24 न्यूज अपडेट उदयपुर। मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में इन दिनों कर्णधार अस्थायी कर्मचारियों से खुलकर मजाक चल रहा है। पिछली 17 दिन की हड़ताल में प्रशासन के छक्के छूट गए थे मगर उस अनुभव को भुलाते हुए एक बार फिर से एसएफएबी कर्मचारियो ंकी दो महीने की तनख्वाह पर अफसर कुंडली मार कर बैठ गए हैं। तीसरा महीना शुरू हो चुका है, पिछली बार होली पर रूलाया था, इस बार लगता है रक्षाबंधन पर कर्मचारियों का रूलाने का बंदोबस्त कर दिया है। इन कर्णधारों के प्रति एक बार फिर चक्की पिसिंग वाले इस एटीट्यूड की खूब आलोचना हो रही है। वीसी और रजिस्ट्रार में आपसी समन्वय की कमी और खींचतान के चलते वेतन रूकने की खबर है। आज पेन डाउन हड़ताल कर कर्मचारी दोनों के पास पहुंचे तो पता चला कि कहीं न कहीं ईगो टकरा रहे हैं। वीसी की ओर से कहा जा रहा है कि रजिस्ट्रार मामले को देख रही हैं तो रजिस्ट्रार को वीसी के उचित आदेशों का इंतजार है। दोनों को रत्ती भर भी परवाह नहीं है कि दो महीने से वेतन नहीं मिला है, इनके घर का चूल्हा कैसे चल रहा होगा। बस बातों की फुटबॉल खेली जा रही है। ये आदेश दे ंतो वो स्वीकार करें, वो खुद आदेश क्यों नहीं दे सकतीं, उनके पास पैसा है तो रिलीज क्यों नहीं किया जा रहा है…..आदि-आदि।
विरोध करने वालों का कहना है कि उपर की कुर्सी पर विराजे लोगों को एक दिन तनख्वाह नहीं मिलती है तो हाय तौबा मचाने लग जाते हैं। बेचैन हो जाते हैं। उनके अधिकारों और सर्विस रूल की किताब खुल जाती है। उपर से फोन खड़खड़ाते हैं और तुरंत तनख्वाह का इंतजाम हो जाता है लेकिन जो अस्थायी कर्मचारी 20-20 साल से काम कर रहे हैं, जिनके सीमित अधिकार हैं, उनके प्रति सुविवि प्रशासन पूरी तरह से नाकारा तरीके से संवेदनहीन व्यवहार कर रहा है। एक महीने की तनख्वाह रोकने पर ही कर्मचारियों को खटका पड़ा था मगर उन्होंने सोचा कि विभागीय प्रक्रियाओं में समय लग गया होगा। किन्तु जब दूसरा महीना बीत गया व तीसरा लग गया तो पानी सिर से उपर गुजर गया। समझ में आ गया कि दाल काला नहीं, पूरी दाल काली है।
जबकि अभी एडिमिशन, काउंसलिंग, परीक्षाएं सहित लगभग सभी कामों का जिम्मा इन एसएफएबी के अस्थायी कर्मचारियों के कांधे पर ही है। कम वेतन में ये दुगुने उत्साह के साथ ओवर बर्डन होकर काम कर रहे है। फर्ज करें कि इनके कंधे सरक गए तो फिर व्यवस्थाएं संभाले नहीं संभलने वाली हैं। जैसा कि पिछली बार भी प्रशासनिक नासमझी, ईगो प्रोब्लम और आपसी राजनीति के चलते वेतन नहीं दिया व बाद में परीक्षाएं स्थगित करनी पड़ी जिसका खामियाजा छात्रों को भुगतना पड़ां। सयाने लोग बताते हैं कि एक बार कोई गलती हो जाती है तो उसे नजरअंदाज किया जा सकता है लेकिन दूसरी बार वेतन की प्रक्रिया का ही आगे नहीं बढ़ना व उसी प्रकार की गलती को दोहराना साफ दर्शा रहा है कि ना तो विरोध की परवाह है ना कहीं किसी स्तर पर अस्थायी कर्मचारियों के प्रति संवेदशीलता बची है। पिछली बार विधायक ताराचंद जैन ने खुद दखल दिया था तब जाकर हड़ताल टूटी थी मगर इस बार ऐसा लग रहा है कि सुविवि प्रशासन को विधायक की भी परवाह नहीं है। ऐसे में विधायक और सांसद को दखल देकर इस समस्या का स्थायी हल निकलवाना चाहिए। सांसद ने तो इसी विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री हासिल की है, ऐसे में शोधार्थी के नाते उनका कर्तव्य बनता है कि वे अस्थायी कर्मचारियों की पीड़ा में स्वर देते हुए दिखाई दें।
इससे पहले आज सुबह सभी कर्मचारी प्रशासनिक भवन पहुंचे व विरोध जताया। उसके बाद रजिस्टार श्वेता फगेडिया व वीवी सुनीता मिश्रा से मुलाकात की। दोनों ने मामला एक दूसरे पर ढोल दिया। जबकि दोनों का यह जिम्मा है कि यदि कर्मचारियों से काम लिया है तो वेतन समय पर मिलना हर हाल में सुनिश्चित किया जाए। रजिस्ट्रार के छोर पर यह जिम्मा है कि ऐसा नहीं हो रहा है तो संबंधितों से सवाल जवाब कर वीसी को बताएं व वीसी की जिम्मेदारी है कि हर हाल में रजिस्ट्रार को वेतन समय पर दिलवाने पर पाबंद करें। कर्मचारियों का कहना है कि यदि आपसी समन्वय नहीं है इसका खामियाजा आखिर वे क्यों भुगतें?????
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