— अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति का 13वां उदयपुर जिला सम्मेलन सम्पन्न
24 News Update उदयपुर। प्रकृति ने स्त्री-पुरुष को समान और एक-दूसरे का पूरक बनाया है, लेकिन पुरुष प्रधान समाज ने महिलाओं को महानता और देवी के नाम पर पूजनीय बताकर उनके अधिकारों को सीमित कर, उन्हें आर्थिक संसाधनों से दूर कर गुलाम बनाए रखने का षड्यंत्र रचा है। यह बात अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की राज्य महासचिव डॉ. सीमा जैन ने संगठन के 13वें उदयपुर जिला सम्मेलन में मुख्य वक्ता के रूप में कही। उन्होंने कहा कि धर्म, संस्कृति, परंपराएं और रीति-रिवाजों की आड़ में महिलाओं के अधिकारों में कटौती की गई और निर्णय प्रक्रिया से उन्हें पूरी तरह बाहर कर दिया गया। उन्होंने संगठन के मूलमंत्र “जनवाद, समानता, नारी मुक्ति” की व्याख्या करते हुए स्पष्ट किया कि नारी मुक्ति का अर्थ पुरुष से मुक्ति नहीं, बल्कि पुरुष प्रधान सोच से मुक्ति है। उन्होंने कहा कि हमारा संगठन किसी राजनीतिक दल का हिस्सा नहीं है, लेकिन राजनीति और सामाजिक व्यवस्था को समझना जरूरी है, क्योंकि जीवन का हर पहलू उससे प्रभावित होता है।
डॉ. जैन ने मौजूदा भाजपा सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि पिछले 11 वर्षों में महिलाओं पर अत्याचारों में वृद्धि हुई है और उनके नेता बलात्कार के आरोपियों के समर्थन में रैलियां निकालते हैं। उन्होंने व्यंग्य करते हुए कहा कि “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” का नारा अब “भाजपा से बेटी बचाओ” बन गया है। उन्होंने महिलाओं से आह्वान किया कि वे राशन, पानी, सफाई, सड़क, पेंशन जैसे जीवन के मूलभूत मुद्दों पर संघर्ष करें और संगठित होकर एक बेहतर समाज के निर्माण में सहभागी बनें।
सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए वरिष्ठ लेखिका व साहित्यकार डॉ. कुसुम मेघवाल ने कहा कि महिलाओं के श्रम को आज भी मूल्यहीन समझा जाता है। यदि उनके श्रम का लेखा-जोखा निकाला जाए तो यह पुरुष प्रधान समाज की सबसे बड़ी बेईमानी साबित होगी। उन्होंने कहा कि पूंजीवादी और सामंती व्यवस्था दोनों ने महिलाओं को वस्तु या दासी के रूप में ही देखा है, इसलिए महिलाओं के संघर्ष को इन व्यवस्थाओं के खिलाफ भी जोड़ना होगा। उन्होंने जोर दिया कि “सशक्त नारी” बनने के लिए सामाजिक ताने-बाने से टकराना भी ज़रूरी है।
एडवोकेट राजेश सिंघवी ने अपने संबोधन में कहा कि जब तक महिला-पुरुष समानता नहीं होगी, समाज और परिवार दोनों अपंग रहेंगे। उन्होंने कहा कि भले ही महिलाओं के लिए कानून मौजूद हैं, लेकिन व्यवस्था ऐसी है कि उन्हें न्याय मिलना कठिन है। सम्मेलन में उन्होंने जब यह सवाल रखा कि क्या महिलाएं महिला होकर खुश हैं या पुरुष बनना चाहती हैं, तो अधिकतर ने पुरुष बनने की इच्छा जताई — यह पुरुष प्रधान व्यवस्था के लिए एक करारा संदेश है। सम्मेलन में पूर्व पार्षद गणपति सालवी और घरेलू महिला श्रमिकों की प्रतिनिधि सिस्टर कीर्ति ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम का आरंभ संगठन की वरिष्ठ नेता मंजू सिंघवी द्वारा झंडारोहण से हुआ। इसके बाद महिला अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले शहीद और दिवंगत साथियों को श्रद्धांजलि देते हुए दो मिनट का मौन रखा गया।
जिला सचिव रानी माली ने पिछले तीन वर्षों की संगठनात्मक गतिविधियों की रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिस पर आठ महिला सदस्यों ने चर्चा में भाग लेते हुए अपने विचार रखे। इस अवसर पर सम्मेलन में महंगाई और महिला अत्याचारों के खिलाफ संघर्ष, कच्ची बस्तियों के नियमन, ठेला-पटरी व्यवसायियों की सुरक्षा, सांप्रदायिकता के खिलाफ विरोध, समान शिक्षा के अधिकार, और महिलाओं के लिए रोजगार के अवसरों की मांग जैसे महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किए गए।
सम्मेलन के अंत में नई कार्यकारिणी का गठन किया गया जिसमें अध्यक्ष के रूप में साबिरा अतर वाला, सचिव रानी माली, उपाध्यक्ष फिरदौस शेख, कैलाशी, सरोज कटारा, शाहीन बानो, सह-सचिव डॉ. सीमा सोनी, रेखा भटनागर, लाली सालवी, अनीता, सुरता, तथा कार्यकारिणी सदस्य के रूप में जमुना, सीता कालबेलिया, भगवती, हेमलता, कौशन, लक्ष्मी, डिंपल और नीला को चुना गया।
उदयपुर। प्रकृति ने स्त्री-पुरुष को समान और एक-दूसरे का पूरक बनाया है, लेकिन पुरुष प्रधान समाज ने महिलाओं को महानता और देवी के नाम पर पूजनीय बताकर उनके अधिकारों को सीमित कर, उन्हें आर्थिक संसाधनों से दूर कर गुलाम बनाए रखने का षड्यंत्र रचा है। यह बात अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की राज्य महासचिव डॉ. सीमा जैन ने संगठन के 13वें उदयपुर जिला सम्मेलन में मुख्य वक्ता के रूप में कही। उन्होंने कहा कि धर्म, संस्कृति, परंपराएं और रीति-रिवाजों की आड़ में महिलाओं के अधिकारों में कटौती की गई और निर्णय प्रक्रिया से उन्हें पूरी तरह बाहर कर दिया गया। उन्होंने संगठन के मूलमंत्र “जनवाद, समानता, नारी मुक्ति” की व्याख्या करते हुए स्पष्ट किया कि नारी मुक्ति का अर्थ पुरुष से मुक्ति नहीं, बल्कि पुरुष प्रधान सोच से मुक्ति है। उन्होंने कहा कि हमारा संगठन किसी राजनीतिक दल का हिस्सा नहीं है, लेकिन राजनीति और सामाजिक व्यवस्था को समझना जरूरी है, क्योंकि जीवन का हर पहलू उससे प्रभावित होता है।
डॉ. जैन ने मौजूदा भाजपा सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि पिछले 11 वर्षों में महिलाओं पर अत्याचारों में वृद्धि हुई है और उनके नेता बलात्कार के आरोपियों के समर्थन में रैलियां निकालते हैं। उन्होंने व्यंग्य करते हुए कहा कि “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” का नारा अब “भाजपा से बेटी बचाओ” बन गया है। उन्होंने महिलाओं से आह्वान किया कि वे राशन, पानी, सफाई, सड़क, पेंशन जैसे जीवन के मूलभूत मुद्दों पर संघर्ष करें और संगठित होकर एक बेहतर समाज के निर्माण में सहभागी बनें।
सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए वरिष्ठ लेखिका व साहित्यकार डॉ. कुसुम मेघवाल ने कहा कि महिलाओं के श्रम को आज भी मूल्यहीन समझा जाता है। यदि उनके श्रम का लेखा-जोखा निकाला जाए तो यह पुरुष प्रधान समाज की सबसे बड़ी बेईमानी साबित होगी। उन्होंने कहा कि पूंजीवादी और सामंती व्यवस्था दोनों ने महिलाओं को वस्तु या दासी के रूप में ही देखा है, इसलिए महिलाओं के संघर्ष को इन व्यवस्थाओं के खिलाफ भी जोड़ना होगा। उन्होंने जोर दिया कि “सशक्त नारी” बनने के लिए सामाजिक ताने-बाने से टकराना भी ज़रूरी है।
एडवोकेट राजेश सिंघवी ने अपने संबोधन में कहा कि जब तक महिला-पुरुष समानता नहीं होगी, समाज और परिवार दोनों अपंग रहेंगे। उन्होंने कहा कि भले ही महिलाओं के लिए कानून मौजूद हैं, लेकिन व्यवस्था ऐसी है कि उन्हें न्याय मिलना कठिन है। सम्मेलन में उन्होंने जब यह सवाल रखा कि क्या महिलाएं महिला होकर खुश हैं या पुरुष बनना चाहती हैं, तो अधिकतर ने पुरुष बनने की इच्छा जताई — यह पुरुष प्रधान व्यवस्था के लिए एक करारा संदेश है। सम्मेलन में पूर्व पार्षद गणपति सालवी और घरेलू महिला श्रमिकों की प्रतिनिधि सिस्टर कीर्ति ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम का आरंभ संगठन की वरिष्ठ नेता मंजू सिंघवी द्वारा झंडारोहण से हुआ। इसके बाद महिला अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले शहीद और दिवंगत साथियों को श्रद्धांजलि देते हुए दो मिनट का मौन रखा गया।
जिला सचिव रानी माली ने पिछले तीन वर्षों की संगठनात्मक गतिविधियों की रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिस पर आठ महिला सदस्यों ने चर्चा में भाग लेते हुए अपने विचार रखे। इस अवसर पर सम्मेलन में महंगाई और महिला अत्याचारों के खिलाफ संघर्ष, कच्ची बस्तियों के नियमन, ठेला-पटरी व्यवसायियों की सुरक्षा, सांप्रदायिकता के खिलाफ विरोध, समान शिक्षा के अधिकार, और महिलाओं के लिए रोजगार के अवसरों की मांग जैसे महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किए गए।
सम्मेलन के अंत में नई कार्यकारिणी का गठन किया गया जिसमें अध्यक्ष के रूप में साबिरा अतर वाला, सचिव रानी माली, उपाध्यक्ष फिरदौस शेख, कैलाशी, सरोज कटारा, शाहीन बानो, सह-सचिव डॉ. सीमा सोनी, रेखा भटनागर, लाली सालवी, अनीता, सुरता, तथा कार्यकारिणी सदस्य के रूप में जमुना, सीता कालबेलिया, भगवती, हेमलता, कौशन, लक्ष्मी, डिंपल और नीला को चुना गया।
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