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मेवाड़ राजकोष संभालने में था भामाशाह परिवार का महत्वपूर्ण योगदान-भामाशाह पर संगोष्ठी में उभरे तथ्य

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24 न्यूज अपडेट उदयपुर, 10 अगस्त। महाराणा उदयसिंह, महाराणा प्रताप व महाराणा अमरसिंह के काल में जब मेवाड़ राज्य अपनी स्वतंत्रता के लिए विदेशी आक्रान्ताओं से लंबे समय तक युद्धरत था, उन विकट परिस्थितियों में मेवाड़ के राजकोष को दुर्गों से वनांचल तक सुरक्षित पहुंचाने, उसकी सुरक्षा और उन स्थानों की गोपनीयता बनाए रखने में कर्तव्यपरायण, निष्ठावान वर्ग में ओसवाल समाज के कावड़िया भारमल, भामाशाह, ताराचंद और भील सैनिकों के समूह सहित रामपुरा के दुर्गा सिसोदिया का बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
यह बात भारतीय इतिहास संकलन समिति, इतिहास शोध परिषद, बुद्ध कल्याण परिषद पटना के संयुक्त तत्वावधान में ‘भामाशाह का इतिहास : एक परिचर्चा’ विषयक संगोष्ठी में उभर कर आई। मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के बप्पा रावल अतिथि गृह सभागार में शुक्रवार देर शाम आयोजित इस संगोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि मेवाड़ का जन समुदाय पीढ़ी दर पीढ़ी मेवाड़ राज्य प्रबंध और शासकों के साथ निरंतर जीवन व मृत्यु के बीच झंझावातों को सहन करते हुए अडिग खड़ा रहा।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भारतीय इतिहास संकलन योजना दिल्ली के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य डॉ. महावीर प्रसाद जैन थे। अध्यक्षता भारतीय इतिहास संकलन समिति के उपाध्यक्ष मदनमोहन टांक ने की। वक्ताओं के रूप में मेवाड़जन उदयपुर के संयोजक प्रताप सिंह झाला ‘तलावदा’, भामाशाह परिवार के वंशज नरेन्द्र सिंह कावड़िया, वरिष्ठ इतिहासविद डॉ. राजेन्द्र नाथ पुरोहित, डॉ. मनीष श्रीमाली, प्रताप गौरव केन्द्र के निदेशक अनुराग सक्सेना, प्रताप गौरव शोध केन्द्र के अधीक्षक डॉ. विवेक भटनागर, डॉ. पीयूष भादवीया उपस्थित थे। कार्यक्रम का संयोजन मोहित शंकर सिसोदिया ने किया। धन्यवाद डॉ. अजय मोची ने ज्ञापित किया।
वक्ताओं ने भामाशाह के पिता भारमल को महाराणा संग्राम सिंह द्वारा मेवाड़ में लाने, रणथंभौर का किलेदार नियुक्त करने, महाराणा उदयसिंह के समय चितौड़गढ़ बुलाने, मेवाड़ के कोषागार का वित्तीय प्रबंधन उन्हें सौंपने, रणथंभौर का प्रशासनिक प्रबंधन देखने आदि तथ्यों पर विचार रखे। उसके बाद भामाशाह और ताराचंद के महाराणा प्रताप के समय राजकोषीय और सामरिक योगदान पर विचार-विमर्श किया गया। वर्ष 1578 ई. के प्रारंभ में शाहबाज खां द्वारा कुंभलगढ दुर्ग की घेरा बंदी और आक्रमण के पूर्व कुंभलगढ़ दुर्ग से वहां निवासरत आबादी को और राजकोष को भामाशाह और ताराचंद के नेतृत्व में रामपुरा की तरफ हस्तांतरण करने के प्रामाणिक तथ्यों पर भी चर्चा की गई।

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