकोलॉजिकल साइकल है।
यम द्वितीया की कथा में यह वैज्ञानिकता भी है कि सूर्य के चारों और पृथ्वी की गति में पृथ्वी के एक और प्रकाश और दूसरी और छाया रहती है। पृथ्वी के अपनी धुरी पर घूमते समय, उसका जो हिस्सा सूरज की तरफ़ होता है, वहां दिन होता है और दूसरा हिस्सा, जो सूरज से दूर होता है। वहां छाया ( रात) होती है। यम द्वितीया कथा में सूर्य की पत्नी के एक रूप को छाया बताया गया है। यम द्वितीया की कथा के अनुसार यमुना नदी अपने भाई को भाई दूज पर आमंत्रित कर उनसे आग्रह करती है कि वो मनुष्यों को नारकीय यातनाओं, मृत्यु भय से मुक्त करे। यम कहते हैं कि जो पवित्र यमुना नदी की पूजा करेगा, उसे मैं कष्टों से मुक्त करूंगा। इसका अर्थ हुआ कि यम द्वितीया ( भाई दूज) का पर्व नदियों की पवित्रता से जुड़ा है। इस पर्व का संदेश है कि पवित्र , स्वच्छ नदी ही जीवन में सौभाग्य व समृद्धि लाती है। रोगों को नष्ट कर मृत्यु ( यमराज) के भय से मुक्त करती है।
अतएव, वैज्ञानिकता तथा पारिस्थितिकीय संरक्षण, नदी संरक्षण से जुड़े इस वैज्ञानिक पर्व पर हम सभी को नदियों के सुधार, उनकी पवित्रता की बहाली तथा फूड चेन की निरंतरता, पारिस्थितिकी तंत्र की मजबूती को बनाए रखने का संकल्प लें।
पौराणिक कथाः सूर्य देव व उनकी पत्नी संज्ञा देवी की संतानों में , पुत्र यमराज तथा कन्या यमुना थे । पत्नी संज्ञा देवी सूर्य की तीव्र किरणों से बचने के सूर्य से दूर रहने चली गई। और , स्वयं को छाया के रूप में स्थापित कर लिया । छाया से ताप्ती नदी तथा शनिचर का जन्म हुआ। यम की नगरी यमपुरी में पापियों को दण्ड दिया जाता था, यमुना जी का करुणा भरा मन यह देख नहीं परिणति अतः गौ लोक चली आईं जो कि कृष्णावतार का समय था।
यमुना को भाई यमराज से बडा प्यार था । वह निरंतर उनसे निवेदन करती कि आओ और मेरे घर भोजन करो । लेकिन यमराज अपने काम में व्यस्त रहते थे। एक दिन यम को अपनी बहन की बहुत याद आई। उन्होंने दूतों को भेजकर यमुना की खोज करवाई, मगर वह मिल न सकीं। फिर यमराज स्वयं ही गोलोक गए जहाँ विश्राम घाट पर यमुनाजी से भेंट हुई। भाई को देखते ही यमुनाजी ने हर्ष विभोर होकर उनका स्वागत सत्कार किया तथा उन्हें भोजन करवाया। इससे प्रसन्न हो यम ने वर माँगने को कहा- यमुना ने कहा कि भैया, मैं आपसे यह वरदान चाहती हूँ कि मेरे पवित्र जल में स्नान करने वाले नर-नारी यमपुरी न जाएँ। यमराज ने उन्हें यह आशीर्वाद दिया कि यम द्वितीया को भाई बहिन पवित्र यमुना की पूजा कर, उनमें स्नान करे तथा भाई बहिन के घर आकर भोजन करे तो वे ऐसे भाई बहिनों को कष्टों व नारकीय यातना से मुक्त करेंगे।
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