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आदमखोर कुनबा :ःः हनुमान मंदिर के पुजारी को घसीट कर ले गया पैंथर, क्षति विक्षत शव मिला, नेता-अफसरों का नेक्सर काट रहा पहाड़, जान की कीमत चुका रहा आम आदमी

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24 न्यूज अपडेट. उदयपुर। पैंथर का कुनबा आदमखोर हो गया है। एक के बाद एक पैंथर पकड़े जा रहे हैं लेकिन इंसानी शिकार का सिलसिला थम ही नहीं रहा। पहाड़ों के कटने और पेंथर के इलाके में घुसपैठ राजनेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत से हुआ लेकिन इसकी कीमत जंगल में रहने वाला आम आदमी चुका रहा है। उसके पास इतनी सहूलियत नहीं है कि हर काम के लिए समूह में निकलें, सुरक्षा उपकरण रखें, वन विभाग की कही किताबी बातों के दायरे में रहकर अपनी दिनचर्या को बांध ले। आज एक दुखद घटना सामने आई जब उदयपुर के बड़गांव में मदार पंचायत के राठौड़ों का गुड़ा गांव में पेंथर ने हनुमान मंदिर के पुजारी का शिकार कर लिया। यही नहीं पेंथर पुजारी को मंदिर से घसीटकर सड़क के रास्ते 150 मीटर दूर मक्का के खेत में ले गया। पूरे रास्ते में खून के निशान मिले। आदमखोर कुनबे का पेंथर उसके बाद गर्दन, एक हाथ और छाती का कुछ हिस्सा खा गया। अब लोग संख्या गिन रहे हैं, यह पेंथर के हमले से हाल ही में हुई सातवीं मौत है। इससे पहले पूरे मेवाड़ में ऐसा कभी नहीं हुआ। अविवाहित बाल ब्रह्मचारी पुजारी का शव आज क्षत-विक्षत हालत में खेत में बिजली के खंभे के पास दिखा तो लोग सहम गए। बताया गया कि 65 वर्षीय पुजारी विष्णु गिरी मंदिर में ही सेवा-पूजा करते थे। रात को वे मंदिर के बाहर सो रहे थे। इस वजह से पेंथर का आसान शिकार हो गए। सुबह जब लोग मंदिर पहुंचे तो पुजारी को आवाज दी। उनके नहीं दिखने पर आस पास तलाशी की। इस बीच लोगों को कुछ खून के निशान दिखे तो पक्का हो गया कि हो न हो कोइ्र अनहोनी हुई है। खून के निशानों के सहारे आसपास तलाश की तो नहीं मिले। उसके बाद पास के खेत में देखा तो वहां पर खंभे के पास शव पड़ा मिला। सूचना पर गोगुंदा थाना पुलिस और वन विभाग की टीम मौके पर आई। बताया गया कि मंदिर के पास पानी की एक टंकी पर जब सुबह लोग पानी भरने गए तब इस बात का पता चला।
पहाडों कट रहे हैं, जनप्रतिनिधि क्या कर रहे हैं
कभी जयपुर से आदेश आ रहे हैं तो कभी दिल्ली से। काम बराबर चालू है। तब भी जब सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के कई आदेश आ चुके हैं। मोटे आसामियों को नेताओं, जमीन माफियाओं, अफसरों का जमकर सपोर्ट मिल रहा है। धड़ल्ले से पिता तुल्य पहाड़ों की हत्या की जा रही है। इसकी कीमत आमजन अपनी जान देकर चुका रहा है। पिछले 25 सालों में मेवाड़ के सघन वन वाले पहाड़ों में भी कई होटल-रिसोर्ट बन गए। जमीनों के इस खेल में सभी दलों के हाथी और प्रशासन के सफेद हाथी शामिल हैं। कइयों की छिपी हुई पार्टनरशिप है ताकि नियमों की दुहाई देते-देते भी काम हमेशा चालू रहे। एक-एक करके, चुन-चुन करके जो खेल पहाड़ों की हत्या के खेले गए उसके रंगे सिंयार आस-पास की घूम रहे हैं। दरअसल भूखे पेंथर कहीं उनसे क्रोधित होकर तो आदमखोर नहीं हो गए हैं। याने पहाड़ों के हत्यारों का बदला जंगल में बसने वाला, जिंदगी की सभी सहूलियतों के दूर रहने वाला आम आदमी बार-बार अपनी जान देकर चुका रहा है। इतना होने पर भी किसी भी जन प्रतिनिधि में यह हिम्मत नहीं है कि पहाड़ों की कटाई, वन भूमि पर जमीन माफिया के इस कृत्य को रोक सकें। हां, कुछ लोग जंगल वासियों को जरूर समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि समूह में ही बाहर जाएं, अकेले बाहर नहीं निकलें। आदि-आदि हिदायतें खोखली लगती है। वन्यजीव अगर इसी तरह से इंसानी शिकार का अभ्यस्त हो गया तो वो दिन दूर नहीं जब वो अपने इलाके में बने किसी पंचतारा महल में घुस कर किसी वीआईपी का शिकार करेगा। शायद तब पुख्ता बंदोबस्त और सिस्टम बदलने की बात होगी।

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